Thursday 19 July 2012

pyar ek tarfa aur do tarfa

log kahte hain ek tarfa pyaar sada dard deta hai, par hume lagta hai uss dard me jo sukoon hota hai wo do tarfa pyaar mein kahan hota hai, unke chehare pe khushi dekh kar dil ko raahat milti hai jahan ek tarfa pyaar mein wahi iss do tarfa pyar mein unki ek khushi k liye har ghadi khud ko aansuon k saagar mein duboona padta hai.........

Friday 13 July 2012

Friend(*_*)

1000 dost bnane se behtar h koi aisa dost bnao jo zindgi k har modd pe saath nibhaye..

Thursday 12 July 2012

sachha dost.........

kisi k dost kahne pe koi dost nhi bnta, kisi k saath chalne se apna nhi hota, dost to wo hota hai jo zindgi k har modd pe saath deta hai, jab chhod jate hai apna saath jahan apne waha dost zindagi ki dubti kashti ko sahara deta hai, yu to khushi k mauke pe jane kitne dost milenge par sachha wo hi hota hai jo sab khuch kho jane k baad b saath deta hai...... har ek frd jaruri hota h bt selfish nd cheater also jhute dost not required..

Friday 6 July 2012

kuch log kitne khaas hote hain

kuch log kitne khas hote h, dur ho kr b dil k paas hote, milte nhi wo jab dil pukarta h unhe par fir b na jane q har kahi apne ahsaas k saath hote h, kuch log kitne khas hote h..

Thursday 5 July 2012

क्या खता हुई थी मुझसे...........(एक सच्ची कहानी )



क्या खता हुई थी मुझसे........

नोट: ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है, इस कहानी के पात्रों के  नाम एवम स्थान को किसी विशेष कारण की वज़ह से हमे  बदलना पड़ा है, परंतु इससे इस कहानी की सच्चाई में कोई भी फ़र्क नही आया है, कहानी के  पात्रों के  नाम एवम स्थान को हमे  यहा बदलना पड़ा इसके लिए पाठक कृपया ह्मे माफ़ करे किंतु कहानी को पड़ कर इसका लुत्फ़ अवश्य  उठाए, धन्यवाद......

