Tuesday 30 April 2013

डर लगता है -kavita











डर लगता है अब नज़ारे मिलाने में, डर लगता है अब बाहर जाने में, क्या बता मिल जाए मुझे भी कबि कही कोई हवस का पुजारी 
डर लगता है अब रिश्ते बनाने में, डर लगता है अब रिश्ते निभाने में, क्या पता कब कौन बन जाए मेरी अस्मत का सौदागरी, 
डर लगता है अब अपनों से दर लगता है अब सपनो से, डर लगता है अब हर रिश्ते नातों से, क्या पता कब बन जाए कोई अपना ही मेरी लाज  का लुटेरा  और जिस्म का अभिलाषी,
डर लगता है अब हर करीब आने वाले से, डर  लगता है अब हर मुस्कुराने वाले से, जाने कब बन जाए उसकी आखे मेरे जिस्म की प्यासी,
डर लगता है अब जीवन की हर उमंग से, डर लगता है अब नयी  हर तरंग से, था कभी  इंतज़ार ज़िन्दगी के किसी मोड़ पे किसी का साथ पाने का, था बस एक ख्वाब उनके साथ हर पल जीने का, 
थी बस इतनी से तमन्ना ज़िन्दगी उनकी बाहों में बिताने की, चाहत थी इतनी सी की कभी तो कही मिलेगा जो होगा सिर्फ मेरा, साथ उसका पा कर ख़ुशी रहने की बस ये ही हसरत मैंने बस की थी,
सोचता था मन ये मेरा मिलेगा कही तो मुझे वो जिसका दिल होगा सबसे  सच्चा होगा जो इस जग में सबसे अच्छा,
दुनिया की हर बुराई  से कोशों वो दूर होगा, किसी और के नहीं बस मेरे ही वो करीब होगा, रहे चाहे दुनिया में कही भी वो पर उसके दिल में सिर्फ प्यार तो मेरे लिए ही होगा,
पर जैसे जैसे मुझे आने लगी है समझ, दिखने लगे है इस दुनिया के रंग और नज़र आने लगे है लोग मुझे बेरंग,
आज वक़्त और हालत को समझ कर लगता है डर की न मिल जाए मुझे भी कही मोहब्बत के नाम पे लुटेरा कोई, 
डर लगता है न मिल जाए मोहब्बत के नाम पे हवस  का देवता  कोई, क्या पता मुझे भी मिल जाए आशिक के नाम पे कोई व्याभिचारी, डर लगता है अब उस रिश्ते से भी जिसका इंतज़ार था मुझे कभी कही मिलने का, था एक सपना संग उसके एक छोटा सा आशियाना बसाने का,
पर अब डर लगता है न मिल जाए मुझे अब कोई दुराचारी,  डर लगता है उसी से न मेरी शादी हो जो हो किसी का  बलात्कारी ,
डर लगता है अब हर शख्स से, डर लगता है अब हर साए से, डर  लगता है अब खुद से, न बन जाऊ मैं  किसी का  शिकार कही, न मिल जाए ज़िन्दगी में मुझे  जिस्म के भूखे  और  हवस के पुजारी ये बलात्कारी।।




करते हैं तुमसे कितना प्यार

“Karte hain tumse kitna pyaar ye tumhe hum bata nahi sakte, rah nahi sakte bin tumhare ye bhi tumhe hum jataa nahi sakte, bade bebas hain hum tumhare ho bhi nahi sakte aur tumhe paa bhi nahi sakte”


" करते हैं तुमसे कितना प्यार ये तुम्हे हम बता नहीं सकते, रह नहीं सकते बिन तुम्हारे ये भी तुम्हे हम जता नहीं सकते, बाद बेबस हैं हम तुम्हारे हो भी नहीं सकते और तुम्हे पा भी नहीं सकते "

ईश्वर वाणी -34, ishwar Vaan-34

नमस्कार दोस्तों आज फिर हम हाज़िर है ईश्वर वाणी में आपसे ईश्वर द्वारा बताई गयी बातों को आपसे शेयर करने यानि की बाटने, दोस्तों हमने कुछ सवाल प्रभु से करे जो हमारे मन में उठे थे और उन सवालों का जवाब प्रभु ने बड़े ही सहज और आसन शब्दों में हमे दिया,  आप अब सोच रहे होगे की आखिर हमने क्या सवाल प्रभु से करे और उनका क्या जवाब उन्होंने हमे दिया, चलिए हम और इंतज़ार आपको नहीं करवाते और बताते हैं की क्या सवाल हमने उनसे करे और क्या उन्होंने हमे उनका जवाब दिय। 


प्रश्न-१ ?  हमने प्रभु से पूछा की भगवंत पाप और गलती करने में क्या अंतर है??

