Saturday 28 April 2018

कविता-ज़िन्दगी की तलाश में चलता रहा हूँ में

"मंज़िल की तलाश में भटकता रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी की तलाश में चलता रहा हूँ में

मिली पग पग ठोकरे मुझे इस राह में
बस यहाँ खुद से ही तो हारता रहा हूँ मैं

खुद को हमसफर कहने वाले मिले बहुत
अपना समझ उन्ही से ठुकराता रहा हूँ मैं

रोती है आज ज़िन्दगी मेरे गमो पर फिर
कैसे खुद पर ही आज मुस्कुराता रहा हूँ मैं

बिखरे मोती माला के फिर पिरोने में लगा
 ख्वाब खुदको ज़िन्दगी के दिखाता रहा हूँ मै

मिल सकती है मंज़िल तुझे ज़िन्दगी सुन
बस हर बार ये कह खुदको बहलाता रहा हूँ मै

मंज़िल की तलाश में भटकता रहा हूँ मैं
ज़िन्दगी की तलाश में चलता रहा हूँ में-२"



Friday 27 April 2018

कविता-दस्तक दी है

आज इस दिलने फिर किसी को दस्तक दी है
धड़कन ने भी फिर इश्क की आहट की है

सूनी थी ज़िन्दगी जो अब से पहले मेरी
देखो फिर से इसने ऐसी करवट ली है

भूल चुका क्या मन इश्क में मिली बेवफाई
जो फिर से ज़िन्दगी में ऐसी हरकत की है

कहा थे इसे न करीब जाना किसी के तुम
क्यों सांसो से फिर मोहब्बत की बात की है

'खुशी' का ख्वाब दिखा गम दे गए लोग मुझे
'मीठी' ने क्यों फिर आखिर ये शरारत की है

रोई दिन रात 'खुशी' की तलाश में 'मीठी'
करके आशिकी तूने अश्को की बरसात की है

आज इस दिलने फिर किसी को दस्तक दी है
धड़कन ने भी फिर इश्क की आहट की है-२"

कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा

कविता-ज़िन्दगी की राहों में

“ज़िन्दगी की राहों में रोज़ ठोकर खाते गए
मिले जीतने भी गम हम यू मुस्कुराते गए

मिले तोहफे वफ़ा के बदले बेवफाई के हमे
फिर भी मोहब्बत में वफ़ा हम निभाते गए

रोज टूट कर बिखरते थे हम तेरी आशिकी में
अश्क छिपा बस खुदको हम यू समेटते गए

तूने तो तोहफे दिए मुझे हर पल तन्हाई के
उन तन्हाइयो में भी तुम्हे हम यू पुकारते गए

ज़िन्दगी की राहों में रोज़ ठोकर खाते गए
मिले जीतने भी गम हम यू मुस्कुराते गए-2"

Thursday 26 April 2018

ईश्वर वाणी-250, गंगा नदी में स्नान व येशु नाम

ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों जैसे पवित्र गंगा जल में स्नान करने से पापी व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है, गंगा जल की धारा से उसके समस्त पाप धुल जाते है और पापी से पापी व्यक्ति भी पाप मुक्त हो कर स्वर्ग में स्थान पाने का अधिकारी बनता है, जैसे गंगा नदी संसार के सभी पापी व्यक्तियों के पाप का नाश कर उन्हें पाप मुक्त कराती है, उनके समस्त पाप अपनी धारा में समेट लेती है, और पापी मनुष्य पाप मुक्त हो कर स्वर्ग में स्थान पाता है,

वैसे ही येशु नाम तुम्हें पाप मुक्त करता है, यद्धपि गंगा नदी संसार मे हर स्थान पर नही है किंतु येशु  हर स्थान पर है, जैसे गंगा नदी का धरती पर आना लोगो को उनके पापों से मुक्ति दिलाना उद्देश्य था और है वैसे ही संसार के समस्त पापी मनुष्यों के पाप अपने उपर ले कर येशु ने निम्न पीड़ा सही, जैसे मनुष्यों के पाप से गंगा नदी का जल रंग बदल चुका है वैस ही  प्रभु येशु का शरीर भी लोंगो के पाप अपने ऊपर ले कर लहू लुहान हुआ ताकि मनुष्य पाप मुक्त हो कर स्वर्ग में स्थान पाये।