सन 1969, अपनी ज़िंदगी की आख़िरी साँसे गिनती हुई 70 साल की भानवी  को अपनी ज़िंदगी के  आज वो सब पल याद आ रहे थे जिन्हे वक़्त और हालत ने उन्हे याद करने का मौका भी शायद नही दिया था,कानपुर के  नज़दीक छोटा  सा कस्बा है जिसका नाम है उन्नाव, उन्नाव में पैदा हुई भानवी  अपने घर में सब की लाडली सबकी चहेती थी, तेज़  स्वाभाव था उसका, और इसी तेज़ स्वाभाव की वज़ह से ही उसके घर वाले  उसकी शादी की चिंता में डूबे रहते थे, वो दौर भी  कुछ और था जहाँ लड़कियों को स्कूल भेजना और उनका  पड़ना एक गुनहा समझा जाता था धर्म के  खिलाफ माना जाता था  हालाकि परिवर्तन का दौर शुरू उस वक्त शुरू हो चूका था और सरकार एवं कई जाने माने लोग स्त्री शिक्षा को पूर्ण प्रोत्साहन देने में प्रयत्नशील थे  किन्तु इसके बाद भी समाज का एक बड़ा हिस्सा स्त्री शिक्षा के खिलाफ था, पर भानवी  इसका विरोध करती थी, वो आगे  पड़ना चाहती थी, 1911 भानवी  के  पिता ने उसका रिश्ता हरदोई जिले में अपनी ही जाती के किसी लड़के से तय कर दिया, लड़का रेलवे में नौकरी करता था, ठीक ठाक  पैसे कमाता था, जब भानवी  की मा को पता चला की उनकी बेटी की शादी हरदोई में तय हो गयी है, उसकी मा ने अपने पति से शिकायत की " क्यों आप मेरी लाडली की शादी इतनी दूर   करा रहे हो, कानपुर क सारे लड़के मर गये है क्या, अभी हुमारी बेटी की उमर ही क्या है, ज़रा तसल्ली से ढूनडते तो कोई अच्छा सा घर वर   यहा ही मिल जाता, इतनी दूर  वो चली जयगी तो भला हम उससे कैसे मिल पायंगे, हम तो तरस ही जयनगे उसको देखने क लिए",  भानवी  के  पिता ने कहा "तुम तो जानती ही हो हमारी बेटी को, वो काफ़ी तेज़ तर्रार है, यहा पर मैने सब जगह जा कर देख लिया, सभी के  यहा अपनी बेटी के  रिश्ते की बात चला कर देख ली, पर सभी ने ये कह कर मना कर दिया की .हमारी  बेटी उनके यहा की बहू बनने के  लायक नही है, ना तो उसमे हमारे  रीति रिवाज़ों क लिए इज़्ज़त है और ना कोई हया, वो अल्हड़ है, यहा से वहा घूमती रहिती  है, और मोहल्ले की सभी लड़कियों को भड़काने का काम  करती है, उन्हे पड़ने-लिखने एवं स्कूल  जाने के  लिए उसकसाती  है, उसकी इन्ही हर्कतो  से कानपुर में उसकी शादी नही  तय हो पाई,"  भानवी  की मा ने कहा " आप जहाँ उसका रिश्ता तय कर के  आए है क्या उन्हे नही पता की हमारी बेटी कैसी है, क्या अपने उनसे छिपाया  इस  बात को," भानवी  के  पिता ने कहा "मैं झूट बोल कर अपनी बेटी की शादी नही कर सकता, मैने लड़के वालों को सब कुछ सच सच बता दिया है, और उन्हे इस बात से कोई फ़र्क नही  पड़ता, वो खुद लड़कियों की शिक्षा के  पक्ष में है," ये सुन कर भानवी की मा बहुत खुश हुई , बहुत जल्द उसकी शादी हो गयी, शादी के  बाद सब कुछ बदल गया भानवी  की ज़िंदगी में जैसे, उसके पिता ने कहा था की उसके ससुराल में लड़कियों की शिक्षा  पर कोई प्रतिबंद  नही  है पर यहा आ कर उसने देखा की उसके ससुराल वालों में और अन्य हिंदुस्तानियों की सोच में कोई फ़र्क न्ही है, वो बस बाहर से कहते है की लड़कियो  को पड़ना-लिखना लिखना एवं स्कूल जाना  चाहिए, उन्हे लड़कों के  बराबर अधिकार देना चाहिए पर सच्चाई तो ये थी  की सच  इसके एक दम उल्टा था , शादी
के 
2 साल बाद भानवी  ने एक लड़की को जन्म दिया, लड़की को देख कर उसकी सास ने सबसे पहले उसे  ताना मारना  शुरू कर दिया, बच्ची के  जन्म के  बाद ना तो उसकी और ना उसके बच्ची  की ठीक से उसके ससुराल वालों ने देखभाल  की और सिर्फ़ 6 महीने में ही भानवी  की बच्ची की मौत हो गयी, इस  घटना के  बाद काफ़ी साल तक भानवी  किसी बच्चे को जन्म  ना दे सकी तो उसके ससुराल वाले   उससे बांझ  बोल कर उससे प्रताड़ित करने लगे, किसी भी शुभ काम में उसका जाना प्रतिबंधित था, उससे ऐसे बहिष्कृत कर दिया गया जैसे वो कोई अछूत  हो, पर भानवी  के  पति उससे बेहद प्यार करते थे, वो अक्सर काम के  सिलसिले में घर से बाहर ही रहते थे इसलिए घर के  हालात के  बारे में उन्हे कुछ पता नही  था, वो आधुनिक सोच रखने वाले  इंसान थे, एक रात भानवी  से हुई किसी ग़लती क कारण उसके ससुराल वालों ने  उसे  एक कमरे में बंद कर दिया  और खाने पीने तक को कुछ  नही  दिया, किस्मत से उसके पति उसी  दिन अपने घर पहुचे, वहा  उन्होने अपनी पत्नी की ये हालत देखी और तुरंत उसे  वाह  से ले कर पलवल जहाँ वो नौकरी कर रहे थे  ले आए,

