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Sunday, 29 December 2019

ज़िंदगी की मंज़िल-कविता

महलों वाला भी आखिर एक दिन वही (शमशान/कब्रिस्तान) जाता है

सड़क पर रहने वाला बेबस बिखारी भी आखिर एक दिन वही जाता है

रास्ते भले अलग को तेरे ऐ इंसान पर मंज़िल तो आखिर है बस वही

फिर किस बात का गुरुर तुझे और आखिर किस बात पर इतराता है


एक दिन तेरा ये शरीर ही तुझसे  आखिर बेवफाई कर जाता है

ज़िन्दगी भर दौड़ा जिसके लिए आखिर अंत मे क्या तुझे मिल पाता है

ज़िन्दगी थी तो दौड़ता रहा बस दुनिया के पीछे इसे ही मन्ज़िल जानकर

देख क्या समझी तूने मन्ज़िल अपनी पर वक्त किस ओर तुझे ले आता है

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