Tuesday 25 March 2014

इश्क का वायरस


किसी ने पूछा हमसे ये प्रेम रोग कैसे होता है, है ये लाइलाज़ या ये ठीक भी होता है??


हमने उसे अपने पास बुलाया और बड़े ही प्यार से समझया, प्रेम का वायरस है बड़ा पुराना, बड़े ही चतुराई से बुना गया है इसकी आकृति का ताना-बाना, आज कल आधुनिकता का है ज़माना इसलिए और भी सहज हो गया है इसका हर किसी के घर में घुस आना,


 सुन कर हमारी ये बात वो हमसे पूछने लगे क्या है इसका मतलब जरा खुल भी कहिये??


हमने शुरू किया फिर से उन्हें समझाना, इश्क का ये वायरस चला आता है आज कल टेलीविज़न से, सिनेमा से और तो और आज कल ये  अनेक वायरस कि राजधानी इंटरनेट महारानी और मोबाइल देवता से आशीर्वाद प्राप्त कर मानव को अपने आधिपत्य में ले लेता है, और यदि कोई  जाने अनजाने इनसे बच भी गया तो मोहब्बत से भरा कोई उपन्यास उसे अपनी गिरफ्त में ले लेता है और यदि फिर भी मानव का इम्यून सिस्टम मज़बूत हुआ और इन सबसे उसका कुछ न हुआ तो दोस्त और जान्ने वालों के द्वारा ये कभी न कभी तो ज़िन्दगी में दस्तक दे ही देता है और मानव को अपनी गिरफत में ले ही लेता है,


सुन कर हमारी बात वो फिर से पूछने लगे अजी महाराज आप जरा अब ये भी तो बताइये क्या है इन सबसे बचने का कोई राज़, क्या है आखिर इस बीमारी से निबटने का इलाज़, क्या है  इस बिमारी के लक्षण और क्या है इस बीमारी से बचने कि कोई दवा या इंजेक्शन????


हमने फिर शुरू किया उनसे इस विषय पर फिर से बतियाना और शुरू किया समझाना, प्रेम का वायरस है बड़ा पुराना, आदि काल से आज तक इस ये है लाइलाज़, दुनिया के किसी भी वेध के पास नहीं है कोई औषधि और बूटी जिससे दूर हो सके ये बीमारी और हो सके इसका इलाज़, रही बात लक्षणो कि तो शुरुआत में प्रेम रोगी बड़ा ही खुश-खुश रहता है, है रहता जैसे सपनो कोई नशेड़ी वैसे ही प्रेम रोग पीड़ित रहता है, अपने ख़्वाबों को हो हकीकत समझता है और हकीकत से वो कोसो दूर रहता है, है दुनिया कि हर ख़ुशी उसकी मुठी में हर वक्त बस उसे ये ही वहम रहता है,

लेकिन जैसे-जैसे ये रोग होता जाता है पुराना, फैलता जाता है इस वायरस का असर और बना देता है दिल और दिमाग को गिरफ्त में अपनी ले कर बेअसर, तड़प ऐसी देता है ये रोग इश्क का कि न तो जीने को हसरत रहती है आशिक को और न ही मौत ही आघोष में समाती है ज़िन्दगी , भटकता रहता है आशिक अपने दिलबर कि एक झलक देखने के लिए, थक जाती है नज़रे आशिक कि उसके एक दीदार के लिए और एक दिन जब उनसे दीदार होता है वो कहते हैं हम तो है अब किसी और के हो लिए,जाओ तुम भी हो जाओ किसी और के, खो जाओ किसी और कि बाहों में और भूल जाओ हमे, और जो तुम न कर सको ये तो लो ये छुरा छेद लो इसे अपने सीने में ताकि तुम चैन से मर सको और मुझे मेरी ये ज़िन्दगी मुझे जीने दो, जो भटक रहे हो तुम मेरी यादों में इधर-उधर, जो ढून्ढ रहे हो तुम मुझे हर जगह और इस दिल पर, भुला दो मुझे और चैन से मुझे जीने दो, तुम भले मर जाओ पर है कसम तुम्हे मेरी मुझे मेरी ये ज़िन्दगी जीने दो, 


