Tuesday 18 April 2017

कविता

अपनी अधूरी कहानी याद आती है
हर पल बात वही पुरानी याद आती है

तेरा मुस्कुराना मेरे करीब यूँ आना
पल पल तेरी हर वो रवानी याद आती है

कहते है लोग जुदा तू मुझसे हो गया
जो संग जी तेरे वो ज़िंदगानी याद आती है

भले न हो तु आज दुनिया की महफ़िल में
अपनी मोहब्बत की ये निशानी याद आती है

आज भले है अश्क इन आँखों में तेरे बिन
'मीठी-ख़ुशी' की हर नादानी याद आती है

जिये हैं जो ये लम्हें हस कर हमने साथ
साथ तुम्हारे की हर शैतानी याद आती है

अपनी अधूरी कहानी याद आती है
हर पल बात वही पुरानी याद आती है-2

Sunday 16 April 2017

भजन-जीवन की नेया

"जीवन की नेया पार लगाओ प्रभु
भव-सागर से पार लगाओ प्रभु

भटकता रहा हूँ बिन मन्ज़िल के
जगत में है न मेरा कोई ठिकाना-२

आकर मुझको गले लगाओ प्रभु
और न मुझको तुम सताओ प्रभु

जीवन की नेया.................प्रभु

जीवन है मेरा कितना अधूरा
अँधेरे ने इसको है आज घेरा-२

थाम लो हाथ ले चलो साथ मेरे प्रभु
न छोड़ो तन्हा अपना लो मुझे तुम प्रभु

माना न भक्ति है न है धर्म की शक्ति
पापी हूँ मैं पाप ही बस करता रहा हूँ -२

खुदको दूर तुझसे मैं करता रहा हूँ
मर मर के यूँ तो मैं जीता रहा हूँ

अब न दूर मुझसे और न रहो तुम
आ कर मुझे तुम अपनाओ  प्रभु

भला हूँ बुरा हूँ तेरा ही बालक हूँ
मझधार से निकाल दिलसे लगाओ प्रभु

जीवन की नेया.......................प्रभु

वचन न तेरा कभी झूठा बने
आकर हृदय में बस जाओ प्रभु

अकेला रहा हूँ इन रास्तो पर मैं भी कभी
साथी बन कर साथ मेरे तुम भी चलो कभी-२

जीवन की नेया पार लगाओ प्रभु
भव-सागर से पार लगाओ प्रभु-२"








ईश्वर वाणी- मैं सदा सबके साथ हूँ, २०४

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने सुना एवं पड़ा है की भगवन श्री कृष्ण की हज़ारो पत्निया थI तथा प्रत्येक के साथ वह रहा करते थे।

किंतु इस लीला का भाव यही है भगवान अथवा ईश्वर अथवा परमात्मा जगत में हर किसी के साथ है। देश, काल, परिस्तिथि के अनुसार मेरा रूप रंग आकर भाषा वेशभूषा रीती रिवाज़ भले बदल लू किंतु मूल तत्व वो आदी शक्ति सदा सभी के साथ हूँ ।

हे मनुष्यों तुम मुझे जिस नाम रूप से मुझे पुकारोगे उसी स्वरुप में मैं तुम्हारे समक्ष उपस्तिथ रहूँगा। श्री कृष्ण के हज़ारो रानियों के साथ रहने का एक भाव यह भी है की मैं किसी के साथ भेद भाव नही करता, जो निःस्वार्थ भक्ति से मुझे पाने की लालसा करता है मैं उसके साथ होता हूँ किंतु उसके अनेक जीवन के कर्म ही ये तय करते है की कौन मुझे कितना प्राप्त करता है।

हे मनुष्यों तुम्हारे भौतिक माता-पिता तुम्हारे भौतिक शरीर के आधार पर ही तुमसे सम्बन्ध रखते है, उनके लिये पिछली पीढ़ियों से मिली अनेक मान्यता जो स्वम मानव द्वारा निर्मित है वो ज़िम्मेदार है, अचरज और शैतान का प्रभाव इतना है की मनुष्य इन सब मान्यताओ से बाहर ही नही आना चाहता सब जानते हुये भी, और इस प्रकार मानव अपनी संतान के साथ भी केवल भौतिक देह के आधार पर प्रेम व् अपनत्व का भाव रखता है।

किंतु मैं परमेश्वर प्रत्येक जीव को उसकी भौतिकता नही अपितु आत्मा एवं कर्म के आधार पर व्यवहार रखता हूँ, मेरे लिये भौतिक देह केवल एक वस्त्र के समान है जो कर्मोनुसार बदलते रहते है।

हे मनुष्यों मेरा प्रेम सभी जीवो पर सदा ही एक समान रहता है, मेरे सभी स्वरुप तुम्हें यही दीक्षा देते हैं"


कल्याण हो

Saturday 8 April 2017

चंद अलफाज

"ये चेहरे पे तेरे जो इतना नूर है
शायद तभी तू इतना मशहूर है
है मासूम सी अदा कितनी प्यारी
मोहब्बत का ही ये असर हुज़ूर है"
ये लाइन्स Bossy Boss Mishra के लिये





"खून हिन्दू का बहे या मुस्लमान का
जो बेगुनाह पड़ा है ज़मी पर आज ऐसे
ये शख्स तो है बस मेरे हिंदुस्तान का"

कविता-मैं भी जीना चाहती थी


मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह

पर ज़िन्दगी से ठोकरे मुझे मिलती रही
चलना मैं भी चाहती थी सब की तरह

ख्वाब थे जाने कितने ही इन आँखों में
पूरा करना चाहती थी उन्हें सब की तरह

बेमान इश्क भी निकला किस्मत में मेरे
पाना उसे बस चाहती थी सब की तरह

आसमान में पंक्षी देखे ऐसे यु उड़ते हुए
मैं भी तो उड़ना चाहती थी सब की तरह

मीठे पल हँसी ज़िन्दगी के दिलने चाहे थे
'मीठी-ख़ुशी' चाहती थी सब की तरह

मैं भी जीना चाहती थी सब की तरह
'ख़ुशी' के पल चाहती थी सब की तरह
--
Thanks and Regards
*****Archu*****

Saturday 1 April 2017

कविता

"इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो

है दिल धड़कता एक सीने में तुम्हारे भी
दूसरे की धड़कन न तुम बन्द किया करो

न बहाओ लहू किसी का न बहने दो
इंसान हो इंसानियत को न खोया करो

न बनाओ इस दिल को इतना पत्थर
थोड़ी लाज इंसानियत की किया करो

दिखते नही अश्क किसी की आखो के
मौत पर तो किसी की तुम रोया करो

मार रहा इंसान ही इंसान को इस कदर
प्रेम का पाठ निरीहों से तुम सीखा करो

जगत में उड़ता देखो मानवता का उपहास
ज़िन्दगी की सीख तुम निरीहों से लिया करो

प्रेम ही जीवन है ये न भूलो तुम आज ये बात
इंसान हो इंसानियत का तुम बस मान करो

इंसान हो तुम इंसान बन कर रहा करो
जख्म न यूँही किसी को तुम दिया करो-२"

मुक्तक

"मिलकर आओ, हम आज कुछ ऐसा जहाँ बनाये
मिलकर सभी, इन निरीहों का जीवन अब बचाये
जिये खुद भी, और उन्हें जीवन का अधिकार दे
बने धरती स्वर्ग सबके लिये, चलो शाकाहार अपनाये''