   पलवल में भानवी  ने 1918 में एक बेटी को जन्म दिया, और 1920 में एक बेटे को, पर भानवी  के  दुखों का अंत कहाँ होने वाला था, बेटे के  जन्म क 1 साल बाद 2 जुड़वा बच्चों को उसने जन्म दिया पर वो बच्चे कुछ ही दिन जिंदा रहे फिर किसी अग्यात बीमारी से उनकी मौत हो गयी, भानवी  टूट गयी, पर उसके पति ने उससे संभाला, 1923 में उसके पति उसे  एवम  दोनों बच्चों को मुंबई ले आए, यहा के  महोल  ने भानवी  के गम कुछ हद तक कम कर दिया, अपनी बेटी को स्कूल में दाखिला  दिला दिया, सब  कुछ उसकी ज़िंदगी में अच्छा चलने लगा पर एक दिन अचानक एक ऐसी खबर उससे मिली जिसने उससे हिला कर रख दिया.......

भानवी  को पता चला की उसके पति के  पेट में ट्यूमर (घाव) है जिसका कोई इलाज़ नही है और उसके पति कुछ ही दिनों के  मेहमान है, भानवी  के  पेरो  तले तो जैसे ज़मीन ही खिसक गयी, वो सोचने लगी उसके पति के  बाद उसके दोनों बच्चों और उसका क्या होगा, ये समाज एक विधवा को कैसी नीची नज़र से देखता है, लोग एक विधवा को अपने पति को खाने वाली एक डायन समझते है, वो सोचने लगी उसके पति के  बाद उसकी बेटी की शादी भी नही  हो पयगी, लोग उसके बेटी को अभागी कहेंगे, वो कहाँ जायेगी और क्या करेगी, कैसे अपने बच्चो की परवरिश कर पायगी और कैसे अपनी बेटी की शादी कर पायगी, कौन करेगा एक विधवा के बेटी से शादी और इसी उधेड़बुन में वो खोयी खोयी सी रहने लगी,

लेकिन  भानवी  के  पति ने उसकी चिंता समझ ली थी, इसीलिए वो एक दिन पलवल चले गये बिना अपने पत्नी से कुछ कहे की वो क्यों और किस से मिलने पलवल जा रहे हैं, जब वापस आए तो उन्होने भानवी  को बताया की वो अपनी बेटी की शादी तय कर आए हैं अपने दोस्त के  बेटे के  साथ, लड़का अभी पड़ता है पर वो लोग अच्छे ख़ासे पैसे वाले  हैं, उनके कोई बेटी नही है, वो अपनी बहू को बेटी की तरह रखनगे, सिर्फ़  2 भाई है वो, छोटा  भाई तो अभी बहुत छोटा  है पर जिस लड़के से उन्होने रिश्ता तय किया है वो कॉलेज में पड़ता है, पड़  लिख कर उससे भी अच्छी नौकरी मिल जयगी, हमारी बेटी वहा  खुश रहेगी, भानवी  भी भारी मन  से इस  रिश्ते के  लिए तैयार हो गयी, वो हालाकी  नही  चाहती थी की उसके बेटी की अभी शादी हो क्यों की उसकी उमर  अभी सिर्फ़ 8 साल थी पर जैसे हालत उसकी ज़िंदगी में बने थे ऐसे  वक़्त में  वो मज़बूर थी, बहुत जल्द उसने अपनी बेटी की शादी कर दी, शादी के  बाद उसकी बेटी आगरा चली गयी, क्यों की उसके ससुर का तबादला आगरा को हो गया था,

शादी के  बाद जब भानवी  की बेटी पहली बार  उससे मिलने आई तो भानवी  ने उसके कुछ गहने चोरों के  डर  से अपने पास रख लिए और कहा "बेटी अभी तुम छोटी  हो, ये गहने तुम्हे अभी नही पहनने चाहिए, जब तुम बड़ी हो जाओगी तब पहनना, तुम्हारे ससुर जब यहा तुम्हे लेने आयंगे तब मैं ये गहने उन्हे दे दूँगी और कहूँगी की जब तक तुम बड़ी ना हो जाओ तब तक तुम्हे ज़्यादा गहने ना दें पहनने के  लिए", पर किस्मत से भानवी  की बेटी को लेने उसके ससुर की जगह उनका दामाद आया, और दामाद के  आने की खुशी में भानवी  ने उनके आने पर उनके स्वागत क लिए जी जान लगा दी पर एक ग़लती उससे जो हुई उसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भुगति....





