Saturday, 14 January 2017

"Fir se us milan ki aas hai dil mein,

Jo kabhi na bichhade aisi pyas hai dil mein,

Kho jaaye ek doosre ki baaho mein ab bas,

dhadkan ban ek dusre ke hai rahe paas dil mein"

सदगुरु श्री अर्चना जी के आध्यात्मिक विचार

सदगुरु श्री अर्चना जी के अनुसार

सन्सार में सबसे सुखी वो नहीं जिसने अपनी मनचाही वस्तु को प्राप्त कर लिया है क्योकि इच्छाये कभी समाप्त नहीं होती, जिसे जो मिला वो और पाने की चाहत मन में रख कर दुखी होता है।
किन्तु केवल वो ही सुखी रह सकता है जिसने सब कुछ त्याग दिया हो, सच्चा सुख प्राप्त करने मैं नहीं अपितु त्याग में है।
एक गृहस्थ की अपेक्षा एक सच्चा सन्यासी अधिक सुखी और संपन्न होता है कारण-एक ग्रहस्थ की इच्छाये कभी पूरी नहीं होती, हमेशा और की भावना बनी रहती है, एक इच्छा पूरी हुई तभी दूसरी की लालसा, यही भावना दुःख का कारण है।
किन्तु सच्चा सन्यासी जिसे कोई लालसा नहीं, जिसने केवल प्रभु को चाहा उसकी भक्ति के अतिरिक्त किसी की लालसा नहीं की, केवल भक्ति का मार्ग चाहा और उस पर चला,
उसे जो परम सुख की अनन्त अनुभूति हुई वो भौतिक सुख की प्राप्ति में किसी को नहीं मिलती।।
एक सन्यासी जो सभी भौतिक वस्तु का मोह त्याग कर केवल ईश्वर से मोह रखता है वही सच्चा सुखी है।।
इसलिए सच्चा सुख कुछ पाने में नहीं अपितु त्यागने में है, जब हम भौतिकता त्यागेंगे तभी परम सुख दाता परमेश्वर को प्राप्त कर परम सुख प्राप्त कर सकते है।।

Tuesday, 10 January 2017

ईश्वर वाणी-१८२, सच्ची पूँजी

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों युँ तो तुम अपने इस वर्तमान भौतिक देह को तमाम सुख सुविधा देने के अनन्य प्रयास करते हो, धन कमाते हो ताकी अधिक से अधिक सुख सुविधा पा कर आत्मसंतुष्टी प्राप्त कर सको,
किंतु क्या तुमने वास्तविक वो धन कमाया है जो इससे भी अधिक कीमती है!!

हे मनुष्यों तुम्हारे कर्म ही जीवन की सबसे कीमती पूँजी है, अच्छाई व सच्चाई के मार्ग पर यदि तुम चलते रहे बिनी डगमगाये तब तुम्हें वो सुख मिलेगा जो अनंनत है साथ ही अगला जन्म भी वही होगा जहॉ किसी भी वस्तु का अभाव नही होगा,

किंतु यदि तुमने बुराई का मार्ग अपनाया तो निसंदेह तुम अपने कर्मों से उस पूँजी का नाश कर रहे हो जो तुम्हे अनंनत सुख देकर एक सुखी व सम्रध्ध परिवार देती, तुम्हारे कर्मो व लालसाओं ने वह सब नष्ट कर दिया जो तुम्हे मिलने वाला था, मानव जन्म ही तुम्हे इसलिये मिला था ताकी इस जन्म मैं नेक कर्म कर अगला जन्म सुद्रण बना सको ऐसी पूँजी अर्जित कर सको!!

हे मनुष्यों ये भी सत्य है तुम्हारे सच्चे और नेकी के रास्ते पर चलते हुये मैं ही अनेक व्यवधान तुम्हारी परीक्षा हेतु डालता हूँ, मैं देखता हूँ मुसीबत मैं कैसे खुद को सम्भालते हो, कैसे अपनी सबसे कीमती पूँजी की रक्षा कर पाते हो, यदि तुमने मुसीबतों का सामना करके भी इस कर्म रूपी धन की रक्षा की तो अनंनत सुख के पात्र बन सुख प्राप्त करोगे किंतु मेरी परीक्छा से घबरा कर बुराई का मार्ग अपना कर्म रूपी पूँजी में कटोती की तो अनेक जन्मों तक दुख प्राप्त करोगे!!