प्रश्न- २? हमने प्रभु से पूछा की भगवंत पाप और गलती करने वाला मनुष्य क्या छमा का पात्र होता है या फिर नहीं या फिर गलती करने वाला होता है और पाप करने वाला नहीं या फिर पाप करने वाला छमा के काबिल  होता है और गलती करने वाला नहीं, प्रभु कृपया मार्गदर्शन करे?


उत्तर-१* 
                                                      पाप   
प्रभु बोले " जो कार्य अपने स्वार्थवश किया जाता है तथा जिसमे केवल खुद को ही फायदा होता है किन्तु दुसरे किसी निर्दोष प्राणी को तकलीफ होती है, लेकिन  ऐसा कार्य करने वाला जानता है की उसके कार्य से किसी निर्दोष को तकलीफ होगी किन्तु फिर भी वो अपने स्वार्थ के वश में और केवल खुद के फायदे के लिए और खुद की ख़ुशी के लिए  ऐसे कार्य करता है तो ऐसे कार्य पाप की श्रेणी में आते हैं, प्रभु कहते हैं की पाप करने वाला जातना है की वो क्या कर रहा है और उसके इस कार्य से किसे नुक्सान और उसे फायदा हो रहा है किन्तु फिर भी वो ऐसा करता चला जाता है, ऐसे व्यक्ति के कार्य को पाप कहा जाता है जो सब कुछ जान करा और समझ कर करते है। "


                                                गलती 

प्रभु बोले " जो कार्य नादानी और अज्ञानतावश किया जाता है यधपि उसके कार्य से किसी को नुक्स्सान भले हुआ हुआ हो वो गलती की श्रेणी में आता है क्यों की ऐसा करने वाले को सही और गलत का अंदाजा ही नहीं था, यदि होता तो वो ऐसा कार्य कदापि नहीं करता जिससे किसी का अहित होता, गलती करने वाले व्यक्ति को जब भी अपनी गलती का अहसास होता है तो वो अपने कार्यों के लिए छमा याचना करता है अवं अपने कर्मों का प्रायश्चित करने को सदा तत्पर रहता है, 

प्रभु गलती करने वाले को एक अबोध बालक के सामान मानते हैं, वो कहते हैं जिस प्रकार एक अबोध बालक अज्ञानतावश खेल ही खेल में कोई कीमती वष्टु खो देता है अथवा तोड़ देता है फिर भी दंड का भागी नहीं बनता क्यों की उसने ऐसा अज्ञानतावश किया है, यदि वो जानता की उसने किया क्या है या कर क्या रहा है तो वो ऐसे नुक्सान वाले कार्य को करता ही नहि। "

इस प्रकार प्रभु ने हमे गलती और पाप में अंतर समझाया।



उत्तर- २*                                पाप 


    प्रभु कहते हैं की जो कार्य अपने स्वार्थ सिध्ही के लिए किये जाते हैं तथा जिनके करने से किसी निर्दोष प्राणी का अहित होता है ऐसे कार्यों को पाप कहते हैं जो कदापि छमा के काबिल नहीं होते, क्यों की ऐसे कार्य स्वार्थवशऔर केवल अपने हित के लिए किये जाते है और करने वाले को सही और गलत की पूर्ण समझ होती है फिर भी व्यक्ति अपने स्वार्थ की पूर्ती हेतु दुसरे निर्दोष प्राणी को नुक्सान पहुचाता है, ऐसे मनुष्य छमा के काबिल नहीं होते। 

