Wednesday 28 March 2018

तुम मिलोगे कभी-कविता


“है मुझे खुद पर ये भरोसा
इस भीड़ में तुम मिलोगे कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
इन रास्तों पर तुम दिखोगे कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
कहीं तो हो तुम ऐ मेरे हमनशीं

है मुझे खुद पर ये भरोसा
संभालने मुझे तुम आओगे कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
सोये अरमां जगाओगे तुम कभी

है मुझे खुद पर ये भरोसा
इस भीड़ में तुम मिलोगे कभी"

Friday 2 March 2018

कविता-दिलसे दिलकी बात आज होने लगी है👍👌👍👌

दिलसे दिलकी बात आज होने लगी है
धड़कन भी कुछ मुझसे कहने लगी है

जो ना होना था वो क्यों होने लगा है
मेरे दिलकी कली भी खिलने लगी है

मिटा चुके थे मोहब्बत के वो निशाँ हम
फिर इश्क की आहट अब मिलने लगी है

कहीं खो ना जाऊ प्यार में तेरे प्रिये मैं
नज़रे ये मुझसे आज अब कहने लगी है

मिले चाहे फिर बेवफाई किस्मत से अब
तुझसे मिलने की ये चाहत जगने लगी है

दिलसे दिलकी बात आज होने लगी है
धड़कन भी कुछ मुझसे कहने लगी है-2

Thursday 1 March 2018

ईश्वर वाणी-241, देवता, मानव व ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं देवता  मानव व परमात्मा अर्थात अपने विषय में बता चुका हूँ किंतु तुम्हें फिर बताता हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि में ही सर्वोच्च हूँ, में ही देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप अपने ही एक अंश को धरती पर भेजता हूँ जब जब मानव व प्राणी जाती के हितों का ह्रास होता है।
यद्धपि तुम सब भी मुझसे ही निकले हो, मैंने तुम्हें धरती पर भेजा है, किंतु  जब जब तुमने अपनी शक्ति का उयोग गलत दिशा में करना शुरू कर दिया तब तुम्हे5 तुम्हारे उद्देश व कर्तव्यों को याद दिलाने हेतु देश काल परिस्थिति के अनुरूप मैंने अपने अंश को भेजा जो तुम्हें बता सके कि तुम्हारे ऊपर भी एक स्वामी है, तुम्हारे ऊपर भी एक राजा है, कोई है जो तुम पर भी शाशन करता है, तुम अकेले नही हो स्वामि धरती और यहाँ के जीवों के, तुम केवल इनकी देखभाल करने वाले उस राजा के सेवक मात्र हो, खुद को राजा न कहो क्योंकि तुम केवल मानव हो, यद्धपि तुम्हारे अच्छे गुण देतवा समान पद तुम्हें दे सकते हैं किँतु तुम मानव हो धरती और जीवो का ख्याल रखने वाले राजा के सेवक।

यद्धपि अच्छे गुण वाले व्यक्ति को देवता तुल्य ही बताया गया है, जो व्यक्ति नेक कर्म करने वाला, अच्छे विचार रखने वाला, सात्विक भोजन करने वाला, सबकी निःस्वार्थ सहायता करने वाला ऐसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को ही देवता कहा गया है।

हे मनुष्यों यद्धपि ये सभी गुण मैंने तुम्हें भी दिए हैं किंतु स्वार्थ सिद्धि में तुम इस कदर पाप करते रहते हो निरन्तर की उस शक्ति को तुमने भुला दिया है, और इस कारण बुराई को धारण कर पाप कर्म करने में लगे हो। इस कारण मुझसे निकलने के बाद भी तुम एक मानव हो न कि देवता।

किंतु जो मनुष्य पाप कर्मो में नही पड़ता, मेरे बताये मार्ग पर चल मानव व समस्त जीवों के कल्याण हेतु सदा सलग्न रहता है, सात्विक विचार रखता है, सात्विक भोजन करता है, वही देवता हैं, किन्तु उन्हें में ही निम्न उद्देश्यों हेतु चुनता हूँ, वही इस धरती के असल राजा हैं और उन्हें ये अधिकार मैंने ही दिया है, ऐसे ही व्यक्ति देश काल परिस्थिति के अनुरूप जन्म ले मनुष्यों को असल ओहदा बताते हैं कि संसार व मेरी दृष्टि में उनका ओहदा क्या है, क्या उनका पद है, और उनका मकसद क्या है।