हे मनुष्यों इस लिये इस भौतिक पूँजी के पीछे मत भाग, भाग तो उस धन के लिये जो तुझे अननंत सुख देने वाला है, तेरे भौतिक देह को ही नही अपितु तेरी आत्मा को सम्पन्न करने वाला है, इसके लिये थोड़ा कष्ट तुझे सहना पड़े तो सह, जैसे- तू किसी अच्छी नौकरी के साक्षत्कार के लिये गया, तुझे ये नौकरी तभी मिल सकती है जब इसे उत्तीर्ण करेगा, नौकरी देने वाला तुम्हारी कीबिलियत देखने के बाद ही तुम्हें नौकरी देगा और अनेक तरह से तुम्हें परखेगा और जब संतुष्ट होगा तब ही नौकरी देगा,

हे मनुष्यों एसे ही मैं तुम्हें परख कर ही जन्म व किस्मत देता हूँ, तभी कुछ व्यक्ति बहुत शीघ्र सफलता प्राप्त कर लेते है तो कुछ उमर भर इसके इंतज़ार मैं रहते हैं, सब कुछ पिछले जन्म मैं अर्जित पूँजी के कारण है, 

हे मनुष्यों यदि तुम्हें अगला जन्म सुख सम्रध्धी से पूर्ण चाहिये तो इस जीवन के सुख के पीछे न भाग कर आत्मा की उन्नती के पीछे भाग, आत्मा की उन्नती तेरे कर्म सुधार अननंत सुख देगी साथ ही अगले जन्म को हर सुख सम्रध्धी से परिपूर्ण करेगी किंतु तुझे प्रयास आज़ से अभी से प्रारम्भ करना होगा!!

कल्याण हो



Sunday, 8 January 2017

ईश्वर वाणी-१८१, मानवता की शिक्षा

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैने ही आवश्यकता अनुसार देश, काल, परिस्तिथी के मुताबिक अपने ही एक अंश को धरती पर भेजा जब-२ धर्म व मानवता की हानी हुयी, आगे भी मैं अपने ही एक अंश को भेजता रहूँगा जब जब मानवता ही हानी  होगी,

हे मनुष्यों युँ तो मैं खुद सक्षम संसार को सत्य का मार्ग दिखाने के लिये किंतु तुम माया के अधीन हो इसलिये सहज़ मुझ निराकार परमेश्वर पर यकिं नही कर सकते, तुम्हें केवल इन भौतिक देह पर यकीन है, देह का उत्पन्न होना अर्थात नया जीवन आना देह का त्यागना अर्थात म्रत्यु होना, तुम्हारे लिये सब कुछ देह से जुड़ा है इसलिये तुम्हारे विश्वास के लिये मुझे भी देहधारी बना कर ही अपने एक अंश को धरती पर भेजा!!

हे मनुष्यों ये भी सत्य है तुम्हारे ह्रदय मैं जो सोच है उसे मैं ही लाता हूँ किंतु ये सब तुम्हारे पिछले जन्मों के कर्मों पर निर्भर है, इसलिय प्रेम व कटु भावना, ईर्ष्या द्वेष अनेक भाव, भक्ति व नास्तिक भाव, मेरे कौनसे रूप मैं आस्था तुम्हारी जागेगी ये सब मेरे द्वारा ही तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों से तय होता है!!

हे मनुष्यों देश, काल, परिस्तिथी के अनुसार मैंने ही अपने एक अंश को धरती पर भेज मानवता की होती हानी रोकने हेतु भेजा, जिसे वहॉ के रीति-रिवाज़ और भाषा के अनुरूप कही भगवान, कही गॉड कही फरिस्ता कहि मसीहा कहा गया, इसके साथ मानवता की रक्षा हेतु जिन शिक्षाऔं का प्रसार प्रचार किया उन पर विश्वास कर चलने वाले व्यक्तियों को अलग पहचान करने के लिये केवल मानव द्वारा नाम दे दिया गया धर्म!!