प्रभु कहते है भले पापी व्यक्ति दंड से भयभीत हो कर छमा मांग ले, अपने पापों के प्रय्च्चित करने को भी तैयार हो जाए फिर भी उसे दंड मुक्त नहीं करना चाहिए क्यों की जब वो पाप कर रहा था तब भली प्रकार वो अपने कार्यों के लिए नियुक्त डंडों को भी वो जानता था किन्तु फिर भी वो ऐसे कार्य करता गया, इस प्रकार ऐसे मनुष्यों को छमा करना अनुचित होग। 

                                          गलती 

    प्रभु कहते हैं जो कार्य नासमझी में किये जाते हैं तथा जिनके करने करने का सही गलत का ज्ञान नहीं होता उन्हें गलती कहते हैं, ऐसे कार्य अज्ञानता के अभाव में किये जाते हैं तथा ऐसे कार्य करने वाले व्यक्ति छम के पात्र होते हैं, क्यों ऐसे व्यक्तियों को जब अपनी गलती और अपने कार्यों का ज्ञान होता है तब वो बिना विलम्ब करे अपने कार्यों के प्रायश्चित के लिए तैयार हो जाते हैं, तथा ऐसे मनुष्य को छमा  करना उचित होता है। 







Saturday 20 April 2013

सत्य वचन

ये जरुरी नहीं की किसी को घायल और चोट पहुचाने के लिए किसी हथियार की जरुरत पड़े, शब्दों द्वारा भी किसी को चोटिल और घायल किया जा सकता है, किसी हथियार से घायल व्यक्ति तो जल्द ही उस चोट से उबर आता है किन्तु शब्दों से घायल व्यक्ति को  उबरने में काफी समय लगता है या फिर कभी कभी वो पूरी ज़िन्दगी ही नहीं उबर पाता , इसलिए कभी कोई ऐसी बात न करो किसी से जो किसीके  दिल को घायल करे और न ऐसे किसी शख्स से कोई रिश्ता रखो जिसके बाते तुम्हारे दिल को कभी न भरने वाला जख्म दे जाए !




आर्चु  वाणी 



ईश्वर वाणी-33 **Ishwar Vaani**-33**ईश्वर कहते हैं हमे अपने शरीर की सुन्दरता और स्वचाता की अपेक्षा अपनी आत्मा और अपने ह्रदय की सुन्दरता और स्वछता पर ध्यान देना चाहिए**



ईश्वर कहते हैं हमे अपने शरीर की सुन्दरता और स्वचाता की अपेक्षा अपनी आत्मा और अपने ह्रदय की सुन्दरता और स्वछता पर ध्यान देना चाहिए, प्रभु कहते हैं ये जो भोतिक है जो नाशवान है हमे इससे मोह नहीं रखना चाहिए, यदि मोह रखना है तो अपनी आत्मा का रखो क्यों की भविष्य में एक दिन एक भोतिक शरीर तुम्हारा साथ छोड़ देगा किन्तु तुम्हारी आत्मा है तुम्हारे कर्मों अनुसार उस परमेश्वर से तुम्हारा साक्षात्कार कराएगी, इसलिए हे मनुष्यों जितना समय तुम अपने शरीर को सुन्दर और स्वाच्या बनाने में लगा रहे हो उसका एक तिहाई भी अगर अपने ह्रदय और अपनी आत्मा की शुध्ही में लगाओ तो तुम्हे तुम्हारे पापो के लिए उस परमेश्वर द्वारा छमा मिल सकती है जिससे तुम्हारा ये मानव जीवन सार्थक हो सकता है और तुम्हे अनन्य मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, इसलिए हे मनुष्यों अपने भोतिक शरीर का मोह त्याग और अपने झूठे अभिमान को त्याग और परमेश्वर के द्वारा बताये गए मार्ग पर चल, अगर मानव ने इश्वरिये मार्ग न अपनाया तो ईश्वर को भी अपना भयानक रूप दिखाना होगा, प्रभु कहते हैं अगर उन्होंने अपना विकराल रूप दिखा दिया तो वो दिन इस समस्त धरा का अंतिम समय होगा, प्रभु कहते हैं हे मनुष्यों तुम मुझे मजबूर मत करो की अपने द्वारा बनायीं गयी इस दुनिया को मैं खुद ही समय से पहले इससे नष्ट कर दू, इसलिए हे मनुष्यों सुधर जाओ क्यों की अभी भी समय है तुम्हारे पास सुधरने का पर आने वाले समय में तुम्हे ये अवसर भी प्राप्त न होगा और तुम्हारे पास केवल पछताने के अतिरक्त और कुछ न बचेगा ! 