किन्तु सन्सार का असल स्वामी मै हूँ, में परमात्मा हूँ, मेरी ही आज्ञा से मेरे ही स्वरूप से तुम्हारी आत्मा का जन्म होता है, मेरी ही आज्ञा से मेरे ही उन अंशो का जन्म होता है जिन्हें मैंने तुम्हारे ऊपर बैठा कर देवता अथवा देवी का ओहदा दिया है। किन्तु तुम सबमें अथवा सभी में मैं ही सर्वोच्च हूँ में निराकार हूँ, आदि हूँ, अनन्त हूँ, मैं परमात्मा हूँ।

हे मनुष्यों आशा हैं तुम्हे देवता परमात्मा और मानव के विषय मे जानकारी मिल चुकी होगी’

कल्याण हो



Monday 26 February 2018

ईश्वर वाणी-240, आद्यात्म व आत्मा से संबंधित ज्ञान

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हे मैं आध्यात्म से संबंधित ज्ञान तुम्हे दे चुका हूँ, किन्तु आज फिर थोड़ा सा ज्ञान आध्यत्म से सम्बंधित तुम्हें देता हूँ।

हे मनुष्यों आध्यात्म वो नही जो किसी धर्म विशेष के विषय मे बात करे, निम्न पुस्तको को पढ़ने और सुनाने से आध्यात्म की प्राप्ति नही होती, अपितु आध्यात्म एक ऐसा विषय है जिसमे सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, क्षेत्र को समान सम्मान देना शामिल हो।

यदि एक धर्म विशेष को तुम मानते हो उसकी ही धार्मिक पुस्तक पड़ते व विश्वास करते हो, किन्तु आध्यात्म केवल इतना नही अपितु समस्त जगत का ज्ञान इसमे शामिल हैं जो धर्म जाती भाषा क्षेत्र सम्प्रदाय से परे है।

हे मनुष्यों मैं अब तुम्हे अपने विषय मे सक्षीप्त ज्ञान देता हूँ यद्धपि पहले ही तुमहे आत्मा परमात्मा व भौतिक देह के विषय मे बता चुका हूँ किंतु आज फिर संशिप्त में तुम्हे बताता हूँ। परमात्मा अर्थात प+र+म+आ+त+म+आ=परमात्मा
ये दो शब्दों से मिलकर बना है-

परम  और आत्मा अर्थात आत्माओ में परम्, प्रथम, किंतु प्रत्येक शब्द का शाब्दिक  अर्थ इस प्रकार है

- प=प्रथम

र=रचियता

म=में

आ=अनन्त, आदि

त=तत्व

म=मैं

आ=आत्मा

अर्थात समस्त संसार का प्रथम रचियता में हूँ,  आदि अनन्त तत्व में आत्माओं में पहली आत्मा परमात्मा में हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हारा भौतिक स्वरूप कभी नही मिटता अपितु स्वरूप बदल जाता है, बिन आत्मा के मिट्टी का ढेर हो जाता है जैसे कुम्हार अपने पुराने मिट्टी के बर्तन को तोड़ देता है ताकि उस मिट्टी से नए बर्तन बनाये वही इस भौतिक देह के साथ होता है।

किन्तु आत्मा कभी नही बदली अपितु वो जैसी है उसी रूप में रहती है अर्थात निराकार रूप में, किंतु सूक्ष्म शरीर अर्थात अतृप्त आत्मा अवश्य अपने भौतिक स्वरूप की भांति ही नज़र आती है किंतु जब मोक्ष पा कर नवजीवन में प्रवेश करती है तब वो अपने असल स्वरूप में होती है जो  निराकार है, आत्मा अपने पिछले समस्त कर्मो के फल प्राप्त कर नवजीवन में प्रवेश करती है।

हे मनुष्यों आज की ईश्वर वाणी में पिछली ईश्वर वाणियों का सार (आध्यत्म व आत्मा से सम्बंधित ज्ञान) तुम्हें दे चुका हूँ, आशा करता हूँ तुम्हें इससे ज्ञान की प्राप्ति हुई होगी।"

कल्याण हो





ईश्वर वाणी-239, सकारात्मक सोच

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैं पहले बता चुका हूँ जीवन में प्रार्थना का फल कैसे मिलता है, आज उसी बात को आगे बढ़ाता हुआ तुम्हे कुछ नवीन ज्ञान देता हूँ।