अपनी बेटी को विदा करती वक़्त वो अपनी बेटी क गहने वापस करना भूल गयी, जब उसकी बेटी वापस ससुराल पहुचि तो उसकी सास ने उसकी मा पर अपनी बेटी के  गहने चोरी करने का इल्ज़ाम लगा दिया और इसके साथ ही कहा की आज के  बाद वो अपनी मा से कभी नही मिलेगी, भानवी  ने बहुत बार अपनी बेटी से मिलने की कोशिश की, उसके ससुराल वालों से माफी माँगी पर उन्होने उसकी एक ना सुनी,

फिर एक दिन उसके पति की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी, वो उन्हे इलाज़ क लिए झाँसी ले जाने वाली थी, वो चाहती थी एक बार उसके पति अपनी बेटी को देख ले क्यों की अब के  बाद   शायद वो उसे कभी नही  देख पायंगे, और वो भी वापस कभी उस  शहर में नही  आयगी जहाँ उसकी बेटी रहती है, क्यों की वो नही  चाहती थी की उसकी वज़ह से उसके बेटी की शादी शुदा ज़िंदगी में कोई परेशानी आए, वो आख़िरी बार अपनी बेटी के  घर पहुचि, अपने पति को साथ लाना चाहती थी पर उनकी तबीयत अत्यंत खराब होने की वज़ह से उन्हे ना ला सकी, पर अपने बेटी को देखने की आख़िरी बार उसकी लालसा उसे  यहा तक खीच लाई, इसके साथ ही जो उसके माथे पर कलंक था बेटी क गहने चोरी करने का वो भी धोना चाहती थी, वो अपनी बेटी के  गहने साथ लाई पर अपनी बेटी के  ससुराल में जाने की हिम्मत ना जुटा सकी, पर तबी उसने देखा की उसकी बेटी खिड़की के  पास बैठ  कर अपनी बाल  संवार रही है, वो उसके पास पहुचि, उसकी बेटी खुशी से चिल्लाना चाहती थी पर भानवी  ने इशारे से माना कर दिया, बस अपनी बेटी को वो जी भर के   देखना चाहती थी, उसके लिए जो वो तोहफे लाई थी उसे देना चाहती थी पर ये वो पल था जो भानवी  चाहती थी काश ये पल यही ठहर जाए पर वक़्त कहाँ ठहरता है, इतने में पीछे से उसकी बेटी भूमि की सास की आवाज़ आई "बहू बड़ी देर  लग गयी तुझे  बाल  बनाते हुए," ये कह कर वो अंदर आने लगी, भानवी  समझ गयी अगर वो अंदर आई तो अनर्थ हो जायगा क्यों की उसकी बेटी भूमि की सास नही  चाहती की वो अपनी मा से किसी भी तरह का कोई संपर्क रखे, इसलिए जल्दी में जो कुछ अपनी बेटी के  लिए उपहार  वो लाई थी वही उसे  खिड़की से अपने बेटी को  देने लगी पर जैसे ही वो उसके गहने उसे लौटाने लगी उसकी सास अंदर  आ गयी और भानवी  डर  के  मारे छिप   गयी और सभी गहने अपनी बेटी को नही  लौटा सकी, भारी मन  से उसे  अपनी बेटी से दूर  उसके गहने चुराने के  कलंक के  साथ होना पड़ा....