सुन कर मेहबूब कि ये बात क्या गुज़रती है आशिक के दिल पर लेकिन नहीं समझता मेहबूब ये बात, छोड़ उसे तनहा अकेले वो दूर बहुत चला जाता है, रह जाता है केवल आशिक अकेला या फिर उसके साथ उसकी आँखों से बहता ये अश्क ही निभाता है, 

 

 सुन कर हमारी बात फिर वो पूछने लगे क्या इस दर्द भरी बीमारी से आशिक कभी आज़ाद नहीं हो पाता है, क्या झेलना पड़ता है ये दर्द उसे अपने सीने पर या कोई मरहम भी कोई वो लगता है??


हमने उसे अपने  करीब बुलाया और बड़े ही प्यार से समझाया, है तो ये बीमारी यधपि लाइलाज़ किन्तु अपनी ही आत्मशक्ति से व्यक्ति पा  सकता है इससे मुक्ति और कर सकता है खुद पर और अपने परिवार पर उपकार और बन सकता है एक दम तंदुरुस्त पा कर इस बीमारी से निज़ात,


फिर उन्होंने पूछा किन्तु कैसे????


हमने उन्हें बताया, भूल कर अतीत कि बातो यदि बढ़ते रहो आगे, खेल ज़िन्दगी का समझ कर हारी हुई एक बाज़ी मान कर बढ़ाते रहो अपने कदम हर दम निश्चित ही ये बीमारी धीरे-धीरे दूर होगी, भूली हुई इस हारी  बाज़ी के बाद एक दिन निश्चित ही तुम्हारी जीत होगी,

ये माना मुश्किल इस दिल को समझाना, ये माना मुश्किल है उसे भूल जाना, शराब के नशे से भी गहरा है ये इश्क का नशा, दिल टूट कर बिखर जाता है हरज़ाई के जाने पर लेकिन नशा ये कम्बख्त नहीं जाता उसकी यादों के साथ हर घडी हर लम्हा डुबाये रहता है, ख़त्म हो जाती है शराब  भी कभी बोतल से पर ये इश्क का नशा नहीं जाता कम्भख्त आशिक कि बेवफाई से,


टूटे हुए दिल के टुकड़ो को जोड़ कर जो फिर से जीने को उठ खड़ा हो वो ही इस बीमारी को दे सकता है मात और बन सकता है एक बिसात इस बीमारी के मारों के लिए, जो चाहते है मरना अपने आशिक के गम में देख ऐसे जीने को मिलेगी उन्हें भी आगे बिन उन बेवफा आशिक के जीने की प्रेरणा, वो भी शायद जीना चाहे जो बिन आशिक के मौत को है गले लगाना चाहे,


 है इस बीमारी का इलाज़ खुद मानव के पास, और जो नहीं कर सकते ऐसा वो लगा लेते है मौत को गले और भूल जाते उस बेवफा आशिक के लिए अपने घर परिवार को जिनके झांव के तले अब है वो पले. कुछ दिनों के इस झूठे प्रेम के खातिर बरसों का वो प्रेम भूल जाते हैं, इश्क  के इस वायरस के काटने के कारण अपने के उस दुलार को भूल जाते हैं, माँ कि ममता नहीं दिखती उन्हें पिता का दुलार नहीं भाता है भाई के डांट में छिपा उसका प्यार भी नज़र नहीं आता है बहन बोली नहीं भाति है जब उस बेवफा आशिक याद है उन्हें आती, 

 ये इश्क का वायरस है यारो ,



इसके बाद हमने उनसे कहा ऐ दोस्त जो नहीं   लगाते गले मौत को अपने परिवार के लिए लेकिन यादों में खोये रहते है हर वक्त उस बेवफा प्यार के लिए ऐसे लोगों कि दशा बड़ी ही चिंतनीय होती है, ऐसे लोग ही अक्सर कहते है ये इश्क का वायरस है जिसमे ज़िन्दगी चाहते है हम पर मौत भी नहीं मिलती है क्योंकि ये इश्क का वायरस है यारो ये इश्क का वायरस है यारों.... 




