Friday 24 March 2017

ईश्वर वाणी-२०३, जीवों का व्यवहार

ईश्वर कहते हैं, ''हे मनुष्यों भले तुमने ये मानव देह धारण अवश्य की है किंतु अनंत जीव योनियो के बाद तुम्हे ये मानव जीवन प्राप्त हुआ है, तुम्हे ये जीवन प्राप्त हुआ ताकि मेरे वचनो का पालन कर मोक्ष को प्राप्त करो।

हे मनुष्यों तुम्हारा व्यवहार अच्छा अथवा बुरा, क्रोधी, दयालु, चालक अथवा भोलापन, वफादार अथवा धोखेबाज़, मददगार अथवा खुदगर्ज़ जैसा भी तुम करते हो वह सब पिछले कई जीवन के अथवा योनियो में जन्म लेने के कारण इस मानव जीवन में तुम वैसा ही करते हो, यद्धपि तुमने मानव देह धारण किया है किंतु तुम्हारा व्यवहार पिछले जन्मों के अनुसार तय होता है।

तभी तुमने देखा होगा मनुष्य तो मनुष्यता भूल चूका है, कई बार मानवता को शर्मिंदा करने वाले कार्य मानव करता है किन्तु पशु कई बार मानवता को शिक्षा देने वाले कर्म कर जाते है, ऐसा इसलिये ही होता है जो मानव अमानवीये व्यवहार करते है वो अपने पूर्व जन्म की पाशविक प्रवत्ति को अपने अन्तर्मन से अलग नही कर पाते किंतु जो पशु मानवता की रक्षा करने वाले कर्म कर जाते है वो भले इस रूप में आज पशु है किंतु पिछले जन्ममें श्रेष्ट मानव रहे होते है जो किन्ही गलतियों के कारन पशु योनि प्राप्त कर प्रायश्चित कर रहे होते हैं।

हे मनुष्यों इसी प्रकार किसी जीव की हत्या मेरे नाम पर न करो, मेरे नाम पर तुम जो कुर्बानी देते हो निरीह जीवों की, किंतु इसे मैं स्वीकार नहीं करता, बलि अथवा कुर्बानी  मैं खुद ही सभी के लिये मैं स्वम दे चूका हूँ, इसलिये मेरे नाम पर किसी निरीह जीव की हत्या न करो, ये व्यवहार तुम्हारा मानवीय न हो कर पाश्विक है।

हे मनुष्यों इस प्रकार अपने मानव व्यवहार ध्यान दो केवल मानव देह धारण करने से कुछ नही प्राप्त होता है, इसलिये मेरे वचन पर चल प्राणी जाती के कल्याण हेतु मानव पथ पर निरंतर चलते रहो ताकि मुझ तक पहुच सको और मोक्ष प्राप्त कर सको।

हे मनुष्यों इस संसार में मैंने सर्वप्रथम अति सूक्ष्म जीवो को भेजा जिनके परिवर्तन स्वरुप करोडो वषो बाद मानव जाती की उत्पत्ति हुई, मानव को अन्य जीवो से अधिक समझ दी, संसार की रक्षा हेतु मैंने उसे अधिकार दिये किंतु मानव ने खुद धरती का राजा समझ बेठा, वो भूल गया की उसके जनक भी वही है जो अन्य जीवो के।

हे मनुष्यों  यदि तुम खुद को राजा भी समझ बैठो हो संसार के जीवों का तो तुम याद रखो राजा सदा प्रजा का सेवक ही होता है, सभी जीवो की रक्षा व् उनका कल्याण ही उसका मात्र एक धर्म होता है, किंतु मानव खुद के स्वार्थ पूर्ती के लिये अन्य जीवो को हानि पंहुचा देने को ही राजा धर्म समझने लगा और  सृष्टि का दोहन व् प्राणियो प्राणी जाती का शोषण करने लगा।

हे मनुष्यों तुम्हारा यही व्यवहार तुम्हे ये बताने के लिये उचित है तुम्हारे बुरे कर्म स्वार्थी व्यव्हार  इतना काफी है तुम्हारे पिछले जन्म के पाश्विक प्रवत्ति को तुम्हारी मानव देह में कैसे उत्पन्न हुई बताने के लिये''