   परंतु इसके बाद भी भानवी  के  दुखों का अंत कहाँ होने वाला था, झाँसी में इलाज़ के  दौरान उसके पति की मौत हो गयी, वो टूट कर बिखर गयी, कोई सहारा नही  दिख रहा था उसे , अपने बेटे  के  साथ वो बस झाँसी की गलियों पागलों जैसी घूमती थी, तभी एक दिन उस  पर उसकी बेटी भूमि के  चाचा ससुर हरी प्रसाद की नज़र  पर पड़ी, वो झाँसी में ही रेलवे में  नौकरी करते थे और उनकी अभी तक शादी भी नही  हुई थी, वो भानवी  को अपने घर ले आए, उन्होने भानवी  के  सामने शादी का प्रस्ताव रखा, भानवी  इसके लिए तैयार नही हुई, उसने कहा “ आपसे मेरी शादी कैसे हो सकती है, आप मेरे दामाद के  सगे चाचा है, अगर हमारी शादी हुई तो लोग क्या कहेंगे, ये समाज हमे  चैन से जीने नही  देगा, ये संभव नही है की हमारी  शादी हो, लोग कहेंगे समधी ने समधिन से शादी कर ली, सभी हमे  नीची नज़रों से  देखेंगे , आप ये बात भूल जाइए की हमारी  शादी हो सकती है,” हरी प्रसाद जी बोले “ किस समाज की तुम बात कर रही हो, जो एक विधवा को नीचे नज़र से देखता है, उससे डायन कह कर बुलाता है, हर तरह से ये समाज उससे दबाता है, शोषण करता है, एक अकेली औरत का सब फ़ायदा उठाना चाहते हैं, किस समाज की तुम्हे परवाह है, रही बात तुम्हारी बेटी के  ससुराल वालो की, वो वैसे भी  तुम्हे ग़लत ही समझ ते है, तुम पर आरोप लगते है अपने बेटी के  गहने चुराने का, वो तुम्हे कभी माफ़ नही करेंगे और कर भी दिया तो क्या हुआ, तुम्हारे बेटे  को तो वो अपने पास नही  रखेंगे, तुम्हे अब अपने और अपने बेटे  के  बारे में सोचना चाहिए, मैं यकीन दिलाते हूँ की तुम्हारे बेटे  को मैं अपने बेटे  की तरह ही रखूँगा, बेहतर परवरिश दूँगा एवं  पिता का प्यार दूँगा, शायद मैने अभी तक शादी इसलिए नही  की क्यों की तुम ही मेरी जीवन साथी होनी थी, तुम मुझसे शादी के  लिए हा  कह दो मैं पूरी दुनिया से लड़ जौंगा, वैसे भी अब परिवर्तन का दौर है, विधवा विवाह और   प्रेम विवाह को क़ानून मज़ूरी दे चुका है, हम शादी के  बाद इस शहर से दूर  किसी और शहर में अपनी छोटी  सी दुनिया बसा लेंगे जहाँ कोई हमे  नही  जानता होगा, वहा कोई ये बोलना वाला नही  होगा की समधी ने संधान से शादी की है, और वहा हम सुकून से अपनी ज़िंदगी जी सकेंगे,” हरी की बात सुन कर भानवी  अपनी दूसरी शादी क लिए मान गयी, वैसे भी उसे  किसी सहारे की ज़रूरत थी जो उससे हरी के  रूप में मिल रहा था, उससे उसकी बाते सच्ची लगने लगी थी, इसके साथ ही उसके बेटे  के  भविष्य  का भी सवाल था, उन  दोनों ने मंदिर में विवाह कर लिए एवम  हमेशा  के  लिए मेरठ  आ गये…


सब कुछ ठीक चल रहा था भानवी की ज़िंदगी में अब , भानवी  हरी के  साथ बहुत खुश थी, उसके बेटे  अभिजीत को भी पिता का प्यार एवम  अच्छी परवरिश  मिल रही थी,

   मेरठ  में भानवी  ने 2 बेटियों को जन्म दिया, सब कुछ अच्छा चल रहा था, पर अचानक  आकस्मिक ही उसके पति हरी की मौत हो गयी, भानवी पर एक बार फिर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा, किंतु  कुछ दिन बाद उसके बेटे  को उसके पिता हरी की जगह रेलवे में ही नौकरी मिल गयी,

