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Monday, 13 January 2020

मेरी शायरी

१-"नया नया शौक लगा है हमें आग से खेलने का

पर डर भी लगता है हमें की कहि जल न जाये"


२-"अब इन रास्तों से डर लगने लगा है हमें

कही फिर से यहाँ हम फिसल न जाये"


३-"बहुत ही अजीब होती है जिंदगी की ये रेलगाड़ी

जाने कितने मुसाफिरों से मिलवाती फिर जुदा करवाती है"


४-"हर तरफ बस एक धुँआ देखते हैं हम

एक अजीब सा गहरा कुआँ देखते हैं हम

टूटी भरोसे की दीवार हर तरफ पड़ी है

सोचते बस ये क्या हुआ देखते है हम"

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