कल्याण हो



Monday 20 March 2017

ईश्वर वाणी-२०२, ईश्वर का रूप

ईश्वर कहते है, ''हे मनुष्यों यु तो अधिकतर मनुष्य मेरे रूप मेरे रंग मेरे आकर मेरे प्रकार के विषय में बाते करते है, वो सोचते है ईश्वर शायद ऐसा दीखता होगा या शायद वैसा।

किंतु वह अज्ञानी नहीं जानते मैं तो निराकार हूँ, आकर तो उसका होता है जो जन्म लेता है पर मैं तो अजन्मा हूँ, जो भौतिक है जो नाशवान जो जन्म लेने वाला जन्मा है उसी को इन भौतिक आँखों से देखा जा सकता है।

मैं तो शून्य हूँ अर्थात कुछ नहीं, पर इस कुछ नहीं से सब कुछ, सृष्टि का निर्माण मैंने इसी शून्य से किया है और अंत में सृष्टि इसी शून्य में समासमा जायगी अर्थात जो है आज वो कुछ नही होगा जैसे इससे पूर्व भी नही था, मेरे निराकार स्वरुप का भी वही तातपर्य है, परम सत्य यही है शून्य, तुम्हारी अथवा समस्त आत्मा भी शून्य हो कर ही पुनः जीवन पाती है, समस्त गृह नक्षत्र भी शून्य धारण करे हुए है उन्हें पता है सृष्टि का सत्य यही है।

पृथ्वी पर भी शक्ति पीठ एवं समस्त प्राचीन धार्मिक स्थानों पर मैं इसी शून्य अवस्था में ही विराजित हूँ, शून्य जो कुछ न हो कर भी सब कुछ है, जैसे तुम्हारी आत्मा दिखती नही, उसका रूप रंग आकर तुम नही जानते न देख सकते हो किन्तु  उसके जाने के बाद तुम्हारा शरीर बेजान पुतला मात्र है।

वैसे ही मैं जगत की आत्मा होने के कारन जगत पिता जगत माता व आत्माओ में परम होने के कारण परमात्माँ हूँ, किन्तु हे शैतान के वशिभुत मानवों तुम सिर्फ भौतिकता पर विश्वाश करते हो, भौतिक रिश्ते, भौतिक साधन, भौतिक सुख सुविधा, इसी कारण तुम मेरे वास्तविक रूप को सहर्ष स्वीकार नही करते, मेरी बनायीं व्यवस्था को भी ठुकरा शैतान की राह पर चलते हो।

तुम्हे इश्वरिये मार्ग और जिस कार्य के लिये ये जन्म तुम्हे मिला है ये बताने के लिये ही मैं देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप जगत व प्राणी जाती के कल्याण हेतु अपने ही एक अंश धरती पर भेजता हूँ ताकि वो तुम्हे मुझमे विश्वाश दिलाये और शैतान की कैद से तुम्हे मुक्त कर तुम्हारे मानव जीवन को मोक्ष प्रदान करे।

हे मनुष्यों मेरा ही एक अंश तुम्ही में से किसी के यहाँ जन्म लेता है, तुम्हारे जैसा ही रूप बनाता है, तुम्हारी सोच को बदलने के लिए तुम्हारी ही भाषा शेली का उपयोग करता है, ईश्वर के तुम्हे करीब लाने का प्रयास करता है, फिर वो मुझमे एक दिन मिल कर मैं बन जाता हूँ, अजन्मा अविनाशी परमेश्वर।

हे मनुष्यों मेरा रूप तो निराकार है शून्य है जैसे ब्रह्माण्ड, इसका न आदि न अंत है वही और वैसा ही मेरा रूप है, तुम्हारे जन्म से पूर्व और मोक्ष पायी आत्मा का जो रूप है वही मेरा रूप है।

हे मनुष्यों अब ये मत कहना क्या तुमने ईश्वर को देखा है अथवा ईश्वर कैसा दिखता है क्योंकि दिखती तो तुम्हारी आत्मा भी नहीं है पर वो है।"