हे मनुष्यों मैं ही सागरो में महा सागर आत्माओ में परमात्मा जन्मो में अजन्मा  हूँ मैं ईश्वर हूँ, मैं ही तुम्हारे पापा अपने ऊपर ले कर उन्हें धोने वाली पवित्र गंगा नदी हूँ  और में ही समस्त संसार के पाप अपने ऊपर ले कर खुद को बलिदान करने वाला येशु हूँ क्योंकि ये सब मुझसे ही निकले हैं, मेरा ही एक अंश है, मेरी ही इच्छा और आज्ञा हैं इसलिए ये में ही हूँ मैं ईश्वर हूँ।

किंतु मनुष्यों ये मत समझना यदि गंगा में स्नान कर लिया या येशु का नाम जप लिया तो पाप धुल गए फिर चाहे जितने पाप और क्यों न कर ले बस गंगा नदी में स्नान कर ले या येशु नाम जप ले मुक्त हो जाएंगे, किन्तु ऐसा नही है, तुम्हारे स्नान व नाम के साथ तुम्हारे मन की शुद्धता व बुरे कर्मो के लिए प्रायश्चित की भावना बुरे कर्मो के लिए खुद पर आत्म ग्लानि व फिरसे ऐसा न करने की भावना व जीवन  व जीवों के कल्याण हेतु पवित्र भावना व सत्कर्म ही तुम्हारे पापा कम कर सकते हैं साथ ही जिन जीवों के साथ तुमने बुरा किया है उनकि हृदय से की तुम्हे क्षमा ही तुम्हें तुम्हारे अगले जन्म का निर्धारण कर स्वर्ग व नरक का स्थान तय करती है।

इसलिये पवित्र नदी में स्नान व पवित्र ईश्वरीय नाम तुम्हे ये ही सीख देता है कि पिछले बुरे कर्म का त्याग कर सत्मार्ग पर चल मेरे प्रिये बनो में तुम्हे अनन्त जीवन दूँगा"।

कल्याण हो

Wednesday 25 April 2018

ईश्वर वाणी-249, शैतान का जन्म

ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने शैतान का नाम बहुत बार सुना होगा, शैतान अर्थात बुराई अर्थात गंदगी। तुम्हारे अंदर की बुराई ही शैतान है न कि निम्न धार्मिक मान्यता के अनुसार मुझे मानना या न मानना या निम्न धार्मिकता को मानने वाले।
हे मनुष्यों यद्धपि ये बुराई तुम्हारे कर्मो से उतपन्न होती है किँतु आज तुम्हें एक गूढ़ रहश्य की बात बताता हूँ, जैसे जीव का जन्म गंदगी में होता है, अर्थात चाहे कोई मनुष्य हो अथवा कोई पक्षी अथवा भूमि पर रेंगने या चलने वाले प्राणी जिनका भी जन्म होता है वो स्थान दूसित व गन्दा हो ही जाता है, वैसे ही जब समस्त ब्रह्मांड का जन्म हुआ उसी गन्दगी से शैतान अर्थात बुराई अर्थात अच्छाई की उलट बुराई का जन्म हुआ।

हे मनुष्यों मैं पहले ही बता चुका हूँ समस्त पृथ्वी समस्त ब्रमांड का प्रतीक है व जीव जंतु समस्त ग्रह नक्षत्रों का स्वरूप समान है, इस प्रकार तुम खुद ही समझ सकते हो जब तुम सब का जन्म गन्दी फैलाते हुए हुआ तो समस्त ब्रमांड का जन्म होते समय कितनी गन्दी हुई होगी, और ये ही गंदगी शैतान है।

हे मनुष्यों इसी प्रकार तुम्हारी आत्मा के जन्म के साथ ही तुम्हारी देह के कर्म रूपी अवगुण है जो शैतान का प्रतीक है।

हे मनुष्यों इस प्रकार संसार मे शैतान अर्थात बुराई अर्थात गन्दगी का जन्म हुआ किंतु साथ में अच्छाई का भी उदय हुआ, इसलिए अपने मन से समस्त बुराई को त्याग भलाई और नेक कर्मो के मार्ग पे चल मेरे प्रिये बनो में तुम्हें शांति व अनन्त जीवन दूँगा।"