धन्यवाद 

अर्चू 




Sunday 23 March 2014

प्यार क्या

किसी ने पूछा हमसे प्यार क्या है, ये एक सजा है या ये मजा है?

"हमने उससे कहा जब तक न हो इकरार और रहे बात दिल की दिल मेँ और न हो नजरे चार तब तक तो यार प्यार मजा है पर इकरार-ए-मोहब्बत के बाद ऐ मेरे यार ये सिर्फ एक सजा है"

जुबाँ पे नाम

"इस जुबाँ पे नाम तेरा आज भी है, तू नही है इस जहाँ मेँ पर तेरी याद यहाँ आज भी है, गम-ए-जुदाई भी भुला न सकी जिसे वो मीठी खुशी इस दिल मेँ आज भी है"

Monday 17 March 2014

मेरे गीत मेरे साथी हैं

मेरे गीत मेरे साथी हैं, ओ ओ मेरे गीत मेरे साथी है, जब भी कभी बीते पलो

 की याद मुझे आती है भीग जाती है पलके ये मेरी और दिल से बस ये ही 

आवाज़ हर बार आती है मेरे गीत मेरे साथी साथी है हाँ मेरे गीत मेरे साथी हैं,

खुशी के पल में अपनो के मिलन में बस मेरे गीत मेरे साथी है ओ मेरे गीत

 मेरे साथी है, दूर हो चाहे पास हो अपने पर पल पल मेरे करीब हैं जो बस 

मेरे गीत मेरे साथी है ओ गीत मेरे साथी हैं,




दर्द-ए-दिल का साथ हो या फिर टूटे हुए दिल की  बात हो हर पल जो हैं

 साथ मेरे बस वो ही गीत मेरे साथी हैं, बहते हुए मेरी आँखों से अस्खों के वो

 दिलबर बस उसके भी  वो साथी है ओ मेरे गीत मेरे साथी हैं,


मेरी आँखों के ख्वाब से ले कर ख्वाबों के टूट कर भिखर जाने तक जिनके

 वो राही हैं ओ मेरे गीत मेरे साथी हैं हाँ मेरे गीत मेरे साथी हैं,


मेरे लबों पे आई खुशी की मुस्कुआन के भी वो अभिलाषी हैं ओ  मेरे गीत 

मेरे साथी हैं हाँ मेरे गीत मेरे साथी हैं,

आई मेरी लबों पे इस मुस्कान के बाद छाई इस दिल में उस उदासी के साथ

 भी बस मेरे गीत  मेरे साथी हैं, मेरे ही गीत मेरे साथी हैं,

मेरे गीत मेरे साथी हैं, ओ ओ मेरे गीत मेरे साथी है, जब भी कभी बीते पलो

 की याद मुझे आती है भीग जाती है पलके ये मेरी और दिल से बस ये ही 

आवाज़ हर बार आती है मेरे गीत मेरे साथी साथी है हाँ मेरे गीत मेरे साथी हैं,



मेरे गीत मेरे साथी हैं, ओ ओ मेरे गीत मेरे साथी है, जब भी कभी बीते पलो

 की याद मुझे आती है भीग जाती है पलके ये मेरी और दिल से बस ये ही

 आवाज़ हर बार आती है मेरे गीत मेरे साथी साथी है हाँ मेरे गीत मेरे साथी हैं,




Thursday 27 February 2014

सम्लेंगिक विवाह कितना जरूरी-आर्टिकल ??//

हाल ही मैं हमारी सर्वोच्च न्यायालय ने ये फैसला सुनाया कि सम्लेंगिक शादी अवैध है और यदि कोई सम्लेंगिक शादी करता है तो उसके खिलाफ कारवाही कि जा सकती है, दुनिया भर के साथ ही भारत में भी इस फैसले के खिलाफ गेय/लेस्बियन  (सम्लेंगिक )समुदाय ने इसका विरोध किया।


