Friday, 19 May 2017

ईश्वर वाणी-२१०, ईश्वर के रूपों का महत्त्व

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो मैं निराकार और अजन्मा हूँ, न तो
मेरा आदि न अंत है, मैं एक विशाल सागर हूँ, मैं ही मृत्यु लोक अर्थात
धरती पर विशाल सागर से एक बूँद को भेज कर लीला करता हूँ।
हे मनुष्यों यु तो मैं एक ही हूँ किंतु देश, काल, परिस्तिथि के अनुरूप
मुझे अथवा मेरे ही एक अंश को धरती पर जन्म लेना पड़ता है, समय समय पर मानव
सभ्यता में जो बुराई उत्पन्न होती है उन्हें दूर करने हेतु लीलावश यहाँ
आना ही पड़ता है।
कही मेरे किसी रूप पर विशेष पुष्प चढ़ाना वर्जित है तो कही विशेष जल से
अभिषेक करना, कही स्त्रियों पर अनेक पाबन्दी है और विशेष नियम है उनके
लिये तो कही पूजनीय।
सभी स्त्री-पुरुष को समान अवस्था व् समान रूप से मेरी पूजा व् मुझे याद
करने हेतु ही साथ ही मेरे किसी रूप को कभी कुछ वर्जित कभी कुछ वर्जित इन
सब में समानता लाने हेतु ही मैं अपने विशाल सागर से एक बूँद धरती पर देश,
काल, परिस्तिथि के अनुसार भेजता हूँ ताकि सभी को मुझे प्रत्येक अवस्था
में प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हो, कोई भी मनुष्य किन्ही कारणों से
मुझे प्राप्त करने वंचित न रह जाये, यद्धपि बुराई और छल के मार्ग पर चलने
वाला मुझे नही पा सकता, किंतु जहाँ कुछ लोगों ने विशेष परिस्तिथि में
मेरा नाम जपने पर भी मनाही है, उसी दोष को दूर करने हेतु ही मैंने अपने
अंश को धरती पर भेजा ताकि कोई कभी मेरे नाम से किसी भी परिस्तिथि में
वंचित न रह जाये, किसी का भी शोषण मेरे नाम पर न हो अपितु सभी को बराबर
मेरी पूजा व् स्तुति का अवसर प्राप्त हो।"
कल्याण हो

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