कल्याण हो

ईश्वर वाणी-248, एकेशरवाद की भावना

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मेरी आज्ञा से ही मेरे अंश मुझसे निकल कर देश काल परिस्थिति के अनुरूप अवतरित हुए व मानव व प्राणी जाती के कल्याण हेतु कार्य कर मानव को भी इसके लिए प्रेरित किया, किन्तु समय के अनुरूप जैसे जैसे मानव जाति की संख्या अधिक होने लगी, वो धीरे धीरे अपने पुराने समुदाय से दूर जा कर रहने लगा। उसने अपनी अपनी सहूलियत के और आवश्यकता के अनुरूप मुझे अनेक नाम दे दिए व मन ही मन मेरी अनेक रूप में छवि बनाता रहा, और उसकी उसी निष्ठा से प्रसन्न हो कर मैंने अपने अंशो को वहाँ अवतरित होने का आदेश दिया जहाँ उनकी अति आवश्यकता थी।

किंतु मानव जाति ने समय के अनुरूप मुझे भी अनेक रूपो में बाट कर आपस मे लड़ने लगे व न सिर्फ एक दूसरे को अपितु एक दूसरे की धार्मिक पुस्तक व आराधनालय को भी हानिपहुँचाने लगे, ऐसे में आवश्यकता हुई निराकार व  एकेशरवाद की, एकहि धार्मिक पुस्तक की जिस पर सभी यकीन कर सके व समान सम्मान उसे दे सके ताकि खुद को और खुद के ईश्वर व उनकी धार्मिक पुस्तक को श्रेष्ट मानने की धारणा का अंत हो कर समाज मे एकता व अखण्डता कायम हो सके।
किन्तु समय के साथ मनुष्य ने यहाँ भी भेद भाव ढूंढ ही लिया साथ ही जो एकेशरवाद में यकीन नही करता उसको नीच व दोयम दर्जा दिया गया। जबकि एकेशरवाद की मूल भावना व उद्देश्य उसने भुला फिर से मानव को मानव का दुश्मन बता वही कर्म शुरू कर दिए जो पहले करता था आराधनालय को हानि, धार्मिक पुस्तक को हानि, मानव जाती को हानि।

मानव भूल गया एकेशरवाद के मूल सिद्धांत, यदि मानव को एकेशरवाद की प्रेरणा दे कर प्रेरित नही किया जाता तो आज शायद मानव सभ्यता ही खत्म हो जाती, किंतु एकेशरवाद की आड़ में असामाजिक तत्व जो मानवता को हानि पहुचा रहे है और उसे धर्म के आधार पर उचित बता रहे है तो उन्हें में बताता  हूँ वो शैतान से प्रेरित है, वो मेरे नही शैतान के अनुयायी है, तथा उनसे दूरी बना कर मेरी दी गयी मानवता की शिक्षा का अनुसरण करो क्योंकी मै ईश्वर हूँ।"

कल्याण हो

Thursday 19 April 2018

ईश्वर वाणी-247, वास्तविक आयु

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम अपनी भौतिक देह के आधार पर किसी की आयु तय करते हो लेकिन अपनी व अन्य जीवों की वास्तविक आयु जानते हो??

हे मनुषयो तुम्हारी आयु भी इतनी ही  है जितनी इस ब्रह्मांड की, क्योंकि तुम केवल भौतिक देह देख कर ही आयु तय करते हो तो अब सोचोगे की इतनी आयु कैसे हुई हमारी, तो तुम्हें बताता हूँ जैसे तुम्हारा बालक चाहे पुराने वस्त्र पहने या नया किंतु तुम जानते हो कि उसकी आयु क्या है न कि पहने वस्त्र के आधार पर तय करते हो, वैसे ही ये शरीर भी आत्मा का वस्त्र है और आत्मा मेरी सन्तान, तो ये जो भी वस्त्र धारण करे मुझे इसकी वास्तविक आयु पता है।