पर सवाल ये उठता है कि क्या सर्वोच्च न्यायालय का ये फैसला सही है, अदालत उन्हें क्या समझती और किस नज़रिये से देखती है, गेय/ लेस्बियन (सम्लेंगिक ) कोई दुसरे ग्रह के प्राणी नहीं है आखिर ये हमारे ही मानव समुदाये का ही एक अंग है फिर अदालत उन्हें किस नज़रिये से देखती है,


सम्लेंगिकता ये कोई मानवीय  बिमारी नहीं है और न ही किसी के साथ कि गयी कोई जोर-जबर्दस्ती है, ये वो लोग है जिनमे जन्म से पूर्व ये फिर जन्म के बाद भी किसी वज़ह से शारीरिक कमी अथवा हार्मोन परिवर्तन कि वज़ह से ऐसे बदलाव होते है जो इन्हे वक्त के साथ अपने विपरीत नहीं अपितु समलिंग के तरफ आकर्षित करते हैं, किन्तु दुःख कि वज़ह ये है कि इन परिवर्तन कि वज़ह को रोका नहीं जा सकता और न ही हमारा विज्ञान अभी तक इसकी रोक का कोई इलाज़  ही ढून्ढ पाया है,


किन्तु इसका आशय ये तो नहीं कि इन्हे हम मानव न समझे, इन्हे इनकी इच्छा अनुसार जीने का अवसर प्रदान न करे, आखिर किस आधार पर हम इन्हे रोकते हैं सिर्फ इस पर कि ये सम्लेंगिक है और अपने सामान लिंग वाले व्यक्ति कि तरफ आकर्षित होते हैं, इनकी अगर शादी होती है तो प्रकृति का नियम बिगड़ जायगा क्योंकि संतान उत्पन्न न होगी किन्तु क्या अदालत और समलेंगिकता का विरोध करने वालों ने सोचा है कि अगर उनका विवाह ऐसे व्यक्ति से हो जाए जो सम्लेंगिक हो और विवाह के बाद उन्हें पता चले इस बात का तो क्या वो ऐसे व्यक्ति के साथ ज़िन्दगी बिताना पसंद करेंगे, भले ही ऐसी शादी के बाद उनकी संतान का जन्म हो जाए और परिवार बाद जाए पर सच जान्ने के बाद क्या वो ऐसे व्यक्ति के साथ ताउम्र एक खुशहाल शादीशुदा ज़िन्दगी जे पाएंगे,


जाहिर सी बात है नहीं, ये जानने के बाद कि उनका जीवनसाथी सम्लेंगिक है वो उसके साथ खुशहाल शादीशुदा ज़िनदगी नहीं जी सकेंगे और फ़ौरन रिश्ता तोड़ देंगे और यदि उन्होंने किसी वज़ह से रिश्ता न भी तोडा तब भी उनका ये रिश्ता सिर्फ एक ओपचारिकता से अधिक और कुछ भी नहीं बन कर रह सकेगा,और इस विवाह से न सिर्फ उन दोनों कि अपितु उनके बच्चो कि भी ज़िन्दगी ख़राब हो जायगी, ऐसी शादी में या तो सम्लेंगिक को उम्र भर झूठ के सहारे एक घुटन भरी ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ेगी या फिर सच जानने के बाद उनके साथी को अथवा दोनों को ही,


