Wednesday 8 November 2017

ईश्वर वाणी-२२५, आत्माये धरती से ऊपर रहती है


ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम ये सब जानते हो की आत्मा जब देह त्याग जाती है तब भी इस संसार में उसका अस्तित्व रहता है, आत्मा एक ऊर्जा एक शक्ति के रूप में उस वक्त तक अपने इस सूक्ष्म शरीर में रहती है जब तक उसे दूसरी देह अथवा मोक्ष न मिल जाये।

हे मनुष्यो ये तुमने सुना होगा की आत्मा कभी ज़मीन पर नही चलती अर्थात भूमि से कुछ ऊपर ही रहती है, जिससे पता चलता है जीवित और मृत प्राणी का अर्थात कभी कभी मृत प्राणी बिलकुल जीवित जैसा ही रूप धारण कर अपने निम्न उद्देश्यों की पूर्ती हेतु जीवित व्यक्तियो में आ जाते है ऐसे में ये देख कर उन्हें पहचाना जा सकता है की उनके पाँव भूमि से टकराते है या नही, कभी कभी आत्माये इतना मामूली अंतर रखती है ज़मीन से अपनी ऊचाई का की आँखों से देखने पर पता ही नही चलता, ऐसे में रेत अथवा रेतीली भूमि पर उनके पैरो के चिन्नो से पता चल सकता है की फला व्यक्ति जीवित है या मृत, जीवित व्यक्ति के पेरो के निशान भूमि पर बन जायंगे किन्तु मृत व्यक्ति के निशाँ उस रेत या रेती भूमि पर नही बनेंगे, यदि रेतीली भूमि या रेत न मिले तो गीली मिटटी से भी ये प्रयोग कर उक्त व्यक्ति के विषय में जाना जा सकता है।

हे मनुष्यो यद्दपि साधारण आत्मा ही नही मेरे द्वारा भेजे दूत (मेरे ही अंश जो भौतिक देह प्राप्त कर जन्म लेते है अपने भौतिक माता पिता द्वारा)जब वह देह त्याग चुके होते है वह भी पृथ्वी भ्रमण के दौरान भूमि से कुछ ऊपर ही रहते है, इसका एक कारण ये ही है धरती सहित सभी गृह, नक्षस्त्र, ब्राह्मण सब भौतिक है इसलिए नाशवान है किन्तु ये आत्मा परमात्मा अर्थात मुझसे निकलने के कारण अमर है, आत्मा ही प्रत्येक जीवन का आदि तत्व है किंतु ये नाशवान नहीं है यद्दपि भौतिक देह के सभी अंग मानव देख सकता है, छू सकता है किंतु आत्मा जो प्रत्येक जीव का आदि और प्रमुख अंग है इसे ना तो भौतिक में कहाँ स्थित है ये देखा जा सकता और ना ही छुआ जा सकता किंतु इसके बिना भौतिक देह मिटटी की काया एक बेज़ान वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी नही है।

हे मनुष्यों यद्दपि तुम सोचोगे की कुछ असमान्य गतिविधिया जिन्हें कहा जाता है की अलौकिक शक्तिया करती  कही जाती है, वस्तुए अचानक गायब हो जाना फिल मिल जाना या किसी की देह में किसी भूत आदि प्रवेश हो जाना, तब तो आत्मा इन वस्तुओं को छूती है जोकि भौतिक और नाशवान है फिर धरती पर उनके निशाँ का ना मिलना अर्थात पृत्वी से कुछ ऊँचा उनका होना सिर्फ इसलिये की वो भौतिक है इसलिये इस पर उनके कदम नही पड़ते सही जान नहीं पड़ता।

हे मनुष्यों तुम्हे उसका ही उत्तर बताता हूँ, यद्दपि आत्मा चाहे वो भूत प्रेत योनि में भटक रही है होती है किंतु वो तुम्हे बिना छुये तुम्हारे मस्तिक को भ्रमित कर देती जिससे तुम्हें कभी किसी वस्तु के अपने स्थान से गायब होने का अहसास होता है, साथ ही तुम्हे बताता हूँ आत्मा जब खुद भी भौतिक देह के साथ जन्म लेती है तब भी वह पृथ्वी से नही छिलती अपितु ये देह पृथ्वी को छूती है और यही कारण है जब आत्मा किसी की देह पर भूत बन कर कब्ज़ा करती है तब भी धरती से नही छिलती, छिलता केवल भौतिक शरीर है यद्दपि आत्मा भौतिक शरीर में उस अंग से उसके शरीर में प्रवेश करती है जो आत्मा द्वारा छुये नही जा सकते किंतु  वहा से भूत बनने वाली आत्मा पहले से रहने वाली आत्मा पर कब्ज़ा कर लेती है।

