Monday 15 April 2013

घोटाला -भ्रस्टाचार(Article)



आज कल हम लोग जहाँ भी अपनी निगाहें दौडाते हैं अपने चारो तरफ़ हर तरफ़ कोई न कोई नया घोटाला या भ्रस्टाचार
नज़र आता है।
कभी कोई यह घोटाला कभी कोई वो घोटाला आदि आदि।
आज देश की यह हालत हो गयी है कि अगर कोई आदमी इमानदारी से सच्चाई से अपना काम नीष्ठा पूर्वक कर्ता है तोह उसे नीची निगाहों से देखा जाता है।
तोह प्यारे भाईयो ओर बहनों हमने बहुत सोचा
ओर सोच के बाद हम इस निष्कर्स पर पहुँचे हें कि अपने देश में भ्रस्टाचार, रिसवत और इन घोटालो को कानूनी और सरकारी मान्यता मिलनी चाहिये। और जो लोग भ्रस्टाचार रिसवत घोटालो में शामिल होते हैं उन्को पुरस्कार दिया जाना चहिये। और उन्को प्रोतसाहित करना चहिये कि वो लोग आगे और भी बडे बडे घोटालो भ्रस्टाचार रिसवत को लें।
ओर जो लोग इमानदारी से रहेते हैं उन सभी लोगों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिये । और आज के समय मैं इमानदार लोगो को सज़ा होनी चहिये। जिस्से इन इमानदात लोगो की आने वाली पीडियाँ देखे की इमानदारी का फ़ल कैसा होता है। ओर इससे सबक ले कर वो लोग भी आगे घोटालो भ्रस्टाचार रिसवत को अन्जाम दे सके ओर अपने और अपने परिवार का नाम गोरानवित कर सके। जो उन के पूर्वजो ने इमानदार हो कर मिट्टी मैं मिला दिया है।
और देखा जाये तो हमारे देश का विकास भी तभी हो पयगा जब हम सब लोग मिल कर घोटालो भ्रस्टाचार रिसवत को अन्जाम देगें ।
तभी हमारा देश आर्थिक सामाजिक रूप से बराबर होगा।

आइये अब समय आ गया है
हम सब लोगो को एक साथ मिल कर एक काम करना है।
तोह
हम सब लोग मिल कर सपथ लेते हैं कि\
बिना घोटालो भ्रस्टाचार रिसवत के हम सब कोई काम नही करेंगे।
आइये देश को ओर देश से जयादा अपने आपको हम सब आर्थिक रूप से सम्रध्य बनाये।
जब हम सम्रध्य होंगें तभी देश सम्रध्य होगा।


धन्यबाद
लेखक
प्रवीन मिश्रा








Saturday 13 April 2013

huye kitne mazbur hum


"waqt ke hathon huye kitne mazbur hum, rehte the kabhi ek dusre ke dil mei aur aaj dur huye hum, karte the mohbbat ek doosre se beintahaa kabhi,
lutaate the ek dusre pe zindagi kabhi, unki ek mushkaan pe kurbaan hoti thi apni har khushi bhi, aaj waqt ke saath huye kitne mazbur hum, dilon mein rehne wale kis kadar dur huye ab, karte the mohabbat jisse bepanaah ussi se iss kadar rooth gaye hain hum, waqt ke haathon huye itne kyon mazbur hum, rahte the dilon mein kabhi aaj dur huye hum.."

Wednesday 10 April 2013

ईश्वर वाणी -ishwar vaani-27 **जगत की उत्पत्ति **

किसी ने हमसे पुछा की तुम कहते हो की जगत की उत्पत्ति जल यानि की पानी से हुई है लेकिन हमने तो सुना है की जगत की उत्पत्ति जल से ही नहीं अपितु पंचतत्वो से हुई है, अब बताओ क्या सही है और क्या गलत????