कल्याण हो

chand alfaz


"tum thi tab bhi ye din aur raat hote the,
sooraj aise hi nikalta tha,
chidiya aise chehakti thi,
shaam aise hi dhalti thi
raat aise hi apni aaghosh mein le sulati thi,
aaj din bhi wahi hai raat bhi wahi hai,
chidiyo ka chehkana bhi wahi hai,
raat ka apni aagosh mein le kar sulana bhi wahi hai
par tum nahi ho tum kahi nahi ho"

Wednesday 8 March 2017

ईश्वर वाणी-२०१, अनेको में एक और एक में अनेक हूँ मै

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हें अपने अनेक रूपों का शाब्दिक अर्थ बता चूका हूँ किन्तु आज तुम्हें 'शिव' का शाब्दिक अर्थ बताता हूँ।
श+इ+व=शिव

श+ शक्ति, सृष्टि, सम्पूर्ण,
इ+ इति, प्रारम्भ, अंत
व+ विनाश, विविधता, व्यक्तित्व

अर्थात ऐसे ईश्वरीय शक्ति जो सम्पूर्ण सृष्टि का आरम्भ और अंत करने की कारक है। सृष्टि के प्रारम्भ व विनाश इन सबके बीच अनेक विविधता व्यक्तित्वो से परिचित करने वाली शक्ति को ही 'शिव' कहते है, तभी उनका स्वरुप सर्वप्रथम निराकार में मिलता है।

शिव का वही निराकार स्वरुप ही ब्रमांड है, जब सृष्टि निर्माण के विषय में मैंने विचार किया तो तीन देवताओं को सबसे पहले जन्म दिया इनमे ब्रम्हा, विष्णु व् शिव थे, ब्रम्हा व् विष्णु तो साकार उत्पन्न हुये किन्तु संसार को ईश्वर के वस्तिविक ईश्वरीय रूप का परिचय व् ईश्वरीय महिमा का जगत में प्रसार फेलाने के उद्देश्य से शिव निराकार रहे, किंतु सृष्टि के अनेक कार्यो की पूर्ती हेतु ब्रम्हा व् विष्णु की प्राथना से उन्हें साकार रूप लेना पड़ा जिसे नाम दिया शंकर।

शंकर स्वरुप में शिव ने अनेक लीला रची, उनका रहन, सहन, पहनवा सब विविधता से भरा था, और जिनके क्रोध से भूमि कॉपी जाती थी, श्रष्टि के अनेक कार्यो के लिये उन्हें ये रूप लेना पड़ा।

हे मनुष्यों यद्दपि ये सत्य है निराकार स्वरुप वाला वो आत्माओ में परम मैं परमात्मा निराकार हूँ, किंतु देश, काल, परिस्तिथियों के अनुरूप मैंने ही जन्म ले आकर धारण किया है क्योंकि तुम मनुष्य अल्पविषवासि हो, तुम केवल जो देखते हो उसी पर् यकीन करते हो की तू बहुत कुछ है जो दीखता नही किन्तु है जैसे तुम्हारी वानी, तुम्हारी विचारधारा, प्रेम की भावना, ये सब है किंतु दिखती नही, वैसे ही मैं हूँ पर दीखता नही इसलिये तुम मुझ पर यकीं नही करते।

हे मनुष्यों इससे पूर्व मैं तुम्हे बता चूका हूँ मैं अपने ही एक अंश को अपने समान सभी अधिकार सौंप कर देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप प्राणी व जगत के कल्याण के लिये भेजता हूँ, किन्तु आज मैंने कहा की मैं खुद ही जन्म लेता हूँ जहाँ मेरी आवश्यकता होती है, तुम सोचोगे की अलग अलग बाते क्यों?

हे मनुष्यों मेरे अंश जो मैंने जगत के कल्याण हेतु भेजे मुझ अनंत से निकल कर मुझमे ही समा गए, अर्थात में अनंत में भी एक हूँ और एक में ही अनंत हूँ, जैसे भगवान शिव और शंकर।

हे मनुष्यों तीनो देव व् तीनो देवीया एवं समस्त मेरे स्वरुप अलग हो कर भी एक है और एक हो कर भी अलग, तुम जिस नाम से उन्हें पुकारो आराधना करो मुझ तक ही पहुचोगे, क्योंकि सब मुझसे ही निकले हैं और मुझमे ही समाते हैं, मैं परमेश्वर हूँ।