हे मनुष्यों ये आत्माये समस्त ब्रह्मांड की आदि शक्तियो में से एक है और जीवन का प्रमुख तत्व है, बिना आत्मा के सृष्टि के किसी भी जीव के जीवन की कल्पना सम्भव नही है।

उम्मीद है तुम्हे आत्मा की विषय में एक नवीन ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी


कल्याण हो"

Saturday 4 November 2017

कविता-तुम हो

"दिल की गहराई में तुम हो
इस तन्हाई में तुम हो

तुम्हें क्या कहु ऐ हमनसिं
मेरे इश्क की सच्चाई में तुम हो

मैं हूँ पागल इश्क में तेरे
मोहब्बत में हरजाई तुम हो

मैंने तो निभाई प्रीत वफ़ा की
आशिकी की बेवफाई में तुम हो

किया ऐतबार हर मोड़ मैंने तेरा
 मोहब्बत की जगहँसाई में तुम हो

मैंने तो नाम कर दी 'मीठी' हर 'ख़ुशी'
पर इस ज़िंदगी की रुलाई में तुम हो

पुकारता है दिल तुझे आज भी
बेवफा है तू मेरी वफाई में तुम हो

दिल की गहराई में तुम हो
इस तन्हाई में तुम हो-३"





Sunday 22 October 2017

कविता-है कुछ मुझे कहना

"आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२

ना जाना दूर कभी यु मुझसे मेरे दिलबर
बन कर मेरी ज़िन्दगी सनम तुम्ही रहना

तुम्ही हो मेरी बन्दगी ऐ मेरे हमनशीं
तुम्ही तो हो मेरी खुशियो का गहना

मैं हूँ एक नदिया की धारा तुम सागर मेरे
जनम जनम तक साथ तेरे है मुझको बहना

तुमसे ही जोड़ा दिलका एक ये रिश्ता मैंने
इन धड़कनो में सनम तुम्ही अब बस रहना

बहुत रह चुके अकेले इन तन्हाइयो में हम
दर्द जुदाई का और नहीं हमे अब सहना

आ जाओ बाहों में 'मीठी' तुम्हे पुकारे
'ख़ुशी' की साँसों में तुमही  पिया रहना


आज तुमसे है कुछ मुझे कहना
दिलकी गहराई में सनम तुम्ही रहना-२"



Thursday 12 October 2017

जब तुम मेरे साथ थे

"ज़िन्दगी का वो वक्त कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे
हर एक वो लम्हा कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

ज़िन्दगी लगती थी खूबसूरत मुझे साथ तुम्हारे 'मीठी'
'ख़ुशी' का वो पल कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

वादे इरादे वही है आज भी वफ़ा के अपने 'ख़ुशी' पर
वो मौसम कितना हँसी था जब तुम मेरे साथ थे

ख्वाब देखा था 'मीठी-ख़ुशी' साथ उमर भर का
वो साथ भी कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

दुनिया से छिपाये मेरे अश्क तुम कैसे भाप थे लेते 
'ख़ुशी' का प्यार कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

'मीठी' लगने लगी थी मुझे ज़िन्दगी की ये कड़वाई
दिलका अहसास कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

वक्त का है सितम तभी न तुम हो बेवफा न है हम
मिलन का आभास कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे

ज़िन्दगी का वो वक्त कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे
हर एक वो लम्हा कितना हसीं था जब तुम मेरे साथ थे-२"

Tuesday 10 October 2017

कविता-ऐ ज़िन्दगी

"ऐ ज़िन्दगी थोडा रुक, वक्त तो दे मुझे
  यु न तू ऎसे, अपनों से जुदा कर मुझे

  माना नहीं मैं रहा काबिल जहाँ के 
अपनो के ये अश्क तो पोछने दे मुझे

रह जायेंगी यादें मेरी इस महफ़िल में
थोडा इस महफ़िलमें और रहने दे मुझे

ये माना दर्द से तड़प रहा हूँ कितना में
अधूरा हूँ 'मीठी' बिन तेरे, कहने दे मुझे

पल पल करीब आ रही मौत 'ख़ुशी' के
दर्द आज 'मीठी-ख़ुशी' से सहने दे मुझे

हाँ माना भुला देंगे ये अपने मुझे कल
अपनों कीही मोहब्बत में बहने दे मुझे


ऐ ज़िन्दगी थोडा रुक, वक्त तो दे मुझे
  यु न तू ऎसे, अपनों से जुदा कर मुझे-2"