   बेटे  को नौकरी मिल जाने क बाद भानवी  ने सोचा अब इसकी शादी कर देनी चाहिए, उसने बड़े धूम धाम से अपने इकलौते बेटे  की शादी कर दी, पर कुछ दिन बाद ही उसकी बहू की किसी लाइलाज़ बीमारी के  कारण मौत हो गयी,


   भानवी  अपने बेटे  की दूसरी शादी करना चाहती थी पर उसने मना  कर दिया, उसने कहा की जब तक उसकी बहनो की शादी नही  हो जाती अब वो दूसरी शादी नही  करेगा, कुछ सालों बाद उसके बेटी शकुंतला की शादी एक अच्छे  घर में तय हो गयी, उसकी शादी उसके सौतेले भाई ने बड़ी धूम धाम से कराई, कुछ दिन तो ठीक रहा पर एक दिन शकुंतला के  ससुराल वाले  उसे  उसके मायके छोड़  गये, उन्होने कहा “पहले क्यों नही  बताया तुमने की इसके मा एक विधवा औरत थी और जिसने अपने समधी के  साथ दूसरा विवाह किया था, इतने नीच खानदान की लड़की को हम अपने घर की बहू के  रूप में नही  स्वीकार कर सकते, रखो इसे  अपने पास और हमे  बक्षो,” ये देख कर तो   भानवी  पर तो जैसे दुखों क बादल ही फट गये हो , उसकी बेटी ने कहा “ मा जो आपने किया उसकी सज़ा तो हमे  मिल रही है, आपने ऐसा क्यों किया मा, आपने तो अपनी खुशी देखी केवल और हमारा भविष्य और हमारी खुशी क्यों नही देख पाई, आज आपके कारण ही हम ये दिन देख रहे हैं, आपसे हमे हमेशा शिकायत रहेगी ये की आखर आपने ऐसा क्यों किया, काश आप दूसरा विवाह ना करती तो आज ये दिन ना आप देखती और ना हम”, उसके भाई ने उसकी दूसरी शादी की बात कही तो शकुंतला ने मना  कर दिया और हमेशा क लिए अपने भाई क पास रहने की ख्वाइश जताई, उसका भाई मान गया…


   कुछ साल बाद भानवी  की छोटी  बेटी का रिश्ता तय हो गया, उसका जहा रिश्ता तय हुआ वहा  भानवी  ने सब कुछ सच सच बता दिया था की ये उसकी दूसरी शादी के  बाद हुई संतान है एवम  उसकी दूसरी शादी उसकी बड़ी बेटी कए  चाचा ससुर क साथ हुई थी, पर लड़के वालों को लड़की इतनी पसंद आई की उन्हे कोई फ़र्क ही न्ही पड़ा की उसके मा की दूसरी शादी हुई है या नही , वो दूसरी शादी की संतान है या नही, भानवी  की सबसे छोटी  बेटी की शादी साधारण तरीके से हुई, सब कुछ ठीक रहा, कुछ साल बाद भानवी  ने अपने बेटे  की भी दूसरी शादी की बात की और कहा की अब तो बहनो  की शादी हो चुकी है अब अपने बारे में सोच, वो तैयार हो गया, अच्छी सी लड़की से उसकी भी शादी हो गयी…

   पर शायद नसीब को भानवी  के  यहा खुशियों का आना पसंद ना था, कुछ महने बाद उसकी दूसरी बहू की भी मौत हो गयी,







भानवी  भी अब अपनी किस्मत से हार चुकी थी, वो मरना  चाहती थी पर मौत भी उससे अपने पास नही  बुला रही थी, वक़्त का पहिया चलता रहा, एक दिन फिर से खुशी ने उसके घर का दरवाज़ा खटकतया, उसके बेटे  के  लिए एक रिश्ता आया, सब कुछ जानते हुए भी लड़की वाले   उसके बेटे  से शादी करना चाहते थे, घर में खुशी का महोल  बन गया, भानवी  के  बेटे  की तीसरी शादी  हो गयी, बहू बहुत अच्छी थी, सबका बड़ा ख्याल रखती थी, शादी क कुछ साल बाद जिस खुशख़बरी का इंतज़ार था सबको उसने दरवाज़े पे दस्तक दी, भानवी  दादी बनने वाली थी, पूरा घर खुशी से झूम उठा, आख़िर एक नन्हा  मुन्ना मेहमान जो इस घर में आने वाला था  जो इश्स घर में घूमा करेगा, ये सोच कर भानवी  खुशी से झूम रही थी..