 थैंक्स एंड ग्रेट रेगार्ड्स
                                                                                                    अर्चु 



ईश्वर -वाणी-३ २ **Ishwar Vaani**-31**जन्म-मरण **

नमस्कार दोस्तों हम फिर हाज़िर हैं अपनी प्रभु वाणी में प्रभु के वचनों के साथ, दोस्तों हमने कुछ सवाल प्रभु से करे और उन्होंने हमे उनका जवाब दिया बड़े ही सहज तरीके से, आप भी जानिये की हमने उनसे क्या पूछा और उनका जवाब क्या रह… 


हमने पूछा प्रभु दुनिया में कई जगह लोग कहते हैं की हमे ये जीवन केवल एक बार ही मिलता है किन्तु कई लोग कहते  हैं की जन्म-मरण का दौर तो हम कई युगों से देखते आ रहे हैं किन्तु हमे याद नहीं कुछ किन्तु हम इससे पहले भी थे आज भी हैं और आगे भी रहेंगे, क्या सच है प्रभु आप हमे बताये कृपया??

   
प्रभु बोले ये सच है की ये जन्म तुमने पहली बार नहीं लिया है, इससे पहले भी तुम इस दुनिया में कई बार आ चुके हो, प्रभु कहते हैं ८ ४ लाख योनियों के बाद ये मानव जीवन मिलता है ताकि मेरे द्वारा बताये गए मार्ग पर चल कर मोक्ष को प्राप्त करो किन्तु जो लोग भोग-विलाश में विलीन रहते हैं, भोतिक सुखों को ही परम सुख मानते हैं उन्हें मोक्ष नहीं मिलता, जो काम,क्रोध, लोभ, मोह  और  अहंकार के अधीन रहते हैं वो मुझे कभी नहीं  पा सकते, ऐसे लोग सदा जीवन और मृत्यु के चक्र में उलझे  रहते हैं किन्तु जो लोग अपने इस मानव जीवन में मेरी बताये गए मार्ग पर चलते हैं उन्हें फिर दुबारा इस मृत्यु लोक में आने की आवश्यकता ही नहीं है,


प्रभु कहते हैं की विभिन्न जगह पर मैंने विभिन्न रूपों में जन्म लिया और वह के लोग मुझे वह के नाम और रूप में जानते और पूजते हैं,  वहा  के लोगों की मान्यता है की ये ही जन्म आखिरी है और इसके बाद कोई और जन्म नहीं है, किन्तु सच तो ये है उन लोगों ने मेरी बातों को ठीक से नहीं समझा, प्रभु कहते हैं की ये जन्म तो केवल एक बार ही मिलता है जो मोक्ष को पाने का मार्ग है, और यदि तुमने इस जन्म अपने जन्म-जन्मान्तरों के पापों के लिए प्रभु से माफ़ी नहीं मांगी तो युगों युगों तक पछताओगे क्यों की फिर तुम इस मानव जन्म को नहीं प् सकोगे, ये जन्म तुम्हे तुम्हारे पापों के समस्त प्रायश्चि के लिए मिला है, इसलिए हे मानवो ईश्वर द्वारा बताये गए सत्मार्ग पर चलो और मोक्ष को प्राप्त हो !


  

Ishwar Vaani-30**Naari ke vishaye mein**

namskaar doston hum aaj fir haajir hain apni Ishwar Vaani mein uss parmeshwer ke vachan/vaani aapse baantne ke liye, doston humne Ishwar se kuch sawal kiye jo humare mann mein utpann huye the aur unka bahut sahaz tareere se uss parmeshwar ne hume jawab diya, chaliye hum aapko batate  hain ki humne uss parmeshwar se aise kya sawal kiye aur unka kya jawab unhone hume diya....



humne prabhu se puchha "Hey Prabhu hume bataye ki jaise shaashtron mein likha hai Naari ke vishaye mein ki ek naari ko apne pati par poorn roop se samarpit hona chaahiye, yadhhapi uska pati uss par chaahe jaise bhi atyaachaar kare kintu usse sab kuch sahna chaahiye, usse ye samajhna chaahiye ki ye uske apne pichhale janmon ke paap hain jo iss janm mein apne pati dwaara kiye gaye atyaacharon se dhul rahe hain arthaath wo unse paap mukt ho rahi hai, humne kaha ki prabhu ye kaisa nyaaya hai aapka jahan ek aurat ko pati vrata kah kar uska shoshan kiya jaata hai wahi purush ko aapne hi itnaa swatantra chhoda hua hai, jabki aap to kahte hain ki aapki nazar mein stree purush sab baraabar hai fir stree ka itnaa shoshan kyon prabhu?????


