Saturday 19 April 2014

ईश्वर वाणी(ईश्वर कहते हैं)-54

ईश्वर कहते हैं केवल व्रत, उपवास, विभिन्न प्रकार के पूजा-पाठ, हवन-पूजन  आदि से मुझे कोई भी सांसारिक प्राणी हासिल नहीं कर सकता, मुझे केवल वही व्यक्ति हासिल कर सकता है जिसमे त्याग, अहिंसा, प्रेम, सदाचार, सम्मान, नैतिकता, जैसे गुण हो,


ईश्वर कहते है जो लोग भले ही मुझे प्रसन्न करने हेतु विभिन्न प्रकार की पूजा-पाठ, आराधना इत्यादि करे किन्तु जिनके ह्रदय में मलिनता है तथा जो भी व्यक्ति अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु ही कार्य करते है, अपने स्वार्थ पूर्ती हेतु किसी भी प्राणी को शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा पहुचाते हैं, झूठ, व्यभिचार, लोभ-लालच, मोह-माया, तथा समस्त पाप अपने ह्रदय में बसा कर मेरा ध्यान करते हैं ऐसे प्राणियों अथवा मनुष्यों को मैं कभी प्राप्त नहीं होता,


 ईश्वर कहते हैं यदि कोई भी प्राणी मुझे हासिल करना चाहता है तो भले वो मेरी पूजा, आराधना, स्तुति, हवन, भक्ति न करे, भले वो अपने पूरे जीवन काल में मेरा नाम भी न ले किन्तु यदि कोई व्यक्ति केवल उस कार्य को करे जिसके  लिए मैंने उसे मानव जीवन दिया है निश्चित ही ऐसे व्यक्ति को मेरी प्राप्ति होगी,


ईश्वर कहते हैं मैं तो सबके ह्रदय में निवास करता हूँ, ह्रदय में निवास करने का अर्थ है जब बालक जन्म लेता है एवं शिशु रूप में वो होता है तब वो सभी प्रकार के विकार से दूर होता है, उसका ह्रदय पूर्ण पवित्र होता है, उस उस पवित्र ह्रदय में ही ईश्वर निवास करते हैं, ईश्वर कहते हैं किन्तु जब मानव बड़ा होता जाता है उसके ह्रदय में विभिन्न प्रकार के विकार आने लगते हैं, वो भूल जाता है उसके सीने में एक ह्रदय है जिसमे साक्षात ईश्वर का निवास है, वो उन्हें ढूंढे मंदिर एवं अन्य धार्मिक स्थानो पर जाता है किन्तु अपने ह्रदय में नहीं झांकता, 

ईश्वर कहते हैं मानव कर्मो की मलिनता के कारण उसके ह्रदय में बस्ते हुए भी मैं उसे नज़र नहींआता और मानव मेरी खोज में जाने कहाँ-कहाँ भटकता रहता है पर कभी मुझसे भेट नहीं कर पाता है,


ईश्वर कहते हैं यदि कोई भी व्यक्ति मेरे द्वारा बताये गए मार्ग पर चले तो भले उसे इस भौतिक शरीर में अनेक कष्ट सहने पड़े किन्तु इसके त्याग के पश्चात उसे वो अनन्य सुख प्राप्त होगा जो इस भौतिक और नाशवान संसार में कभी किसी को भी प्राप्त नहीं हुआ है,


इसलिए हे मानवो सुधर जाओ और पाप का मार्ग छोड़ कर ईश्वर का मार्ग अपनाओ अन्यथा तुम्हारा ये मानव जीवन जो ना जाने कितनी पीड़ा छेल कर तुम्हे तुम्हारे उद्धार हेतु तुम्हे मिला है वो व्यर्थ जाएगा, इसलिए हे मानवों अपने समस्त पापों का त्याग करो और मेरे बताये मार्ग पर चलो तुम्हारा कल्याण हो… 



My Baby my life

My Baby my life, My Baby is sight of my eyes, My Baby is hope of my life, My Baby is reason of my life, My Baby is the star of my eyes, My Baby is happiness of my life, My Baby is love of my life, My Baby is everything of my life,


my baby everything for me (Boss my cute Pet, my love)