कल्याण हो

Wednesday 1 March 2017

आम्रपाली-कहानी भाग-१

अपनी सखियों व् अनेक सेनिको के साथ आलम पुर की राजकुमारी रूपाली एक छोटे से गाँव अनन्त पुर आयी है, गाँव वाले उसकी आव भगत में लगे है, आखिर पहली बार राजघराने से कोई मुख्य अतिथी वहा आया है, गाँव वाले कोई कसर नही छोड़ना चाहते, राजकुमारी और उनके साथियो की आव भगत ऐसे हो रही है जैसे साक्झात ईश्वर अवतरित हुये हो, हर कोई दर्शन को व्याकुल।
वैसे जबसे गाँव का लड़का समर सिंग मुन्ना काका का सबसे छोटा बेटा जिसे सब गाँव वाले निकम्मा कहते थे महल में गया है तबसे कोई न कोई महल से आता ही रहता है पर आज खुद राजकुमारी जी इस गाँव में आयी है ये बहुत बड़ी बात है।
सबसे मिल कर राजकुमारी रूपाली गाँव के मुखिया से पूछती है "इतनी महिलाये है यहाँ इनमे आम्रपाली कोन सी है?", मुखिया सत्यानन्द चारो और देखते है और सोचते है की आम्रपाली तो कहि नज़र नही आयी, शायद राजकुमारी जी से मिलना नही चहति, किन्तु राजकुमारी जी से कैसे कह की आम्रपाली नही आयी।

राजकुमारी रूपाली फिर पूछती हैइनमे से आम्रपाली कौन सी है, बहुत सोच कर मुखिया जी कहते है "छमा कीजिये राजकुमारी जी आम्रपाली यहाँ मौज़ूद नही है, उसकी सेहत ठीक नही है इसलिये वो अपनी कुटिया में विश्राम कर  रही है, आपसे न मिल पाने के लिये खेद भी जताया है"। किंतु ये सुन कर रूपाली आम्रपाली की कुटिया में जा कर उस से भेट करने को कहती है, इस पर मुखिया जी कहते है "गाँव की एक साधारण कन्या से भेट के लिये इतनी व्याकुलता,वो कोई साहित्यकार या कलाकार या नर्तकी नही है फिर उससे मिलने की इतनी उत्सुकता क्यों? न ही उसने कोई ऐसा कार्य किया है जिससे उसका बहुत नाम हो, फिर आप उससे मिलने के लिये इतनी उत्सुक क्यों हैं?", राजकुमारी कहती है "वो मेरे जीवन पर क्या असर डालती है मुझे ही पता है, उससे भेट कितनी आवश्यक है मुझे ही पता है, महल से इतनी दूर सिर्फ उसी से मिलने आई हूँ, कृपया उसकी कुटिया तक मुझे पंहुचा दे", राजकुमारी की बात सुन कर वो उन्हें वहा ले जाने को तैयार हो जाता है, राजकुमारी की सखी और सैन्य टुकड़ी भी उनके साथ चलने लगती है पर वो उन्हें साथ चलने को मना कर देती है।

आम्रपाली के घर पहुँच कर मुखिया जी उसका दरवाज़ा खटखटाते है और कहते है "अम्मू ओ अम्मू देख तो कौन आया है द्वार पे तेरे, तू तो नही आ सकी उनसे मिलने पर वो यहाँ तुझसे मिलने आ गयी, देख जल्दी द्वार खोल",  तत्पश्चात द्वार खुल जाता है, फटे दुपट्टे से मुह ढके फटे और अनेक स्थानों से रंग बिरंगे बेमेल वस्त्रौ से रफ़ू करे घिसे पुराने लहंगे चोली में एक युवती ने द्वार खोला और अंदर आने को कहा। मुखिया जी अंदर आने लगे तो राजकुमारी जी ने उन्हें बाहर रुक कर प्रतीक्षा के लिये कहा और खुद अंदर चली गयी, द्वार अंदर से  बन्द कर लिया।