सच तो ये है कि हम मानव में हुए इन बदलावों को ठीक करने में अभी तक असमर्थ है,  जब तक हम इन बदलावों को ठीक करने में असमर्थ है हमे सम्लेंगिक शादी को मंज़ूरी देनी चाहिए, आखिर इस आधार पर मंज़ूरी न  देना कि ये प्रकृति के खिलाफ होगा और भविष्य में ऐसे शादीशुदा जोड़े का परिवार भी नहीं आगे बड़ सकेगा  ये वज़ह देना उचित नहीं है आखिर जब ऐसे विपरीत लिंगी व्यक्तियों को शादी का अधिकार है जो किसी वज़ह से माता-पिता नहीं बन सकते तो गेय/ लेस्बियन को शादी का अधिकार क्यों नहीं है,
 

क्या किसी के सम्लेंगिक होने से उसके समस्त मानव अधिकार समाप्त हो जाते है सिर्फ इसलिए कि वो सम्लेंगिक है, क्या हमारा समाज हमारी सरकार और हमारा न्यायलय केवल लिंग के आधार पर ही अधिकार देता है, क्या सम्लेंगिक होना अपराध है और यदि है तो किस श्रेढ़ी का अपराध है, किसी से जबरन शारीरिक सम्बन्ध बनाने कि श्रेडी में ये आता है या किसी के शारीरिक शोषण में ये आता है, सच तो ये है कि गेय/ लेस्बियन भी अगर किसी से शारीरिक सम्बन्ध बनाते है तो दोनों कि मर्ज़ी से, किसी एक कि मर्ज़ी के खिलाब ऐसा करना एक अपराध है ये वो भी जानते हैं, गलत और सही का उन्हें भी पता है, सोचने समझने और बोलने का ज्ञान भी उन्हें है केवल किन्ही वज़हों और हार्मोनल बदलाओ के कारण वो लोग विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित नहीं हो पाते और उनके साथ खुद को सहज नहीं महसूस कर पाते, पर इसका अर्थ ये तो नहीं कि वो मानव नहीं है और उन्हें अन्य विपरीत लिंगी लोगों कि  भाति  जीवन जीने का अधिकार नहीं है,



बदलते सामाजिक मूल्यो के आधार पर हमे भी इस विषय में अब आधुनिक होने कि आवश्यकता है और आधुनिक तरीके से सोचने कि हमे आवश्यकता है, हमारे समाज , सरकार और न्यायलय  को ये समझना  चाहिए  और पिछड़ी हुई सोच को त्याग कर इस विषय पर अन्य बातों कि ही तरह  आधुनिक सोच और समझ से काम लेना चाहिए, गेय/ लेस्बियन विवाह के मुद्दे को महज़ एक साधारण सा मुद्दा समझ कर कोई भी तानाशाही फरमान लागू करने से पहले उन लोगों के आगामी भविष्य को ध्यान में रख ही कोई फैसला सुनना चाहिए, कोई भी व्यक्ति भला कैसे खुश रह सकता है जब उसे पता चले कि उसका साथी सम्लेंगिक है और उसी प्रकार एक सम्लेंगिक व्यक्ति ताउम्र घुट-घुट कर जीता रहेगा यदि उसका विवाह एक विपरीत लिंगी व्यक्ति से हो, किसी का जीवन बर्बाद न हो एवं झूठ के आधार पर किसी का इस प्रकार विवाह ना हो उससे तो अच्छा ये होगा कि गेय/लेस्बियन शादी को मंज़ूरी दी जाए ताकि ऐसे व्यक्ति अपने ही सम्प्रदाये में विवाह कर सुखी एवं सामान्य  जीवन  यापन करे इसके साथ ही उन्हें समस्त मानव अधिकार दिए जाए,