Prabhu ne kaha, " unhone kuch vayavshtaaye banayi thi taaki srishti mein ek praani ka doosre praani par arthaath maanav ka maanav ke prati vyavhaar baraabari arthaat samaanta, prem, vishwaas, bhaichaare, netiktaapoorn aur ek doosre ko samman dene wala ho, koi shaktiwaan shaktiheen ka shoshan na kare, shaktiwaan aur saamarthpoon praani ashaktiheen aur asaamarthpoorn praani ki sahaayata hetu sada tatpar rahe,

   Ishwar kahte hain unhone shrishti nirmaan aur uske sanchaalan hetu Stree aur Purush donon ko samaan samajh kar hi iss shrishti par bheja tha kyon ki donon mein kisi ek ki majoodgi bina iss shrishti par jeevan ka aana hi asambhav hai, kintu samay ke saath maanav ne hi kuch vyavshtaye aur parmparaye banani shuru kar di, haalaki shuruaat mein unka uddeshya achhe kaarya ke liye hi nirdhaarit hua tha jaise"naari ko sada apne steetva ka paalan karna chaahiye,ye vayashtha isliye banayi gayi thi taaki bhavishya mein kisi bhi prakaar ke lobh laalach mein aa kar wo path bhrasht na ho jaaye athwa koi usse behlaa fuslaa kar path bhrasht kar ke vyaabhichaarini na bana de, isliye ye kaha gaya ki naari ko sada apne sateetva ka paalan karna chaahiye chaahe uska pati uss par kitne hi anaachaar kyon na kare wo inhe apne poorva janmon ke paapon ka fal samajh kar chupchaap sahti rahe kintu kisi behkaave mein aa kar vyaabhichaarini na ban jaaye, aisi vayashta isliye kari gayi taaki buri pravatti ke log usse ashaaye jaan kar usse kahi patit na kar de, patit hone se achha hai ki wo apne pati ke dwaara mile atyaachaar hi sahtee rahe",


kintu prabhu ye bhi kahte hain ki iske saath ye bhi vyavshta ki gayi jo purush apni patni avam ghar ki sabhi streeyon ka samman nahi karta usse samast devi-devta rusht ho jaate hain, bhale wo apnee taakat ke nashe mein aa kar apne ghar ki kisi bhi stree par anaachaar kare par ek nishchit samaye aayega jab usse uske iss kukritya ke liye uss parmeshwar dwaara jawab maanga jaayega, stree sada purush ke liye poojniye, aadarniye, sahyogini, sachhi saathini, aur ek sachhi mitra rahi hai, kintu jab ek purush uss par atyaachaar karta hai tab stree purush ke ye sambhandh tootne lagte hain, aur jab ye pavitra sambhandh tootne lagte hain to aise purush se wo Ishwar bhi prasann nahi rahta aur samaye aane par aise purushon ko kathor dand deta hai,

Ishwar kahte hain ki stee khud itnee saksham hai ki aise purushon ko khud dand de kintu praachinkaal mein ye vyavshtha isliye banayi gayi taaki stree waisa hi vyavhaar na kare jaisa purush kar ke ishwariye dand ka bhaagi banta hai, stree ko dooshon se mukta rakhne hetu hi praachinkaal mein ye vyavshta banai gayi thi"


fir humne Ishwar se puchha ki prabhu ye kaisi vyavhtha aapne banai hai ki ek purush to chaahe jitnee shaadi kar le kintu ek aadarsh stree kewal ek hi shaadi kar sakti hai, usse pati vrata kah kar kewal ek hi shaadi ki anumati aapne di hai, ye bhed bhaav kyon prabhu??