अंदर देखा एक टूटी चारपाई, टूटी फूटी दीवारे, पुराने टूटे फूटे बर्तन, मिटटी का बिना लीपा हुआ फर्श, फटे और मेले बिस्तर, आम्रपाली ने दीवार की एक और मुह किया हुआ है और राजकुमारी से कहती है "बेठिये राजकुमारी जी, माना ये स्थान आपके लायक नही है, लायक तो मैं भी नही हूँ फिर भी मुझ जैसी साधारण कन्या की कुटिया में आ कर इसे पावन कर दिया, बताइये क्या लेंगी आप, कैसे सत्कार करू आपका", ये सुन कर राजकुमारी रूपाली कहती है "पहले अपने मेज़बान का चेहरा तो देखने दो, मेरे सम्मुख आओ और अपना चेहरा दिखाओ",  आम्रपाली पलटतीहै और राजकुमारी के सम्मुख जाती है, राजकुमारी उसकी सुंदरता देख अवाक रह जाती है और सोचती है "क्या ऐसे स्थानो पर भी ऐसी खूबसूरती बसती है", आम्रपाली राजकुमारी से कुछ लेने को कहती है तो राजकुमारी उसके सामने छोली फेला कर कहती है "तुमने मुझसे कुछ लेने के लिये कहा है, मैं तुमसे कुछ मांग रही हूँ, आशा करती हूँ तुम अपनी बात से नही पल्टोगि, आम्रपाली मुझे तुम वही दोगी जो मैं चाहती हूँ ये वादा करो", आम्रपाली कहती है "एक मेज़बान होने के नाते ये कर्तव्य है मेरा की अपनी मेहमान की सभी ज़ायज़ इच्छा पूर्ण करू, स्पष्ट बताये आपको मुझ गरीब और साधारण कन्या से क्या चाहिये'',।
राजकुमारी कहती है "समर, समर मेरा पति और इस राज्य का भावी राजा है, किन्तु तुम उसके हृदय में रहती हो, तुमसे बिछड़ कर भी वो तुमसे अलग नही है, सिर्फ तुम्हारी ही बाते वो करता है, उसे राज्य संभालना है, राजनीती सीखनी है पर उसकी दिलचस्पी इसमें नही है तुममे है, मुझे पता है तुम् दोनों का रिश्ता पर अब तुममे और उसमे अंतर है, कृपया उसे अपने प्रेम से आज़ाद कर दो, मुझे मेरा समर लौटा दो मेरे लिए न सही राज्य के लिये ही सही'', आम्रपाली कहती है "ये क्या मांग लिया आपने मुझसे, उसकी याद के सिवा और कुछ मेरे पास बचा भी नही है, एक उसकी यादे ही तो मेरे जीने का सहारा है, उन्हें भी आप ले लेना चाहती है, महल की चका चौंध मे व्याप्त वो मेरे प्रेम को भूला समस्त गाँव में मुझे बदनाम कर राज्य की राजकुमारी से विवाह कर बैठा, एक पल के लिये भी मेरा विचार हृदय में नही लाया, इसके बाद भी उसकी हर नई चित्रकारी को धन के अभाव में मैं खरीदती रही, उसको आगे बड़ते देख प्रसन्न होती रही, जब उसने राजकुमारी से विवाह किया तो सभी ने उसे बुरा भला कहा पर मेरा विचार था उसने ठीक किया, आज वो जिस शिखर पर है वहा पत्नी केवल एक राजकुमारी ही उसकी होनी चाहिये ये साधारण कन्या नही, किंतु हे राजकुमारी मुझे उस से प्रेम करने से आप रोक नही सकती, उसकी यादो से मुक्त नही कर सकती"।

राजकुमारी कहती है "एक से एक धनवान पुरुष और सुंदर पुरुष से मैं तुम्हारा विवाह करा सकती हूँ, किसी राज्य के राजा तुमसे प्रसन्नता से विवाह कर लेंगे यदि तुम चाहो तो, तुम्हे धन धान्य इतना मैं दूंगी की उमर भर इसकी कमी नही होगी, तुम्हारी कुटिया को भव्य हवेली बनवा दूँगी, बस तुम विवाह कर लो, तुम्हारे विवाह के समाचार से समर भी मेरे पास लौट आयेंगे और राज काज भी संभाल लेंगे", राजकुमारी आगे कहती है "समर के द्वारा तुम्हे न अपनाने का दाग तुम्हे जो लगा है वो भी मिट जायेगा, आम्रपाली धन से आवश्यक आज कुछ भी नही है, भावी जीवन और अपने सुख समृद्धि की सोचो, धन है तो कुछ भी तुम पा सकती हो?"", आम्रपाली कहती है ''क्या प्रेम भी'', राजकुमारी उत्तर देती है ''हाँ प्रेम भी''।