इस प्रकार भाषा व देश, काल, परिस्तिथी के अनुसार न सिर्फ मेरे अंश का नाम बदल मेरा नाम बदला मानवों द्वारा अपितु मेरी शिक्षा मेरे मानने वाले के द्वारा अन्य देश में गयी वहॉ मुझे और मेरे मानने वालों को उसी नाम से जाना जाने लगा जहॉ मेरे ही अंश ने मानवता का ग्यान दिया और ग्यान के प्रचार प्रसार हेतु जो व्यक्ति गये और वहॉ अन्य व्यक्तियों द्वारा इसपर विश्वास किया गया, उन्हें अलग कर पहचान देने के लिये नाम दिया गया 'धर्म', अमुक व्यक्ति उस धर्म का अनुयायी है, साथ ही जिन व्यक्तियों ने उन शिक्षाऔ को आत्मसात किया वह भी अपना नाम व मेरा नाम अपने क्षेत्र व भाषा के अनुसार न रख जिस रूप व नाम पर मुझपर आस्था रखी वहॉ की ही भाषा अनुसार उसने नाम भी रखा जो की आवश्यक नही है!!

आवश्यक केवल इतना है जिस रूप नाम व मेरे ग्यान पर विश्वास रखो किंतु मानव धर्म का सदा पालन करते रहो, देश, काल, परिस्तिथी के अनुसार मैंने हर बार तुम्हें केवल मानवता की ही शिक्षा दी है!!"

कल्याण हो



Friday, 6 January 2017

kavita


"hai kitna masoom ye chehra tumhara,
khushnasib hu main tu hai hamara,

poori hui meri dua Jo mujhe tu mila,
ab is jivan ka ek tu hi hai sahara,

sunese is aagan mein kadam Jo tere pade,
sukhi is sarita ka kewal tu hai kinara,

tanhaiyo mein beete Jo mere subah shaam,
tumse milkar nahi ab ye dil hai bechara,

tujhse prit laga tujhpe vaare jaau,
aa meri baaho mein dekh ham hai nahi awara"

Thursday, 5 January 2017

ईश्वर वाणी-१८०, अतिसूछ्म मैं 'ईश्वर' हूँ

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों जैसे आत्मा के बिना जीवन सम्भव नही है किंतु ये भी एक परम सत्य है ये दिखती भी नही है किंतु इसके अस्तित्व को तुम नकार भी नही सकते!!

शरीर के सभी अंग आंतरिक और बाहरी वो सभी देखे जा सकते हैं, उन सभी का अपना एक आकार है, कौन सा अंग कहॉ है ये जाना जा सकता है किंतु आत्मा का क्या आकार है, शरीर के किस भाग मैं रह कर संपूर्ण शरीर को संचालित करती है ये तुम नही जान सकते किंतु आध्यात्मिक ग्यान से इसे जाना जा सकता है, आत्मा शरीर का अति सूछ्म तत्व है जिसके बिना जीवन ही नही है, पूरे भौतिक शरीर को चलाने वाली और जीवन दे कर भौतिक काया को मिटने से बचाने वाली आत्मा ही है!!

हे मनुष्यों जैसे आत्मा के बिना किसी भी जीव का जीवन संभव नही है, उसे जीवन दे माटी में मिलाने से बचाने वाली अतिसूछ्म आत्मा है वैसा ही अतिसूछ्म मेरा स्वरूप है, संपूर्ण ब्रह्माण्ड को चलाने वाला मैं अजन्मा अविनाशी 'ईश्वर' हूँ, मैं ही आत्माऔं मैं परम हूँ इसलिये परमेश्वर हूँ,  मुझे तुम भौतिक अॉखों से नही अपितु श्रध्धा, भक्ति और विश्वास के साथ जो नियम मैंने  मानव जाती के लिये बनाये हैं उनपर चलकर ही मुझे देखा जा सकता है,

हे मनुष्यों जैसे आत्मा भौतिक अॉखों से दिखायी नही देती किंतु उसके बिना जीवन ही संभव नही, वैसे ही तुम मुझपर यकीं करो अथवा नही श्रष्टी सम्भव नही, मैं ही आकाशिय दिव्य अनंत सागर हूँ जिसने  सभी  ग्रह नक्षत्रौ को थाम रखा है जो एक गति मैं ब्रह्माण्ड मैं एक निश्चित दूरी पर विचरण करते हैं, अनंनत आकाश मैं तैरते हुये कभी आपस मैं नही टकराते, इन सबका चलाने वाला पालन करने वाला जीवन देने वाला श्रष्टी की रचना करने वाला, भूतकाल, भविष्यकाल, वर्तमान तीनो कालों को बनाने वाला, दिन रात बनाने वाला वायु दे जीवन  देने वाला अतिसूछ्म, निराकारी, अनंनत, अविनाशी मैं 'ईश्वर' हूँ!!"

