"तेरे बस एक दीदार के लिए ये नज़रे हम बिछाय बैठे हैं
न मिल जाये नज़रों से नज़रे इसलिए पलकें झुकाये बैठे हैं
कभी तो आयेगा तू मेरी इन गलियों में ये यकीं है हमे
इसलिए इन राहों में हम फूलों को ऐसे बिछाये बैठें है
न सताये अँधेरा तुझे इसलिए दिन में भी दिये जलाये बैठे हैं
तुझ से एक मिलन के कितने हम सपने सजाये बैठे हैं
है यकीं मुझे तुझ पर तुझसे भी ज्यादा मुझें मेरे दिलबर
इसीलिए दूर तुझ से रह कर भी देख दिल तुझ से लगाए बैठे हैं"
मेरी नई कविता🙏🏻🙏🏻😄❤️❤️😄
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