आम्रपाली कहती है "छमा चाहती हूँ राजकुमारी जी, यदि धन से हि प्रेम मिल सकता तक आप कितनी धनी है, आप भिक्षा में आज मुझसे समर माँग रही हैं, क्या धन की कमी हो गयी है आपके पास, राजकुमारी जी में ये गाँव और राज्य त्याग सकती हूँ किंतु जीवित रहते समर के स्थान पर किसी और को नही ला सकती,आप राज्य की राजकुमारी और समर की पत्नी है इसलिये आपका मान रखा है, इससे पूर्व मैं मर्यादा भूल जाऊ कृपया यहाँ से चली जाये।

राजकुमारी अपना सा मुह ले कर वहा से चल देती है, आज अहसास हुआ प्रेम धन से लालच से नही पाया जा सकता, सिर्फ भौतिक शरीर से रिश्ता जोड़ना ही प्रेम नही, कभी कभी भौतिक रिश्तों में पड़े बिना निःस्वार्थ भावना भी प्रेम कहलाती है, दुनिया चाहे इसे कुछ भी कहे पर प्रेमी जानते है ये प्रेम है सच्चा निःस्वार्थ कोमल पवित्र प्रेम।

गीत-जिसके लिये मैंने किया इंतज़ार है

''जिसके लिये मैंने किया इंतज़ार है
जाने वो मेरा दिलबर कहाँ है-२

प्यासी है नज़रे मेरी जिसके लिये
जाने वो मेरा दिलबर कहाँ है

दिन बीते माह बीते बीत गये सालो साल
नही मिला वो जिसके बिन हुआ ये हाल
बस उनसे मिलन की आस है इस दिलमे
जाने वो मेरा दिलबर कहाँ है

जाने कौन है वो कैसा कहाँ है
बाहों में जिसकी मेरा जहाँ है
जिसके लिये मैंने किया इंतज़ार है
जाने वो मेंरा दिलबर कहाँ है

याद में उसकी मुझे नींद नही आती है
रह रह कर दिलमे ये ही बात उठती जाती है
कब वो करीब होंगे सुन ओ 'मीठी' तुम्हारे
तुमसे मिलन की 'ख़ुशी' से ये आँख भर जाती है-२

तेरी याद में हाये ये उमर बीती जाती है
तू आये न आये ज़िन्दगी गुज़री जाती है-२

बस तुझसे ही तो किया मैंने  इकरार है
आज कह दे तू भी तुझे मुझसे ही प्यार है

जिसके लिये मैंने किया इंतज़ार है
जाने वो मेरा दिलबर कहाँ है-२''




Tuesday 28 February 2017

गीत-है ये कैसी मुश्किल


है ये कैसी मुश्किल ये कैसा असर है
जिधर हम देखते है तू आता नज़र है-2

तुझे कैसे बताये तुझे कितना चाहते हैं
दिलकी हर धड़कन में तुझे ही पाते हैं
शायद तेरी चाहत का ये मुझपे असर है

लुटाई है तुझ पर अपनी ये ज़िंदगानी
तुझसे ही तो शुरू हुई मेरी हर कहानी
जो भी हूँ आज में बस तेरी नज़र है
शायद तेरी मोहब्बत में ना कोई कसर है

है कैसी ये मुश्किल.................


मेरी ख़ुशी का तुम ही आसरा हो
जिधर मैं देखु तुम्ही हर जग़ह हो-2

वफ़ा का वादा ये कभी तोड़ न जाना
मुझको अकेला तुम छोड़ के न जाना-2

जी न सकेंगे एक पल भी अब तुम्हारे
करी है ये ज़िन्दगी अब तुम्हारे हवाले

गम बेवफाइ का तुम मुझे दे न जाना
मझधार में तनहा छोड़ के न जाना
की है जो मोहब्बत 'ख़ुशी' हर तरफ है
शायद तभी ज़माने से 'मीठी' बेखबर है

है ये कैसी मुश्किल ये कैसा असर है
जिधर हम देखते है तू आता नज़र है-2



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