ब्रह्मांड के उदय के समय से है ही मैंने अपने अंशो द्वारा आत्मा का जन्म करवाया, ये आत्मा न सिर्फ मनुष्य में अपितु समस्त जीव जंतुओं पेड़ पौधों और यहाँ तक कि समस्त ग्रह नक्षत्रों में भी है।

तुम्हारे भौतिक शरीर की उतपत्ति से पूर्व मैंने ग्रह नक्षत्रों की उतपत्ति की, उन्हें जीवन्त रहने के लिए आत्मा को उसमे स्थान दिया ताकि सदियों तक वो जीवित रह कर समस्त ब्रमांडनिये नियमो का पालन कर सके, तत्पश्चात पेड़ पौधे व जीव जन्तुओं का जन्म मानव का जन्म हुआ किंतु  ये जन्म केवल वस्त्र बदलने के समान है, वास्तविक जन्म तो सृष्टि के जन्म के साथ ही हो चुका है तुम्हारा।
हे मनुष्य जो आज तुम्हारे माता पिता है पिछले किसी जन्ममें तुम्हारी संतान थे, वैसे ही भाई बहन बंधु सखा सब पिछले कई जन्मों से तुमसे जुड़े है और आगे भी रहेंगें।

हे मनुषयो ये न भूलो तुम्हारी तरह सभी ग्रह नक्षत्र जीवित है और इनमें भी तुम्हारी भाती आत्मा विराजित है बस फर्क ये है तुम कई बार जन्म ले चुके हो अर्थात शरीर रूपी वस्त्र बदल चुके हो किन्तु इन्होंने तुम्हारी जितनी जल्दी वस्त्र नही बदले है लेकिन इसका मतलब ये नही की ब्रह्मांड में इनको हानि पहुचाये। यद्धपि तुमने कई आकाशीय घटना देखी होंगी जिनमे नक्षत्रो को टूट कर नष्ट होना फिर नए नक्षत्र का उदय देखा होगा, ये सब तुम्हारे ही भौतिक शरीर की भांति है ये, किन्तु आत्मा उतनी ही पुरानी अर्थात इसकी आयु उतनी ही जितनी तुम्हारी।


हे मनुष्यों मैं पहले भी बता चुका हूं और आज भी बताता हूं कि समस्त पृथ्वी सम्पूर्ण ब्रमांड का प्रतीक है, इस संसार के समस्त जीव जंतु भी आकाश के ग्रह नक्षत्रों के ही समान हैं, जैसे आकाश में निम्न ग्रह नक्षत्र जन्म लेते व नष्ट होते रहते हैं वैसे ही भौतिक देह लिए समस्त जीव जंतु हैं चाहे वो जलचर हो, थलचर हो अथवा आकश में उड़ने वाले पक्षी, चाहे रेंगने वाले जीव, पेड़ पौधे, वनस्पति, मनुष्य सभी आकाशीय ग्रह नक्षत्रों के समान है।

हे मनुष्यों तुम्हारे दादा-दादी नाना-नानी उस आकाशगंगा के समान है जिसमे तुम्हारे माता पिता भाई बहन व अन्य परिजन रहते हैं, साथ ही तुम्हारे मित्र व पड़ोसी तुम्हारे नजदीकी ग्रह व आकाशगंगा हैं। इसलिए जैसे तुम जीवित हो और घर रूपी आकाश गंगा में रहते हों वैसे ही समस्त ग्रह नक्षत्र जीवित है और परिवार रूपी आकाशीय आकाशगंगा में रहते हैं व अपने भौतिक आकाशीय नियमो का पालन करते हैं और सदियों तक करते रहेंगे।

हे मनुष्यों इसलिये भौतिक देह से किसी को मत आंको, यदि तू ऐसा त्याग देगा तब तुझे वास्तविक आयु पता चलेगी व छोटे बड़े का भेद खत्म होगा क्योंकि आत्मिक स्तर पर सब समान है, किँतु इसका अभिप्राय रिश्तो की मर्यादा व उनके नाम से जोड़ कर न देखे क्योंकी उनका तो पालन तुम्हे करना ही है क्योंकि हर रिश्ता इस भौतिक देह से जुड़ा है और देह आत्मा से और दोनों मिलकर कर्म से जुड़े हैं।"


कल्याण हो