   पर नसीब से कौन लड़ सका है आज तक भला, जिस रात भानवी  एक पोते की दादी बनी उससी रात उसकी बहू का किसी अंजान कारण से देहांत हो गया, लोगों ने सारा दोष भानवी और उसकी बेटी पर ही लगाया, कहा उसी  ने कुछ कर दिया अपनी बहू को अपनी बेटी के साथ मिल कर , अभी इस  गम से  वो उबर भी न्ही पाई थी की उसकी छोटी  बेटी को भी उसके ससुराल वलेली भी  उसके यहा छोड़  गये, उन्होने कहा की तुम्हारे खानदान  की कोई इज़्ज़त न्ही है, तुमने अपने बेटे  की 3 शादिया कराई और तीनो बहुओं को मार डाला, तुमने अपने समधी से शादी की, इस  बात पर लोग हम पर  ताना मारते  है, हम उनकी और नही  सुन सकते उनके ये ताने, इसलिए अपनी बेटी को आप ही संभालिए,

जिस वक़्त वो लोग भानवी  की बेटी को उसके पास छोड़  कर गये वो मा बनने वाली थी, कुछ दिन बाद उसने एक बेटी को जन्म दिया, उसकी ससुराल से देखने क लिए कोई नही  आया सिवाए उसके पति के वो भी अपने पारीवार को बिना बताए, वो अपनी पत्नी के  साथ अवश्य  था पर अपने परिवार के  दबाब क कारण उसने भी  अपनी पत्नी को अपने साथ रखने में असमर्थता जताई और अपनी पत्नी से कहा "मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ पर मुझे माफ़ करना क्योंकि मैं तुम्हे अपने साथ नही रख सकता",

    भानवी  के  बेटे  ने अपनी सौतेली बहनो  को अपने साथ रखने का फेसला कर लिया था पर एक शर्त पर, और  वो ये रखी की वो दोनो उसके बेटे  की ऐसे ही देखबाल करेंगी जैसे एक मा करती है और यदि ऐसा का कर सके तो वो इस घर से जा सकती है या फिर अगर वो चाहे तो दूसरी शादी भी कर सकती है उसे कोई समस्या नही होगी, किंतु अगर वो इस घर में रहती है तो  उनकी इस  घर में जगह सिर्फ़ एक नौकरानी की ही होगी,  भानवी  की बेटीया   इस शर्त पर मान गयी क्यों की इसके सिवा  उनके पास और कोई रास्ता भी नही नज़र आ रहा  था और ना कोई सहारा था उनके पास , और इस  तरह उन्होने अपने भाई के  घर पर एक नौकरानी बन कर ज़िंदगी बिताने का फेसला कर लिया..





ज़िंदगाई की आख़िरी साँसे गिनती हुई भानवी  आज बस ये सोच रही थी आख़िर क्या गुनाह हुआ था मुझसे, आख़िर किस बात की मिली ये सज़ा मुझे, मेरी बेटियों को एक नौकरानी का जीवन बिताना पड़  रहा है, बड़ी बेटी को तो पता भी नही की उसकी मा आज आख़िरी साँसे गिन रही है, आख़िर जीवन में मैने क्या ग़लती कर दी जिसकी सज़ा मैने ज़िंदगी भर भोगी और आज मेरे बच्चे भोग रहे है, क्या मेरी वज़ह से ही मेरे बच्चों की खुशियों में ग्रहण लगा रहा, ये ही सोचते सोचते भानवी  मौत की गोद  में सदा के  लिए सो गयी और ये सवाल छोड़  गयी की आख़िर क्या खता  हुई थी मुझसे……………