हे मनुष्यों जब तुम किसी भय में होते हो, तुम्हें किसी नकारात्मक शक्ति का भय सताता है, तब तुम मेरा स्मरण करते हो, तब तुम्हारा भय कम हो जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारे अंतर्मन से सकारात्मक शक्ति निकलती है, जो तुम्हारे चारो ओर एक घेरा बना लेती है, ये ही सकारात्मक शक्ति है, जो पूर्ण रूप से उस नकारात्मक शक्ति पर हावी हो उसे कमजोर कर देती जिससे तुम्हारा भय कम होता जाता है।

हे मनुष्यों इसी प्रकार जब तुम्हें लगता है किसी ने तुम पर टोना टोटका कर दिया है और उससे बचने के लिए तुम्हे पूर्ण विश्वास के साथ अनेक उपाय सुझाए जाते हैं, जिन्हें पूर्ण विश्वास से करना पड़ता है, ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा करने से जो सकारात्मक ऊर्जा तुमसे निकलेगी वही उस उपाय को सार्थक बनाती है, और तुम्हे तुम्हारी पीड़ा से मुक्ति दिलाती है।

वही तुम्हारी नकारात्मक सोच इसका उलट असर दिखाती है और तुम्हारे समझ दिक्कत लाती है, इसलिए सदैव सकारात्मक रहो।"


कल्याण हो

कविता-अरमान जागा है

"आज बस जीने का फिर अरमान जागा है
आज  कुछ कहने का फिर अरमान जागा है

सपनो की दुनिया से मुह मोड़ चुके थे हम
आज ख्वाब देखने का फिर अरमान जागा है

सबसे नाता तोड़ दूर कहीं चले गए थे हम
आज सबसे मिलने का फिर अरमान जागा है

सोचा था शायद अब हम यूँही तन्हा रहेंगे
आज खुल कर जीने का फिर अरमान जागा है

डरने लगे थे इन रास्तों पर चलने से हम तो बस
इन रास्तो से मोहब्बत का फिर अरमान जागा है

आज बस जीने का फिर अरमान जागा है
आज  कुछ कहने का फिर अरमान जागा है-२"

ईश्वर वाणी-238, जीवन मे प्रार्थना का प्रभाव

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों में तुम्हे आज प्राथना के विषय मे बताता हूँ, आखिर ऐसा क्या होता है जो लोग कहते हैं कि तुम्हारी प्राथना ईश्वर ने सुन ली, या फिर क्या कारण है जिसके कारण तुम्हारी प्रार्थना नही सुनी गई।

हे मनुष्यों जब तुम सच्चे दिलसे मुझे याद करते हो, साथ ही सच्चे दिलसे बिना की राग द्वेष छल कपट के कोई दुआ मांगते हो, मुझपर पूर्ण श्रद्धा रख कर सच्चे दिलसे मुझे याद कर कोई इच्छा करते हो तो पूर्ण अवश्य होती है।

इसका कारण ये है जब तुम ऐसा करते हो तब तुम्हारे शरीर से तुम्हारी आत्मा जो मेरा ही एक अंश है जो जाग्रत हो कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है, यही सकारात्मक ऊर्जा तुम्हारे चारो ओर घूमती है एवं तुम्हारी जैसी इच्छा होती है उसे पूर्ण करने के हालात बनाती है।

किन्तु जब तुम छल कपट राग द्वेष की भावना से मेरी स्तुति करते हो तब तुम्हारे अंदर से तुम्हारी आत्मा नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है फलस्वरूप तुम्हारी इच्छा पूर्ण नही होती किंतु यहाँ कुछ व्यक्ति कहेंगे कि मैंने तो कोई छल कपट ईर्ष्या राग द्वेष किसी के साथ नही रखा साथ ही सच्चे दिलसे ईश्वर अर्थात मेरी स्तुति की फिर भी मेरी मनोकामना पूर्ण नही हुई, कोई कहता है मेरी तो होती ही नही मनोकामना पूर्ण।

हे मनुष्यों उन्हें मै बताता हूँ यदि उनकी मनोकामना पूरी नही हुई तो उसकी कुछ वजह हो सकती है जैसे-

