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Monday, 30 December 2019

दर्द जिगर का फिर बढ़ने लगा है-कविता

धीरे धीरे दर्द फिर जिगर का बढ़ने लगा है

फिर से ये दिल आखिर धड़कने लगा है


है ज़माने में लोग दोहरे मुखोटे पहने हुए

जाने किस फरेबी को अपना बनाने लगा है


जिसको अपना समझा 'मीठी' तुमने जब जब

'खुशी' नही गम उनसे ही तुम्हे मिलने लगा है


किसे सुनाये तू अपने ज़ख्मी दिल की दासतां

तेरे अश्को पर ये जमाना कैसे हसने लगा है


मोहब्बत करने की ख़ता तू फिर करने चली

देख मोहबूब तो बाज़ारो में मिलने लगा है


देख तमाशा तू फिर इस महफ़िल का 'मीठी'

'खुशी' का प्यार आज पैसो से बिकने लगा है


अब रही नही बाते जो पहले करते थे लोग

आज इश्क का व्यापार बहुत बढ़ने लगा है


तू भी लुटा सके तो लूट दे कुछ इस महफ़िल में

अब मोहब्बत का कारोबार ऐसे ही बढ़ने लगा है

😡😡😡😡😡😡😡😡

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