Wednesday 19 October 2016

ईश्वर वाणी-१५८-, जीवन क्या है

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम अपने अनुसार जीवन व्यतीत करते हो पर क्या तुम जानते हो ये जीवन क्या है?? हे मनुष्यो इस भौतिक शरीर मै सूछ्म शरीर के प्रवेश कर जो कर्म किये जाते हैं वही जीवन सभी जीव मात्र का है, किन्तु हे मनुष्यों केवल भौतिक शरीर के कर्म करने एवं उसके न रहने पर ये जीवन नष्ट नही होता,
तुम्हारे भौतिक शरीर के कर्म अनुसार तुम्हारा सूछ्म शरीर फल प्राप्त करता है, हे मनुष्य यदि भौतिक शरीर त्यागते हुये तुम्हारे मन मैं कोई इच्छा, कामना, अभीलाषा, राग, द्वेश की भावना रह जाती है तो इसका परिणाम तुम्हारे शूछ्म शरीर को भौगना पड़ता है,
हे मनुष्य तुम भले म्रत्यु से भय खाने वाले हो किंतु सत्य जान लो म्रत्यु जैसा कुछ नही है, ये भौतिक शरीर वस्त्र के समान है जिसे पुराना होने पर बदलना ही पड़ता है, ये सूझ्म शरीर मुक्ती पा कर मुझमें लीन हो जाता है, प्रलय के समय समस्त भौतिक वस्तुयें नष्ट होकर मुझमैं ही मिल जाता है,
हे मनुष्यों जो मुझमैं मिला, जो मिटा ही नही वो भला नष्ट कैसे माना जाये, हे मनुष्यों अब बताओ म्रत्यु क्या है, सत्य तो ये है म्रत्यु कुछ नही अपितु जीवन ही सर्व जगत मैं विख्यात है, सभी स्थान पर ही जीवन है और मैं ही जीवन हूँ अर्थात  जिस प्रकार आकाश से गिरने वाली बूँद विशाल सागर मैं विलीन हो जाती है फिर पुन: भप बनकर आकाश मैं जाकर पुन: बूँद बनकर सागर मैं मिल जाती है, सागर मैं  हर बार इस प्रकार गिरना उसके नष्ट न होने का प्रतीक है, हे मनुष्यों ये ही प्रक्रिया समस्त  ब्रमाण्ड की है जो हर बार मेरे द्वारा ही बनाई जाती है फिर मुझमैं ही प्रलय के समय मैं मिल जाती है और फिर  मेरे द्वारा ही श्रष्टी बनायी जाती है, और जो मुझमैं विलीन होता है वो मिटता नही, जो मिटा नही वो म्रत्यु को प्राप्त नही हुआ, म्रत्यु को प्राप्त नही अपितु जीवित है और ये जीवन ही मैं हूँ!!"

कल्याण हो

Sunday 16 October 2016

ईश्वर वाणी-१५७, धर्म की व्याख्या

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों धर्म के नाम पर तुम लड़ते हो किंतु ये है  क्या जानते भी हो,

हे मनुष्यों आदिकाल मैं जब कोई धर्म नही था केवल मानव और मानव कर्म ही थे समय के साथ मानव को मानव समुदाय मैं व्यवस्था लानी पड़ी, अन्यथा जैसे जैसे मानव की संख्या बड़ रही थी वैसे वैसे अव्यवस्था फैल रही थी, मानव समूहों मैं बट रहा था, नये नये अविष्कार कर रहा था, ऐसे मैं विभिन्न नियम समुदाय के हित हेतु उसने बनाये जिसे वय्वस्था कहा गया,

किंतु देश/काल/परिस्तिथी के अनूरूप मानव ने स्वार्थवस जब इसमें परिवर्तन कर निरीहों का दोहन शुरू कर मेरी सत्ता को चुनोती दी मैने वहं जन्म लेकर मानव को उसके करत्वयों, कर्मों का बोध कराया, जो मानव इस विचारधारा का अनुशरण करते गये जो मैंने उन्हे बतायी समय के साथ उन अवधारणाऔं को धर्म का नाम दिया गया,

किंतु देश, काल, परिस्तिथी के अनुसार जब जब मानव मैरी सत्ता को चुनोती देगा मैं आता रहूँगा और मानवता की सीख देता रहूँगा चाहे मेरी सीख को वो कोई भी नाम देकर नये नये धर्म बनाता रहे..