Saturday 5 April 2014

तुम ही हो-कविता

तुम ही हो ज़िन्दगी मेरी, तुम ही हो हर खुशी मेरी,
  तुम ही रास्ता हो मेरा, तुम ही मंज़िल हो मेरी,
  तुम ही सहारा हो मेरा, तुम ही तकदीर हो मेरी,
  मेरे दिलबर ना छोड़ जाना तुम मुझे अकेला तुम बिन कुछ भी नहीं है ये ज़िन्दगी मेरी,
तुम ही तो हो जीने कि वज़ह मेरी, तुम ही तो हो इस सूने जीवन कि आखिरी आस मेरी, 
 तुम ही हो मेरे धड़कते इस दिल कि धड़कन मेरी, तुम ही हो इस ज़िन्दगी कि आखिरी सांस मेरी,
 तुम ही तो हर उम्मीद मेरी, तुम ही हो बंदगी मेरी,
तुम ही हो ज़िन्दगी मेरी, तुम ही हर ख़ुशी मेरी,
 तुम ही हो ज़िन्दगी मेरी, तुम ही हो हर ख़ुशी मेरी.... 

प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा-कविता

सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा,

मोहब्बत के नाम पर दिखती है मुझे हर तरफ  वासना, इश्क के नाम पर दिखती है मुझे तो बस कामना, देख दुनियादारी सोचता है ये मन ये बार-बार प्यार चाहत है  या  सिर्फ दोखा,


चलते हुए मोहब्बत कि कश्ती में बीच मझधार में छोड़ जाता है दिलबर, अश्क और ग़मों के सिवा ना आता है फिर कुछ और नज़र, देख दुनिया कि ये बेईमानी सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ दोखा,


ख्वाब दिखा कर ख़ुशी का साथ छोड़ जाते हैं आशिक, नज़रे मिलाते है कभी करीब आने के लिए फिर एक दिन नज़रे चुराते हैं दूर जाने के लिए ये आशिक  , देख दुनिया कि ये रीत पूछता है ये दिल मेरा बार-बार प्यार चाहत है  या सिर्फ दोखा,


वफ़ा का  नाम दिखा कर बेफवाई का आचल थामते है लोग, करते हैं वायदा साथ निभाने का फिर तोड़ जाते हैं लोग, देख दुनिया कि ये बेईमानियां सोचता है मन ये बार-बार प्यार चाहत है  या सिर्फ  दोखा,


बनते है जो कभी अपने वो ही अक्सर दगा ही क्यों देते हैं, रहते हैं जो दिल में अक्सर वो ही इसे क्यों तोड़ देते हैं, सोचता है दिल ये मेरा बार-बार क्या इसी फरेब को ही प्यार कहते हैं,


विलासिता में डूबे हुए वासना में भीगे हुए इन नैतिकता से रिश्ता तोड़े हुए पवित्रता से मुख को मोड़े  हुए इन दिल के रिश्तो को ही क्या कहा जाता है  प्यार, देख दुनिया कि लाचारी सोचता है ये दिल मेरा ये प्यार है चाहत है या  सिर्फ दोखा,


 मोहब्बत तो नाम था कभी खुदा  का पर आज मोहब्बत बन गयी है बीमारी, दिल से दिल का रिश्ता नहीं वासना में डूबे हुए भोग कि  हर  कही हो चुकी है मारा-मरी, देख दुनिया कि ये बेईमानियां पूछता है दिल ये मेरा प्यार चाहत है या  सिर्फ दोखा,


 सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा,

सोचता है मन ये मेरा बार-बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा , सोचता है दिल ये मेरा हर बार प्यार चाहत है या सिर्फ धोखा, 



Friday 4 April 2014

दोस्ती

"mil kar bichhadne ka nam h dosti, hasa kar rulane ka nam h dosti, kabhi wafa ka to kabhi bewafai ka nam h dosti, kabhi saath chalne ka to kabhi tanahai ka nam h dosti,

bhoole huye guzare un lamho ka nam h dosti, bhool jaye chahe zindagi k safar me koi pyara dost par uski yaado ka nam hi h dosti"


मिल कर बिछड़ने का नाम दोस्ती, हँसा कर रुलाने का नाम है दोस्ती, कभी वफ़ा तो कभी बेवफाई का नाम है दोस्ती, कभी साथ चलने का तो कभी तन्हाई का नाम है दोस्ती, 

भूले हुए गुज़रे हुए उन लम्हो का नाम है दोस्ती,  ज़िन्दगी के सफ़र में कोई प्यारा दोस्त पर उसकी यादों का नाम ही है दोस्ती…… 

"यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"-लेख

हर रोज टी.वी पर समाचार पत्रों पर मैगज़ीन पर हर जगह महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों कि खबरों का आना तो अब आम बात हो गयी है, आज सिर्फ दिल्ली में ही नहीं अपितु पूरे देश में महिलाओ पर अत्याचारों कि मानो तो जैसे बाढ़  ही आ गयी है, हर रोज़ छेड़ -छाड़ ,बलात्कार, तेज़ाब फैंकना, दहेज़ के लिए हत्या या दहेज़ प्रतड़ना, घरेलू हिंसा जैसी ना जाने कितनी ही ख़बरों से हमारा समाचारपत्र और पत्रिकाए और न्यूज़ चेंनल भरे बड़े है,


१६ दिसंबर २०१२ के दामिनी सामूहिक  बलात्कार और हत्या के बाद जो दिल्ली एवं समस्त देश में जनसैलाब उमड़ा था उससे लगने लगा था कि शायद अब हमारे देश कि जनता जागेगी और एक नयी क्रांति का जन्म होगा एक नए आज़ाद हिंदुस्तान का जन्म होगा जहाँ महिलाये सुकून से जी सकेंगी,  १५ अगस्त १९४७ को भले भारत देश अंग्रेज़ो कि गुलामी से आज़ाद हो गया हो किन्तु इस देश कि महिलाये आज भी गुलाम है भले हमारा समाज और सरकार कितना कहे कि ऐसा नहीं है आज महिलाये इतने ऊँचे ओहदे पर है जो आज़ादी से पहले नहीं थी किन्तु ऐसी महिलाये है कितनी और जो है उनसे पूछा जाये क्या वो खुद को सुरक्षित महसूस करती है, क्या वो अकेले घर के बाहर रात जो जाते हुए खुद को सुरक्षित महसूस करती है,


जाहिर सी बात है आज महिलाये भले ही कितनी तरक्की कर के ऊँचे ओहदे पर विराजित हो किन्तु एक पारम्परिक पुरषवादी सामाजिक सोच कि गुलाम वो आज भी है, पुरुषों कि जो सोच सदियों पहले थी वो ही सोच आज भी है, पहले राजा-महाराज किसी भी सुन्दर स्त्री को देख कर अपनी वासना को शांत करने हेतु युद्ध तक कर देते थे, अपनी वासना के लिए न जाने कितने निर्दोषों का खून बहा देते थे, उन्हें उस स्त्री कि भावनाओ से कोई सरोकार नहीं होता था, उन्हें तो केवल खुद कि वासना से मतलब होता था, यदि स्त्री सुन्दर और पुरुष के दिल को भा गयी है तो उसे हर हाल में हासिल कर अपनी वासना को शांत करने के लिए चाहे कितनो का ही रक्त बहाना पड़े उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था,


आज भले हम खुद को कितना ही आधुनिक कहे किन्तु पुरषों उस पारम्परिक सोच में कुछ ज्यादा बदलाओ नहीं आया है, हाँ इतना जरूर है पहले एक स्त्री के लिए पूरे राज्य को राजा-महाराज दावं पर लगा देते थे किन्तु स्त्री कि भावनाओ से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता था, वो केवल स्त्री को एक शरीर मानते थे जो उनकी वासना को शांत करने लिए ईश्वर ने बनाया है ऐसा सोचते थे, स्त्री उनके लिए केवल उनकी वासना को तृप्त कर उनके लिए संतान उत्पन्न करने का एक साधन मात्र थी, आज के इस आधुनिक युग में इतना अंतर जरूर है कि एक स्त्री को हासिल करने के लिए राजा-महाराजा नहीं है क्योंकि देश में जनतंत्र है, किन्तु पुरुषवादी सोच वही है तभी जनतंत्र के बाद भी देश में नारी कि दशा दय से दयनीय होती जा रही है,


हर रोज़ बलात्कार, छेड़-छड़, तेज़ाब से हमले, दहेज़ प्रताड़ना, पुत्र न होने पर प्रताड़ना, स्त्री हो स्त्री होने पर प्रताड़ना मिलती है, ये सब पुरुष वादी प्राचीन सोच का ही नतीज़ा है, जिसे हम आधुनिक कहते है, हम आज खुद को चाहे कितना भी आधुनिक कहे किन्तु हम तब तक आधुनिक नहीं है जब तक पारम्परिक पुरषवादी सोच स्त्री के लिए नहीं बदल  जाती,