हमने ये ही सवाल ईश्वर से पूछा की हे प्रभु आपने ही मुझे बताया था की जगत की उत्पत्ति जल से हुई है, किन्तु कुछ लोगों का मानना है की जगत की उत्पत्ति पंचतत्वों के मिलने से हुई है, क्या सत्य है प्रभु हमे बताये अवं हमारा मार्दर्शन करें।।।।



ईश्वर ने कहा: इस समस्त श्रृष्टि में समस्त भोतिक अवं नाशवान वस्तुओं का निर्माण जल से हुआ है, यहाँ तक की प्राणी के शरीर की रचना भी केवल जल से ही हुई है, किन्तु प्राणी में प्राण तभी आते हैं जब समस्त श्रृष्टि से उसे पंच्तत्वों की प्राप्ति होती है(अग्नि, जल, वायु, धरती, आकाश),


हमने पूछा प्रभु से की हे प्रभु जरा खुल कर बता, मुझे समझ नहीं आया की जो भोतिक है अर्थात जो नाशवान है उसकी उत्पत्ति जल से हुई है किन्तु जो नाशवान नहीं है जैसे जीवन उसकी उत्पत्ति पंचतत्वों से हुई है, इसका क्या अभिप्राये है, क्या प्राण नाशवान नहीं होते मृत्यु आती है तब हमारे प्राण ही तो हमारा साथ छोड़ जाते हैं और हम मृत्यु को प्राप्त होते हैं, फिर भला जीवन को आपने भोतिकता से क्यों अलग किया हुआ है???



ईश्वर ने कहा: जो नाशवान है केवल वो ही जल से उत्पन्न हुआ है, जैसे एक बालक का जन्म माता पिता के प्रेम रुपी मिलन के पश्चात प्राप्त हुए प्रेम रुपी जल के कारण ही उसका जन्म होता है किन्तु उसमे प्राण के लिए अन्य वस्तुओं की  आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह ईश्वर के पवित्र जल से इस श्रृष्टि का एवं समस्त भोतिक स्वरुप समस्त बी ह्राह्मांड का निर्माण हुआ  है, एवं प्राणी के भोतिक एवं  नाशवान प्राणी शरीर का  निर्माण हुआ है, किन्तु उसमे प्राण जाग्रत करने के लिए ही उसमे अन्य तत्वों का समावेश किया गया है। 


प्रभु कहते हैं की प्राण नाशवान नहीं है क्यों की प्राण आत्मा है और आत्मा परमात्मा का ही एक स्वरुप है जो की जन्म मरण से दूर होती है,आत्मा एक भोतिक शरीर त्याग कर दूसरा  भोतिक शरीर धारण करती है जैसे मानव अपने पुराने वस्त्र त्याग कर नए वाष्ट्र धारण करता है, इस प्रकार ये जन्म मरण से दूर एवं भोतिकता से दूर है, इसलिए इसकी उत्पत्ति प्राणी में प्राण डालने हेतु की गयी है जो की  ईश्वर द्वारा निर्धारित पंच्तातों से बनी है, उन पंचतत्वों से मिल कर एवं परमेश्वर का साध्य पा कर ही आत्मा का अविशार इश्वर द्वारा हुआ है जो की किसी भी भोतिक शरीर में आ कर उसमे प्राण का संचार करती है, 
     किन्तु प्राणी का शरीर जो की नाशवान है क्यों की इसकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड के अन्य नाशवान भोतिक बस्तुओं की तरह ही जल से हुई है किन्तु आत्मा नाशवान नहीं है क्यों की वो अभोतिक है। 


प्रभु कहते हैं की  प्रलये  के समय  समस्त भोतिक वस्तुओं का नाश होगा, सब कुछ ख़त्म हो जाएगा किन्तु  आत्मा  चाहे  उसने शरीर में रह कर अछे काम करे हो या बुरे उनका नाश न होगा यधपि  उनके कर्मोनुसार  नरक अथवा स्वर्ग की प्राप्ति होगा, और जो अछे कर्म  करने वाले अथवा जिन आत्माओं ने  अपने   वर्तमान   शरीर   में   अछे और  नेक  कर्म करे  है  उन्हें   वो  परमेश्वर श्रृष्टि  निर्माण के दुसरे चक्र में फिर  दुबारा भेजेगा, ताकि श्रृष्टि निर्माण के समाये के मध्ह्यम समय के शुरूआती समय तक  बरैया न उत्पन्न न हो सके। 