कल्याण हो"

ईश्वर वाणी-१५६, मानव जीवन के कर्म

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों अपने स्वार्थ को त्याग, केवल अपने हित के विषय मैं सोचना त्याग, क्यौकि ऐसा तू अपनी पशु यौनी मैं कर चुका है, इस मानव जीवन मैं तो वही कर जिसके लिये ये जीवन मिला है जगत और प्राणी जाती का कल्याण,

हे मनुष्यों मैं ये नही कहता की सब कुछ त्याग कर वैरागी बन जाओ, अपितु तुम मानव जीवन के सम्सत कर्म करो किंतु स्वार्थ बुराई, घ्रणा, अपवित्रता, अवहेलना, भेद-भाव, ऊँच-नीच भाषा, संस्क्रति, सभ्यता, जाती, धर्म, सम्प्रदाय, देश, समुदाय, द्वेश के साथ काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से दूर रह कर सभी जीवों से प्रेम कर उनके कल्याण हेतु कार्य करना,

हे मानव यदि किसी जीव से तुम घ्रणा करते हो ये न भूलो हो सकता है पिछले जन्म का ये तुम्हारा अनुज हो, हे मनुष्यों यदि तुम स्वं इनकी भलाई हेतु शारीरिक रूप से सहायता न कर पाओ तो उन व्यक्तयों को दान दो (श्रध्धा अनुसार) जो प्राणी कल्याण मैं नि:स्वार्थ सलग्न है, किंतु परख कर ही दान दो साथ ही समय निकाल कर जो लोग अथवा तुम दान देते हो उनके कार्य को देखने अवश्य जाओ, प्रयास करो उनके साथ प्राणी कल्याण मैं सहयोग का,


तुम्हारा कल्याण हो"

ईश्वर वाणी-१५५, आत्मा, कर्म, जन्म

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों युं तो तुम्हें आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म, कर्म -धर्म की शिछा देने वाले अनेक मिल जायेगे, कोई कहेगा मानव का पुनर्जन्म मानव योनी मैं ही होता है और अन्य जीव का उन्ही की योनी मैं, इसके लिये अनेक बेतुके उदाहरण देंगे तो कुछ इस पुनर्जन्म की अवधारणा को ही खारिज़ कर देंगे,

किन्तु सत्य तो ये है आदि युग से ही सभी जीव धरती पर कर्म अनुसार जीवन ले चुके है, ये जीवन तुम्हारा पहला जीवन नही है, इससे पूर्व भी तुम जन्म ले चुके हो,
हे मनुष्यो यध्धपि तुम बहुत कम आमदनी वाले व्यक्ती हो पर तुम वाहन लेना चाहते हो तो अपनी आमदनी के अनुसार ही तुम साईकल/स्कूटर/मोटर साईकल लोगे न की कोई कार/हवाई जहाज़,

इसके विपरीत यदि तुम्हारी आमदनी अधिक है तो तुम महगीं कार, जहाज़, हवाई जहाज अपनी सुविधा और आमदनी अनुसार ये लोगे,

यध्धपी कम आमदनी से अधिक आमदनी आज तुम पाने लगे हो, तुम आज चालक साईकल से होते हुये जहाज़ तक के बन जाते हो, वाहन बदल गया लेकिन चालक नही,

वही एक कुशल चालक साईकल से बस, बस से ट्रक, ट्रक से रेल गाड़ी, रेल गाड़ी से जहाज़ जहाज़ से हवाई जहाज़ चलाता है, पर चालक तो वही रहा बस समय के साथ वाहन बदल गया,

हे मनुष्यों तुम्हारी आत्मा वही चालक है, तुम्हारे कर्म तुम्हारी आमदनी तुम्हारी तरक्की है, और ये भौतिक शरीर वाहन जो ईश्वर द्वारा प्रत्येक जीव को दिया जाता है चलाने के लिये,


हे मनुष्यों मानव जीवन अति श्रोष्ट ईश्वरीय वाहन है जिसे मैने तुम्है दिया है, इसके आज तुम चालक हो किन्तु तुम्हारे बुरे कर्मो की कमाई इसके पुन्य नष्ट कर तुम्हे फिर पैदल अथवा साईकल पर ले आयेगी,