भारत जैसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में इसकी अति आवश्यकता है, ये माना यहाँ के काफी लोग इसके धर्म-शास्त्र के खिलाफ कहेंगे किन्तु सरकार को अपनी सूझ-बूझ से काम लेना होगा और समझना होगा कानून, धर्म-शास्त्र मानव कल्याण के लिए है न कि मानव इनके कल्याण के लिए और बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में मानव एवं समाज के कल्याण हेतु हमे इन्हे बदलना ही होगा, जिस दिन हम इसे समझ जायेंगे और भारत में सम्लेंगिक विवाह को मंजूरी के साथ ही समलैंगिकों को समस्त अधिकार प्राप्त हो जायंगे उस दिन  भारत सच में एक बड़ा लोकतान्त्रिक देश बन कर दुनिया के सामने उभरेगा और समस्त विकाशील देशो और समलैंगिको के विरुद्ध खड़े देशों के समझ एक मिशाल बन कर खड़ा होगा… 








Tuesday 25 February 2014

भरोसा दिला कर तोड़ जाने वाले हज़ार मिले

भरोसा दिला कर तोड़ जाने वाले  हमे  हज़ार मिले, अपना बना कर दूर जाने वाले  हमे हज़ार मिले, ख़ुशी का वादा कर इसे भूल जाने वाले  हमे हज़ार मिले, मुश्कान के नाम पर अश्क देने वाले  हमे हज़ार मिले, 


पर जो जोड़ सके मेरे टूटे हुए  इस दिल को वो शख्स मुझे कोई न मिला, जो कर सके वादा पूरा वो राही  मुझे कही न मिला, जो पोंछ सके अश्क मेरी आँखों से ऐसा दोस्त मुझे कही न मिला,


ऐतबार के नाम पर  फरेबी मुझे हज़ार मिले, जलते हुए इन चिरागों को बुझाने वाले मुझे हज़ार मिले,  टूटे हुए इन दिल के टुकड़ों  से खेलने वाले ही मुझे हज़ार मिले,


पर इन राहों पर न कोई शख्स मुझे मिला जो बिखरे हुए इन दिल के टुकड़ों को फिर से कही कभी  जोड़ सके, बुझे हुए इन चिरागों को फिर से  जो जला सके, खोये हुए यकीं को  जो फिर से  कभी   लौटा सके वो  शक्श न मुझे कही दिखा , 


दोस्त बन कर दोस्ती को बस एक सीडी समझ कर आगे बढ़ने वाले हमे हज़ार मिले, भरोसा दिला कर  इसे तोड़ जाने वाले  हमे हज़ार मिले,

पर सच्ची दोस्ती निभाने वाला न कोई शख्स हमे मिला, भरोसा दिला कर उसे निभाने वाला वो शख्स हमे कोई  न मिला , दूर हो कर भी हो जो दिल के करीब वो शख्स  हमे  कही न  मिला,


भरोसा दिला कर तोड़ जाने वाले  हमे  हज़ार मिले, अपना बना कर दूर जाने वाले  हमे हज़ार मिले, ख़ुशी का वादा कर इसे भूल जाने वाले  हमे हज़ार मिले, मुश्कान के नाम पर अश्क देने वाले  हमे हज़ार मिले, 


भरोसा दिला कर तोड़ जाने वाले  हमे  हज़ार मिले, अपना बना कर दूर जाने वाले  हमे हज़ार मिले, ख़ुशी का वादा कर इसे भूल जाने वाले  हमे हज़ार मिले, मुश्कान के नाम पर अश्क देने वाले  हमे हज़ार मिले,


ऐतबार

जिस पर भी हमने ऐतबार किया उसी ने मेरे भरोसे को तार-तार किया, खता उनकी नहीं शायद मेरी ही थी ,शायद मैंने ही उन्हें अपने करीब कुछ ज्यादा ही समझा, भुला बैठे हम कि उनकी ज़िन्दगी में है और भी लोग जो है हमसे भी ज्यादा करीब उनके और है जो उनके हमदम, भुला बैठे हम अपनी औकात को और उनकी हर कही बात पर विश्वास हमने जो किया, बस ये है एक वज़ह जिस पर भी हमने ऐतबार किया उसीने मेरे भरोसे को तार-तार किया।