Ishwar Vaani-26**(dhan-sampada)**

Ishwar kahte hain jiske paas (dhan-sampada) hai usse aur diya jaayega kintu jiske paas kam hai ya fir nahi hai usse wo bhi chheen liye jaayega jo uske paas hai, iss waakya se Ishwar ka artha hai jiske paas Ishwriye gyaan hai, jo sadev Ishwariye maarg par chalta hai avam sadev chalne ka pryant karta hai, uss parmeshwar par aseem aastha rakhta hai aise manushyon ko aur bhi adhik Ishwariye saadhya milega, Ishwar kahte hain unka abhipraaye inn bhotik dhan-sampada se nahi apitu Bhakti avam vishwaas, aastha avam Ishwariye gyaan ke prachaar avam prasaar se hai, jinke paas ishwariye ye dhan-sampada hain unhe aur di jaayengi taaki duniya ke har kaune kaune mein ja kar unn manushyon ko satmaarg par laaya ja sake to Ishwariye maarg athawa kaarye se vimukh ho gaye hain.




Ishwar kahte hain jinke paas nahi hai ya kam hai unse wo bhi chheen liya jaayega jo unke paas hai arthaat jinke paas ishwar mein alpvishwaas ya avishwaas hai, jo kewal paakhand karte hain avam dikhaawa karte hain Ishwariye Mahima ka, aise manushyon se jo bhi unke paas Ishawariye Kripa hai, vishwaas hai jo bhi chheen lee jaayegi, aur kewal unhe hi di jaayegi jo poori tarah se Ishwariye maheema ka gaan karte hain, poorn roop se jo uss par vishwaas rakhte hain, ye ishwariye dhan-sampada kewal aise hi manushyon ko pradaan ki jaayegi.






Ishwar Vaani(Hindi)-25 **तुझ **

ईश्वर  कहते  हैं की जो कोई खुद को तुझ समझेगा, खुद को छोटा समझ के सदा गरीब, असहाय, निर्बल, विकलांग, जरूरतमंद एवं पशु-पक्षियों के प्रति न सिर्फ दयावान होगा अपितु खुद को तुझ समझ के इनकी सेवा-सत्कार करेगा उसका हर पाप छमा  किया जाएगा एवं उससे मृत्यु पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति होगी, किन्तु जो कोई खुद को बड़ा समझ के अवं अपने अहंकार एवं धन-दौलत के नशे में मस्त कर इनका निरादर करेगा वो चाहे जितनी भी पूजा-पाठ कर ले, दान-धर्म कर ले किन्तु उसका पाप छमा नहीं किया जाएगा, उसका अहंकार में किया दान ईश्वर कभी स्वीकार नहीं करेंगे, ऐसे मनुष्य मृत्यु पश्चात स्वर्ग के अधिकारी नहीं अपितु जन्म-जन्मान्तर तक मृत्यु लोक में रह कर विभिन्न यौनियों के दुखों को भोगते हैं, किन्तु जो मनुष्य भले ईश्वर भक्ति न करे किन्तु जो कोई खुद को तुझ समझ के , खुद को छोटा समझ के सदा गरीब, असहाय, निर्बल, विकलांग, जरूरतमंद एवं पशु-पक्षियों के प्रति न सिर्फ दयावान होगा अपितु खुद को तुझ समझ के इनकी सेवा-सत्कार करेगा उससे निश्चाय ही स्वर्ग की प्राप्ति होगी,