1- तुम्हारे अंदर से सकारात्मक ऊर्जा निकली उसे ये पता था जो इच्छा तुम कर रहे हो, निकट भविष्य में उससे तुम्हे भारी हानि हो सकती है, यद्धपि तुम्हे लगता है कि ये ही मेरे लिए महत्वपूर्ण है किंतु भविष्य में ये ही तुम्हे हानि पहुचा सकती है, इसलिए वो उर्जा तुम्हें लाख प्राथना के बाद भी तुम्हारी वो इच्छा पूरी नही करती साथ ही पिछले जन्म के करम भी होते हैं जो व्यक्ति की इच्छाओं को पूरा करने न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2-कई बार तुम्हारे आस पास मौजूद नकारात्मक ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है जिसके कारण तुम्हारे अंदर की सकारात्मक ऊर्जा कमजोर होने के कारण उससे हार जाती है जिससे तुम्हारी इच्छा लाख कोशिश के बाद भी पूर्ण नही होती। ये नकारात्मक ऊर्जा कोई भूत प्रेत नही अपितु तुम्हारे अपने अंदर की निराशा व तुम्हारे आस पास के व्यक्तियों के अंदर व्यापत किसी भी प्रकार की निराशा है, जिसकी शक्ति तुम्हें प्रभावित करती है।

3-निकट भविष्य में तुम्हें इससे भी बेहतर कुछ मिलने वाला होगा तभी तुम्हारी ये इच्छा पूर्ण नही हुई।

4-अभी वो समय नही आया है या किसी चीज़ अथवा जीव जिसकी तुम कामना रखते हो कि सदा तुम्हारे साथ रहे इसके लिए प्रार्थना करते हो किन्तु वो चीज़ या जीव तुमसे सदा के लिए दूर हो जाता है, क्योंकि अब उसका इस स्वरूप में समय पूरा हो चुका है, उसे एक नए स्वरूप की आवश्यकता है साथ ही तुम्हें भी भावनाओं से ऊपर उठ कर मोह त्याग ईश्वर में ध्यान लगाने की आवश्यकता है।


ये निम्न कारण है जो तुम्हारी इच्छा तुम्हारी प्राथना तुम्हारी मन्नत पूरी नही होने देते।

हे मनुष्यों मैं पहले भी बता चुका हूँ मैं तुम सबमे हूँ किन्तु तुम मुझमे नही, तुम्हारी आत्मा मुझ परमात्मा रूपी सागर से निकला एक अंश अर्थात एक बूँद है, तुम्हें मैंने कई अदभुत शक्तियां दी है किन्तु तुम्हारे अंदर विराजित बुराई ने उन्हें  तुमसे दूर रखा है, यदि तुम अपने अंदर की समस्त बुराई को त्यागकर कर मानव कर्म व मानव पथ पर चलते हो तो तुम्हें उन शक्तियों की अनुभूति होगी जो मैंने तुम्हें दी है।

हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैंने आज प्रार्थना के विषय में बताया, संछिप्त ज्ञान और तुम्हे देता हूँ, जो व्यक्ति मेरे किसी भी रूप की पूजा करते हैं, उन्हें हानि नही पहुचाना क्योंकि उस समय उन्हें नही पता किन्तु उनके अंतर्मन से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है, ये ऊर्जा व्रत-उपवास व प्रार्थना के दौरान अवश्य निकली है, ऐसे में यदि उस व्यक्ति को सताया जाता है भले वो व्यक्ति स्वम् कुछ न कहे या करे किन्तु उससे निरन्तर निकलने वाली ऊर्जा दुष्परिणाम निकट भविष्य में  अपने सताने वाले व्यक्ति को अवश्य देती है, यद्धपि तुमने सुना होगा कि फला का आशीर्वाद से मेरा ये काम हो गया अथवा फला की बद्दुआ से ये काम बिगड़ गया, ये सब निम्न व्यक्तियों से निकलने वाली ऊर्जा के कारण हुआ।

हे मनुष्यों तुमने कई मनुष्य व साधु सन्यासी की कहते सुना होगा कि उन्होने अपने इष्ट के साक्षात दर्शन करे पूजा अथवा प्राथना के दौरान, आज तुम्हें बताता हूँ जो ऐसा सच मे अनुभव करते हैं तो ध्यान व प्राथना में इतने खो जाते हैं कि उनके अवचेतन मन से उनकी आत्मा सम्पर्क कर ब्रह्मांड में विराजित ईश्वर रूपी शक्ति से सम्पर्क साध लेती है, ऐसे मनुष्यों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा व उसकी आत्मा के सकारात्मकता के प्रभाव के कारण होता है, जिससे वो अपने इष्ट के दर्शन पाते हैं जिस रूप में उन्हें वो मानते हैं।

इस प्रकार प्राथना का पूरा होना या न होना व्यक्ति के जीवन पर निर्भर करता है।'


कल्याण हो