कल्याण हो

Wednesday, 4 January 2017

ईश्वर वाणी-१७९,आत्मा को संवारो

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यध्यपि तुम मेरा कभी नाम न लो, कभी मुझपर आस्था भी न रखो, यध्यपि तुम मेरी आलोचना भी तुम करो किंतु कभी किसी नरीह जीव को न सताओं, किसी की हत्या न करो, किसी की ईर्ष्यावश निंदा न करो, निर्बलों की सहायता बड़ों को सम्मान दो, दूसरों से अपने समान ही प्रेम करो, प्रक्रति व प्राणी जाती की सदा रक्छा करो!!

हे मनुष्यों यदि तुम ये करते हो जो मैंने तुम्हें कहा इससे तुम्हारी आत्मा शुध्ध होती है, किंतु तुम ऐसा नही करते तो तुमेहारी आत्मा मलिन होती है, तुम मेरी आलोचना करो एसा करने से केवल तुम्हारा भौतिक स्वरूप ही मलिन हुआ किंतु निम्न कार्यों से आत्मा पावन हुई!!

हे मनुष्यों आत्मा का पहले पावन होना अतिमहत्वपूर्ण है, आत्मा के पवित्र होने जो तुम्हारे कर्मों से होती है मेरा प्रिय बनाती है, यध्धयपि तुम मेरी चाहे कितनी ही आलोचना कर लो, जैसे यदि किसी बालक के माता पिता की तुम कितनी ही निंदा करते हो किंतु जब उसके बालक को किसी मुसीबत मैं देखते हो उसकी दौड़ कर सहायता करते हो, ये देख कर अमुक व्यक्ति ये भूल जाता है कि तुम उसके घोर निंदक हो और तुम्हारी उसके प्रति कटु भावना भुला तुमसे प्रेम भाव रखने लगता है!!

हे मनुष्यों ऐसे ही मैं तुम सबका जनक हूँ, तुम सब मेरे बालक हो, ऐसे मैं घोर निंदक मेरा कोई भी हो किंतु मेरे बताये मार्ग पर चल प्रक्रति व प्राणी कल्याण के कार्य करता है मेरा प्रिय बनता है तभी मैं कहता हूँ मुझे केवल अपनी बुराई दे दो अपनी हर कमी दे दो, बदले मैं वो मुझसे लो जो तुम्हें मेरा प्रिय बनाता है!!

हे मनुष्यों ये न भूलो तुम्हारी आत्मा का घर ये भौतिक शरीर है, यदि तुम मुख से जिह्वा से मेरा नाम लेते हो किंतु अनेक बुरे कर्मों में लिप्त हो तो तुम्हारी आत्मा मलिन किंतु ये भौतिक शरीर और जिह्वा पावन होगी, किंतु यदि तुम मेरी आलोचना निंदा कर ह्रदय से जगत व प्राणी कल्याण के कार्य करते हो तुम्हारी आत्मा शुध्ध होती है जैसे- किसी घर मैं रहने वाले लोग खुद तो साफ सुथरे सवरें हुये हो किंतु अपना घर साफ न रखते हो फिर भी जहॉ जाते हो अपने व्यक्तित्व के कारण हर कोई पसन्द उन्हे करने लगता हो,

    वही यदि तुम अपना घर तो साफ सुथरा संवरा हुआ रखते हो किंतु खुद मलिन रहते हो, ऐसे मैं जो भी तुमसे मिलेगा घ्रणा करेगा कि तुम कितने मलिन रहते हो, लोग एक बार तुम्हारे घर की गंदगी को नज़रअंदाज़ कर सकते तुम्हारे उस सुंदर रूप को देखकर किंतु रूप ही मलिन कर लिया फिर घर को कितना ही संवार कर रख लो सम्मान न कहीं पाओगे,

हे मनुष्यों संभव हो तो भौतिक शरीर रूपी घर और अत्मा रूपी तुम इस घर के वासी दोनो ही पावन बनो ताकी मैं और समाज तुम्हें दोनों ही रूपों मैं प्रेम करे किंतु ये संभव न हो तुम्हारे लिये तो आत्मा रूपी इस घर के वासी को सदा सदगुणों से संवार कर रखना, ये संवरा हुआ रूप ही तुम्हे मेरा प्रिय बनाता है!!"

कल्याण हो