ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यु तो तुम्हें ये मानव रूपी भौतिक देह प्राप्त हुई है किंतु केवल ये देह तुम्हें भौतिक संसाधनों का उपभोग करने के लिए नही मिला अपितु मोक्ष प्राप्त कर अनन्त जीवन पाने हेतु मिला है।
किंतु तुम मोक्ष को प्राप्त कर अनन्त जीवन पाओगे या फिर जन्म-मरण के चक्र में फसे रहोगे ये तुम्हारे कर्म तय करेंगे। यद्दपि मैंने सभी मनुष्यों को ये बुद्धि अवश्य दी है कि वो खुद तय कर सकता है कि क्या गलत है क्या सही किंतु उसके मस्तिष्क पर स्वार्थ इस कदर हावी होता है कि सब कुछ जान और समझ कर भी मनुष्य बुरे कर्म करता है और इस तरह जन्म मरन के चक्र में फसा रहता है।
किंतु मनुष्य जो जैसा भी व्यवहार करता है ये व्यवहार उसके पिछले कई जन्मों के अनुभव के आधार पर होता है, यद्धपि उसे पता होता है गलत सही किंतु फिर भी वो गलत रास्ता चुनता है चोरी करता है झूठ बोलता है व्याभिचार करता है दूसरों की संपत्ति धन छिनता है कटु व्यवहार करता है हत्या करता है परमात्मा अर्थात मेरे नाम पर भी लोगो को छलता है अज्ञान का प्रसार करता है आलोचना करता है कभी भौतिक आवश्यकताओं के लिए संतुष्ट नही होता दूसरो की तरक्की से ईर्ष्या करता है निरीहों की निम्न नामो से हत्या करता है, ये व्यवहार मनुष्य के कई पिछले जन्मों का फल है, सब कुछ जानते और समझते हुए उसका ऐसा व्यवहार उसे कभी मोक्ष पाने नही देता और मनुष्य निन्म रूपों में इस जन्म मरण के चक्र में फसा रहता है।
हे मनुष्यों यद्धपि तुमने सुना होगा कि कई पशु-पक्षी जिनमे से कई तो हिंसक और मासाहारी भी होते हैं वो नेक कर्म कर जाते हैं, कई जीवो की अथवा मनुष्यों की भी सहायता कर जाते हैं, उनका ये व्यवहार उनके पिछले अच्छे कर्म से शुरू हो कर मोक्ष की ओर ले जाता है, मोक्ष प्राप्त केवल मनुष्य देह से हो ये आवश्यक नही क्योंकि मोक्ष रूपी अनन्त जीवन भौतिक देह के आधार पर नही मिलता अपितु कर्म के आधार पर मिलता है और कर्म व्यवहार से तय होते है और व्यवहार पिछले कई जन्मों के आचरण से।
हे मनुष्यों मैं तुमसे फिर कहता हूँ भौतिक सुखों के पीछे मत भागों अपितु अपने कर्म सुधारो ताकि तुम्हें मोक्ष रूपी अनन्त जीवन मिल सके, अनन्त सुख मिल सके, वो तुम्हे मै दूँगा क्योंकि मैं ईश्वर हूँ।"
कल्याण हो
Copyright@Archana Mishra
किंतु तुम मोक्ष को प्राप्त कर अनन्त जीवन पाओगे या फिर जन्म-मरण के चक्र में फसे रहोगे ये तुम्हारे कर्म तय करेंगे। यद्दपि मैंने सभी मनुष्यों को ये बुद्धि अवश्य दी है कि वो खुद तय कर सकता है कि क्या गलत है क्या सही किंतु उसके मस्तिष्क पर स्वार्थ इस कदर हावी होता है कि सब कुछ जान और समझ कर भी मनुष्य बुरे कर्म करता है और इस तरह जन्म मरन के चक्र में फसा रहता है।
किंतु मनुष्य जो जैसा भी व्यवहार करता है ये व्यवहार उसके पिछले कई जन्मों के अनुभव के आधार पर होता है, यद्धपि उसे पता होता है गलत सही किंतु फिर भी वो गलत रास्ता चुनता है चोरी करता है झूठ बोलता है व्याभिचार करता है दूसरों की संपत्ति धन छिनता है कटु व्यवहार करता है हत्या करता है परमात्मा अर्थात मेरे नाम पर भी लोगो को छलता है अज्ञान का प्रसार करता है आलोचना करता है कभी भौतिक आवश्यकताओं के लिए संतुष्ट नही होता दूसरो की तरक्की से ईर्ष्या करता है निरीहों की निम्न नामो से हत्या करता है, ये व्यवहार मनुष्य के कई पिछले जन्मों का फल है, सब कुछ जानते और समझते हुए उसका ऐसा व्यवहार उसे कभी मोक्ष पाने नही देता और मनुष्य निन्म रूपों में इस जन्म मरण के चक्र में फसा रहता है।
हे मनुष्यों यद्धपि तुमने सुना होगा कि कई पशु-पक्षी जिनमे से कई तो हिंसक और मासाहारी भी होते हैं वो नेक कर्म कर जाते हैं, कई जीवो की अथवा मनुष्यों की भी सहायता कर जाते हैं, उनका ये व्यवहार उनके पिछले अच्छे कर्म से शुरू हो कर मोक्ष की ओर ले जाता है, मोक्ष प्राप्त केवल मनुष्य देह से हो ये आवश्यक नही क्योंकि मोक्ष रूपी अनन्त जीवन भौतिक देह के आधार पर नही मिलता अपितु कर्म के आधार पर मिलता है और कर्म व्यवहार से तय होते है और व्यवहार पिछले कई जन्मों के आचरण से।
हे मनुष्यों मैं तुमसे फिर कहता हूँ भौतिक सुखों के पीछे मत भागों अपितु अपने कर्म सुधारो ताकि तुम्हें मोक्ष रूपी अनन्त जीवन मिल सके, अनन्त सुख मिल सके, वो तुम्हे मै दूँगा क्योंकि मैं ईश्वर हूँ।"
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