ईश्वर कहते हैं जो लोग सदेव भोतिक सुखों की प्राप्ति में लगे रहते हैं, जो लोग न उस परमेश्वर का नाम लेते हैं अपितु सदेव भोग विलास में लगे रहते हैं,गरीब, असहाय, निर्बल, विकलांग, जरूरतमंद एवं पशु-पक्षियों के प्रति दयावान नहीं होते अपितु सदेव अपने हित अवं अपने भोतिक सुखों के बारे में ही सोचते हैं उससे निश्चय ही मृत्यु के पश्चात कठोर पीड़ा का सामना करना पड़ता है, इसके साथ ही उन्हें कई योनियो तक इस्सी धरा पर जन्म-मरण के बंधन में बंधा रहना पड़ता है,



ईश्वर कहते हैं की परम सुख तो इश्वरिये सुख हैं जो मृत्यु के पश्चात प्राप्त होता है, प्रभु कहते  हैं की उन्होंने मानव जीवन उस परमेश्वर का साथ पाने और उसके द्वारा दिए गए विशेष उद्देश्यों की पूर्ती हेतु ही मानव को धरती पर भेजा  है किन्तु मानव अपने मूल कर्तव्यों को भूल तमाम भोतिक वाश्तुओं के भोग-विलास में लींन  हो कर ईश्वरिये  उद्देश्यों को भूल गया अथवा भूलता जा रहा है, ऐसे में मानव उस सच्चे सुख जो की इश्वरिये  साध्य में है उससे विमुख हो कर दुखों के भवसागर में पड़ कर जन्म जन्मान्तर की पीड़ा भोग रहा 


प्रभु कहते हैं मानव आज भोतिक सुखों को प्राप्त कर खुद को श्रेष्ट अवं बड़ा समझता है, किन्तु वो ये नहीं जानता की श्रेष्ठ अवं बड़ा केवल वो ही हो सकता है जिससे मैंने चुन हो, और मैं केवल उससे ही चुनता हूँ जो मेरी बताई गयी बातों पर चलता है अवं उससे निःस्वार्थ भाव से मानता है !!

jo hote hain kabi behad kareeb aakhir ek din dur chale jaate hain........

sabse pyaari lagati mujhe dosti tumhari, sabse pyaari lagti thi saadagi tumhari,  kitna haseen lagta tha saath tumhara, kitnaa yaad aata tha wo saath guzara lamha saara, yaad usse kar mushkura lete the hum, apnee adhuri si lagti zindagi mein beete palon ko yaad kar kuch waqt ke liye hi gi lete the hum, par duniya hi reet hai  waqt ke saath sab badal jaate hain waqt ke saath sab dur chale jaate hain, jo hote hain kabi behad kareeb aakhir ek din  chhod ke hume akela chale jaate hain, khushi to bas pal do pal ki hoti hai par zindagi mein humesha ke liye aansu de jaate hain, waqt ke saath sab dur chale jaate hain, waqt ke saath sabse haseen rishta bhi tod jaate hain........

kitnee jaldi waqt ke saath har rishta badal jaata hai


kitnee jaldi waqt ke saath har rishta badal jaata hai, jo hota hai kabhi paas jitna utnaa hi dur chala jaata hai, kabhi to lagta hai hume ki unke jaisa koi  nahi par badalte waqt ke saath hota hai ahsaas ki auron mein aur unme koi fark nahi, duniya ki sabse haseen cheez samajhte hain jiske saath ko pa kar kabhi par badlte waqt ke saath hota hai ahsaas ki iss rishte mein ab wo pahle wali baat nahi, aata hai khyaal dil mein fir kya ye sachhai hai rishte ki ya fir wo sachhai thi rishte ki jab wo rahte the dil ke itnaa kareeb jo ho chuke dur mujhse abhi, lagta hai waqt samajhne mein sachh ko, lagta hai waqt apnaane mein iss hakikat ko, par baldle waqt ke saath hi sab samajh aata hai kyon ki badalte waqt ke saath har rishta  badal jaata hai, jo hota hai kabhi paas jitna utnaa hi dur chala jaata hai....
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Thanks and Regards
 *****Archana*****