मुक्तक

Macks Archu
"उनकी याद में हम आज भी  ये अश्क बहाते है
ढूँढ़ते हैे हर जगह बस उन्हें ही  ना कही पाते है
किसी को क्या कहु मैं दोष तो नसीब का हैं मेरे
मीठी को ख़ुशी से दूर मौत के ये पैगाम ले जाते है"

Wednesday 4 October 2017

ईश्वर वाणी-२२४-धार्मिक ग्रन्थ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्दपि तुम मुझ पर आस्था रखते हो, मेरी आराधना करते हो, अपने ही अनुकूल धार्मिक शास्त्र पड़ते और विश्वास करते हो, किंतु यदि तुम केवल उसी एक धार्मिक शास्त्र को सही मानते हो जिस पर तुम और तुम्हारा समुदाय यकीं करता है बाकी की अवहेलना करते हो तो तुम मेरे क्रोध के भागी बनते हो।

मेरे द्वारा रचित किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में ये उल्लेख नही है की किसी भी धार्मिक शास्त्र का अपमान करो और सिर्फ जिस पर तुम्हारा और तुम्हारे समुदाय का विश्वास हो केवल उसी को सत्य और मेरी वाणी मान सबका अनादर करो।

हे मनुष्यों देश/काल/परिस्तिथि और भाषा के अनुरूप ही ये धार्मिक शास्त्र रचे गए है, जहाँ जहाँ जिस बात की आवश्यकता हुई वहा वहां उसी के अनुरूप इनकी रचना की गयी ताकि भटके हुए मानव को एक सही पथ मिल सके और उसके समुचित मानव चरित्र का विकास हो सके, मानव अपने जन्म की इश्वरिये वजह जान सके और मेरे द्वारा बताये मार्ग पर चल प्राणी जाती के कल्याण हेतु कार्य कर मोक्ष की और अग्रसर हो सके।

हे मनुष्यों इसलिये केवल तुम्हारा ये मानना की केवल मेरा ही धर्म शास्त्र श्रेष्ट सही और ईश्वर की और से है गलत है, मेरी तरफ से तो सभी धार्मिक शास्त्र है किंतु तुमने अपने अनुसार बदलाव कर मेरी बातो को अपने अनुसार लिख दिया है और उन्ही पर विश्वास कर मानव ने मानव को ही शत्रु बना अपने समुदाय के अनुरूप ही राज्यो/राष्ट्रों का निर्माण कर लिया है किंतु शान्ति तुमने वहा भी नही पायी है क्योंकि तुमने अपनी ही जाती को शत्रु बना लिया है और मेरे धारमिक शास्त्रो की अवहेलना कर केवल अपने समुदाय में मान्य धर्म शास्त्र पर यकीं किया।

हे मनुष्यों तुमने मेरी निंदा की, मेरी लिखी बातो (विश्व के सभी धर्म शास्त्र) पर अविश्वाश कर केवल एक ही धर्म शास्त्र पर यकीं कर सभी को दुत्कार कर मेरा अपमान किया, हे मनुष्यों तुम्हे क्या लगता है मैं इतना तुच्झ हूँ जो केवल एक दो तीन चार पुस्तको में आ जाऊँगा, मेरी बाते इतनी निम्न होंगी जो गिने चुने शास्त्रो में ही सिमट कर रह जाएंगी।

हे मनुष्यों ये न भूलो जगत को जन्म देने वाला, नष्ट करने वाला, जीवो को जन्म और नष्ट करने वाला, अतीत वर्तमान भविष्य बनाने वाला, दुःख सुख देने वाला, ब्रमांड चलाने वाला तुम सबका स्वामी मैं ही हूँ, तो क्या मेरी बाते इतनी तुच्छ होंगी जो गिनी चुनी किताबो में आ जायँगी।

हे मनुष्यों विश्व के सभी ग्रन्थ व् धार्मिक शास्त्र मेरे रूप और मेरी बातो का एक सारांश मात्र भी नही है किंतु तुम केवल गिनी चुनी पुष्टको पर भरोसा कर मेरा अपमान करते हो, यदि मेरे विषय में थोडा सा भी जानना है तो विश्व के सभी धर्म शास्त्र पर भरोसा करो, सबको सम्मान दो तभी कुछ हद तक मुझे प्राप्त कर सकते हो।"

कल्याण हो