Ishwar ne kaha, " Paramparaye, Vyavshtaye, Reeti-Riwaaz, Vesh-bhoosha, Booli-Bhaasha ye sab desh/kaal/paristithiyon ke anusaar badalta jaata hai, Prabhu kahte hain ki unhone koi parampara, vyavshta, reeti-riwaaz, vesh-bhoosha aadi ka nirmaan nahi kiya, unhone kewal jeev ka nirmaan kiya hai, aur jeev ne apne jeevan ko suchaaru roop se chalaane ke liye hi inn samast cheezon ka nirmaan kiya, haalaki uska niramaan karte samay uddeshya nek tha kintu badalte samaye ke saath unme khaamiya aane lagi,"


humne fir puchha prabhu se kintu prabhu isme kya bhalayi chhipi thi, isse to saaf saaf lag raha hai ki stree ka purush dwaara shoshan ho raha hai, aur aap isme bhalai batate hain????

Prabhu bole Aadi kaal se le kar ab tak kewal ek Stree vivaah hi aadarsh vivaah maana jaata raha hai, praachin kaal ke rishi-muni, tapashvi avam aadarsh raaja bhi kewal ek stree vivaah hi karte the, kintu vyavstha jarur thi ki wo ek se adhik vivah kar le kintu nahi karte the, kintu  purushon ke liye ek se adhik vivaah ka uddeshya ye bhi hota tha ki yadi kisi kanya ka vivaah kisi kaaran se ek avivaahit purush se na ho raha ho ya kisi kanya ko ek shaadi-shuda purush se preet ho gayi ho to wo usse vivaah kar sakti hai, iss prakaar praachinkaal mein aisi vyavsha manav dwaara banayi gayi thi,


humne fir prabhu se poocha ki hey prabhu kintu aisa kewal purushi hi kar sakta hai, kintu kya stee ho bhi ye hi adhikaar prapt hai ya tha to unhone kaha Desh/Kaal/Parishtithiyon ke anuroop streeyon ko bhi aisa hi adhikaar praapt tha, kintu fir bhi aadarsh vivaah Stree-Purush ke liye kewal ek patni-pati vivaah hi sadiyon se shreshtha maana gaya hai aur aaj bhi hai, aur aise dampatiyon  ko aadarsh dampati kaha jaata hai jo na kewal ek pati-patini pratha ka paalan karte hain apitu ek doosre ke prati poorn roop se samarpit hai aur ek doosre ka maan samman karte hain.


humne fir puchha prabhu se " Hey Prabhu kya aapne sachh mein inn vyavshthaon aur parmparaon ka nirmaan nahi kiya??"

Ishwar ne kaha, "Nahi, maine to kewal shrishti, bhotikta aur jeevan ka nirmaan kiya hai, haan agar vyavshta ke vishaye mein main kahu to maine kewal prem, sahanubhooti, ekta, akhandta, maan-samman, bhaichaara,dvesh, raag, bhed-bhaav rahit aur samast burai rahit ek praani samaj ke kaayam rakhne ki vyavtha ki thi, dharm aur bhakti ki vyavstha ki thi, maine kewal ye hi vyavthaaye ki hai kintu meri vyavthaon ko maanav jaati ne apni parmpara na maan kar apni hi alag vyavtha banayi aur unhe parampara ka naam diya hai,"

prabhu kahte hain jo maanav dwaara banai gayi vayvshta ki bandishon ko tyaag kar kewal ishwariye vyashta ka anusaran karte hai wo anannaya moksh ka paatra bante hain, iss bhotikta mein bhale usse kashta atyadhik mile kintu jab iss bhotik shareer ka wo tyaag karega tab uske paas kewal sukh-shaanti ke atirik aur kuch na hoga jo usse iss naashwaan mrityu lok mein kabhi kisi ko nahi mil sakta aise aseem sukh ka wo bhaagi banega, kintu jo vyakti iss bhotik shareer ke bhogon mein vileen ho kar prabhu dwaara batayi gayi vyavshtha ka paalan nhi karte unhe bhotik shreer ke tyaag ke pashchaat anannaya kasht ka bhaagi hona padta hai aur tab unke paas kewal pachhtave ke siwa aur kuch nahi hota...