अपनी वासना को शांत करने के लिए आज भी पुरुष किसी भी   हद तक चला जाता है, रिश्ते और विश्वास को अपनी वासना तृप्ति के लिए  तार-तार कर देता है, नैतिकता के समस्त नियम उसकी वासना कि आग के आगे नगण्य है, इसी का नतीज़ा है जो देश में स्त्रीयों कि दशा ये है, हर जगह महिलाओ पर अत्याचार हो रहे हैं, वो भी उस देश में जहाँ कहा जाता है "यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारी कि पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं किन्तु आज देवता नहीं रावण हर घर और हर जगह निवास करता है, जो स्त्री को अपनी संपत्ति, अपनी गुलाम समझता है जिसे वो जब चाहे जैसे चाहे जो कर ले और स्त्री उसके खिलाफ कुछ न बोले जैसे स्त्री कोई बेजान वस्तु हो,


प्राचीन काल से ले कर आज तक पुरषों कि ये ही सोच रही है तभी तो स्त्रीयों पर ही तमाम तरह कि बंदिशे प्राचीन काल से ही पुरषों ने लगा रखी थी जैसे कैसे उन्हें बोलना है, कैसे आचरण करना है, कैसे वस्त्र धारण करने है, कैसे व्यवहार करना है, कुल मिलकर पुरषों ने स्त्रीयों के लिए ये सब निर्धारण इसलिए कर रखा था ताकि स्त्री कभी भी खुद को एक आज़ाद प्राणी न मान कर ये ही मान कर जीवित रहे कि उसका जीवन मात्र पुरषों पर निर्भर है और उसे वो ही आचरण करना है जैसा पुरष चाहे, उसकी अपनी कोई हस्ती नहीं है, उसकी अपनी कोई अहमियत नहीं, बिना पुरुष के वो कुछ भी नहीं है, पुरुष आज भी स्त्री को ऐसा ही देखना चाहते है किन्तु बदलते वक्त के साथ जब स्त्री इसका विरोध कर रही है वो पुरुष इसे अपनी सत्ता जो सदियों से चली आ रही है स्त्री पर एकाधिकार वाली उसे छिनती नज़र आ रही है और इसे दबाने के लिए ही पुरुष स्त्रीयों पर तरह तरह के अत्याचार करने लगा है,



आज समाज में स्त्री-पुरुष में भारी लिंगानुपात है कारण पुरुषवादी प्राचीन रूढ़िवादी सोच, पुरषों के स्त्रीयों पर इन्ही अत्याचारों के कारण माता-पिता बेटी को जन्म देने से पहले ही मार देते हैं, स्त्री-पुरुष में काफी बड़ा लिंगानुपात होता जा रहा है, पुरुषों को ये सोचना चाहिए यदि देश और दुनिया से स्त्रीयां ही समाप्त हो गयी तो दुनिया कैसे चलेगी, पुरषो को अपनी प्राचीन रूढ़िवादी सोच को बदल कर और अपनी वासना पर काबू प् कर रिश्ते-नातों का सम्मान करते हुए समस्त स्त्री जाती का सम्मान करते हुए सच में एक नए आज़ाद हिंदुस्तान का निर्माण करना चाहिए जहाँ सच में स्त्रीयां भी खुद को सुरक्षित महसूस कर के एक आज़ाद देश कि आज़ाद नागरिक मान कर निडरता के साथ एक खुली हवा में सांस ले सके , और हम सच में इस वचन को दुनिया के सामने सिध्ह कर सके "यत्र नारियस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता"






Thursday 3 April 2014

mere vichaar

"ek aam insan ban bhi kya jina, zindagi jina to usse kahte hai jiske marne par bhi log yad usse karte hai, zindagi bhar har shakhs wo hi kaam karta rahta hai jise wo duniya mein aane se le kar duniya se jane tak dekhta-sikhta rahta hai, iss nakal kar ke zindagi jine ki kala ko chhod kar jo shakhs apni zindagi jine ki ek nai rah chunta hai tamam kaanto bhari raho se bhi jo nai ghabrata hai asal mein zindagi kya hoti hai ye matlab usse paramparao aur prathao ke naam par nakal kar zindagi guzarne walo se behtar samajh aata hai " (my thoughts not my poetry), agr insan un paramparao aur prathao ki rudiyo par hi chalta rahe to samaj me pariwarn kabi nai aayega aur samaj me samaj ko behtar banane k liye hme un rudiyo ko todna hoga, jo log unhe todte hai bhale tatkalin samaj me aalochna ka samna wo kare par itihaas k panno par wo sada amar rahte hai, ye maana mushkil h samaj k virudhh ja kar isme pariwartan laana par jo log apne prano ki b parwah na karte huye samast prani samaj k hit k liye apne prano ko b nyochhawar karne ka sachha vrat le lete h unke liye namumkin b mumkin ho jata h.....