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Thursday, 1 March 2018

ईश्वर वाणी-241, देवता, मानव व ईश्वर



ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि तुम्हे मैं देवता  मानव व परमात्मा अर्थात अपने विषय में बता चुका हूँ किंतु तुम्हें फिर बताता हूँ।

हे मनुष्यों यद्धपि में ही सर्वोच्च हूँ, में ही देश, काल, परिस्थितियों के अनुरूप अपने ही एक अंश को धरती पर भेजता हूँ जब जब मानव व प्राणी जाती के हितों का ह्रास होता है।
यद्धपि तुम सब भी मुझसे ही निकले हो, मैंने तुम्हें धरती पर भेजा है, किंतु  जब जब तुमने अपनी शक्ति का उयोग गलत दिशा में करना शुरू कर दिया तब तुम्हे5 तुम्हारे उद्देश व कर्तव्यों को याद दिलाने हेतु देश काल परिस्थिति के अनुरूप मैंने अपने अंश को भेजा जो तुम्हें बता सके कि तुम्हारे ऊपर भी एक स्वामी है, तुम्हारे ऊपर भी एक राजा है, कोई है जो तुम पर भी शाशन करता है, तुम अकेले नही हो स्वामि धरती और यहाँ के जीवों के, तुम केवल इनकी देखभाल करने वाले उस राजा के सेवक मात्र हो, खुद को राजा न कहो क्योंकि तुम केवल मानव हो, यद्धपि तुम्हारे अच्छे गुण देतवा समान पद तुम्हें दे सकते हैं किँतु तुम मानव हो धरती और जीवो का ख्याल रखने वाले राजा के सेवक।

यद्धपि अच्छे गुण वाले व्यक्ति को देवता तुल्य ही बताया गया है, जो व्यक्ति नेक कर्म करने वाला, अच्छे विचार रखने वाला, सात्विक भोजन करने वाला, सबकी निःस्वार्थ सहायता करने वाला ऐसा व्यवहार करने वाले व्यक्ति को ही देवता कहा गया है।

हे मनुष्यों यद्धपि ये सभी गुण मैंने तुम्हें भी दिए हैं किंतु स्वार्थ सिद्धि में तुम इस कदर पाप करते रहते हो निरन्तर की उस शक्ति को तुमने भुला दिया है, और इस कारण बुराई को धारण कर पाप कर्म करने में लगे हो। इस कारण मुझसे निकलने के बाद भी तुम एक मानव हो न कि देवता।

किंतु जो मनुष्य पाप कर्मो में नही पड़ता, मेरे बताये मार्ग पर चल मानव व समस्त जीवों के कल्याण हेतु सदा सलग्न रहता है, सात्विक विचार रखता है, सात्विक भोजन करता है, वही देवता हैं, किन्तु उन्हें में ही निम्न उद्देश्यों हेतु चुनता हूँ, वही इस धरती के असल राजा हैं और उन्हें ये अधिकार मैंने ही दिया है, ऐसे ही व्यक्ति देश काल परिस्थिति के अनुरूप जन्म ले मनुष्यों को असल ओहदा बताते हैं कि संसार व मेरी दृष्टि में उनका ओहदा क्या है, क्या उनका पद है, और उनका मकसद क्या है।

किन्तु सन्सार का असल स्वामी मै हूँ, में परमात्मा हूँ, मेरी ही आज्ञा से मेरे ही स्वरूप से तुम्हारी आत्मा का जन्म होता है, मेरी ही आज्ञा से मेरे ही उन अंशो का जन्म होता है जिन्हें मैंने तुम्हारे ऊपर बैठा कर देवता अथवा देवी का ओहदा दिया है। किन्तु तुम सबमें अथवा सभी में मैं ही सर्वोच्च हूँ में निराकार हूँ, आदि हूँ, अनन्त हूँ, मैं परमात्मा हूँ।

हे मनुष्यों आशा हैं तुम्हे देवता परमात्मा और मानव के विषय मे जानकारी मिल चुकी होगी’

कल्याण हो



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