हे मनुष्यों इसलिये अपनी इस कमाई को सहेज़ के रखो, मानव जीवन को जगत व प्राणी कल्याण मैं लगाओ,

तुम्हारा कल्याण हो"

Saturday 15 October 2016

ईश्वर वाणी-१५४, मानव जीवन, युग

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यध्धपि ये जीवन पहली बार तुम्हे नही मिला है किंतु ये मानव जीवन तुमने अपने अनेक जन्मों के पुन्यों से पाया है,

हे मनुष्यों ये मानव जीवन तुम्हें अपने पिछले जन्मों के पाप कर्मो का पायश्चित कर, सत्कर्म करते हुये मोछ प्राप्त करने के लिये ही मिला है,

हे मनुष्यों इसलिये इस जीवन को मोहवश केवल सुख पाने के लिये उपयोग मत कर, बल्की हर मोह और स्वार्थ त्याग कर प्राणी कल्याण के हित के लिये कार्य कर,

यघ्पी तू मेरा नाम न ले, मुझे किसी भी रूप मैं न मान् किंतु तेरे सत्कर्म तुझे मेरा प्रिये बनाते है और तू मोझ का भागी बनता है"


आगे युग के विषय मैं ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों तुमने यध्धपि युग के विषय मैं सुना है, ये युग और कुछ नही समय है, समय के साथ मानव और अन्य जीवों मैं अनेक परिवर्तन हुये उन्ह् ही युग का नाम दिया गया,

हे मनुष्यों ये युग भौतिक ही है, तभी प्रलय के साथ ये युग अर्थात समय भी नष्ट हो जायेगा, फिर नयी श्रष्टी और नये युग का निर्माण होगा,

हे मनुषयों जो आत्माये (इच्छा पूर्ति से एक लाख साल तक) भटक रही हैं जिन्है मोझ नही मिला है उन्है भी मोझ इस प्रलय के बाद मिलेगा उसके बाद एक नये युग मैं य् आत्मायें फिर कर्म अनुसार जन्म लेंगी,

हे मनुष्यों ये न समझना प्रलय सब कुछ नष्ट कर तबाह कर देती है, प्रलय इसलिये होती है ताकी नाशवान समस्त भौतिकता का अंत हो साथ ही अपने सूछ्म शरीर मै भटक रहे जीवों को मुक्ती प्राप्त हो और फिर एक नये समय नये युग का आगमन हो,
हे मनुष्यों ये न समझना ऐसा प्रथम बार होगा अपितु ऐसा अनंत बार हो चुका है और अनंत बार होगा"

कल्याण हो

Friday 14 October 2016

कविता

हर दिन फिर बात पुरानी याद आती है
मीठी को खुशी की याद बहुत सताती है,

गर्मी हो या बरसात दिन या हो ये रात
मीठी तुझे ही बस पल पल बुलाती है,

तेरा ठुकराकर दिल तोड़ जख्म देना
खुशी से किस्मत इसे मीठी कहती है,

दर्द बेवफाई का दिया इस कदर मुझे
वफाई पर मीठी खुशी आज रोती है,

गम छिपा कर जहॉ से अक्सर मीठी
मुस्कान खुशी की बस ये दिखाती है,

हर दिन फिर बात पुरानी याद आती है
मीठी को खुशी की याद बहुत सताती  है"

Friday 7 October 2016

song-ek jawab pakistan ko

aisi zameen aur aasmaan
in ke siwa jaana kahaan
barhti rahe yeh roshni
chalta rahe yeh kaarwaan
Dil Dil hindustan
Jaan Jaan hindustan

dil dil se milte hain to pyar ka chehra banta hai
chehra banta hai
phool ek larri mein proey to phir sehra banta hai
chehra banta hai

Dil Dil hindustan
Jaan Jaan hindustan

aisi zameen aur aasmaan
in ke siwa jaana kahaan
barhti rahe yeh roshni
chalta rahe yeh kaarwaan

Dil Dil hindustan
Jaan Jaan hindustan
Dil Dil hindustan

Kashmir hai hamara hamko pyara lagta hai,
Chaaro dishao mein bas ye hi nara lagta hai,

Naara lagta haihai

Dil Dil hindustan
Jaan Jaan hindustan