ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यध्यपि मैं तुम्हें पहले ही स्वर्ग व परमधाम के विषय मैं बता चुका हूँ किंतु आज तुम्हे अपने भोतिक शरीर मैं प्राप्त स्वर्ग व आत्मा द्वारा प्राप्त स्वर्ग व नरक के विषय मैं बताता हूँ,
हे मनुष्यों तुम्हारे भोतिक शरीर द्वारा प्राप्त सभी सुख, तुम्हारी सफलता व संतुष्टी ही भोतिक देह द्वारा प्राप्त धरती पर स्वर्गीय सुख है जो तुम्हैं सभी भौतिक सुख की सुखद अनुभूती देता है!!
इसके विपरीत तुम्हारे दुख, भोतिक सुख का अभाव, असंतुष्टी, संघर्ष, निराशा, हताषा, असफलता, क्लेश धरती पर ही प्रप्त नरक है, जो तुम्हैं पिछले जन्मों के कर्मों से मिला है, किंतु मानव जीवन मिला ताकी तुम अपने पिछले जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर स्वर्ग प्राप्त कर सको जहॉ का सख वैभव धरती के सुख वैभव अनंतगुना अधिक है,
हे मनुष्यों यदि प्रथवी पर सभी दुख झेल कर भी सदा मेरे बताये मार्ग पर चलते है, गलत मार्ग नही चुनते, ईश्वर पर आस्था रखते हुये पाप कर्मों से भय खाते हुये उनसे दूर रहते हैं वही उस स्वर्ग को प्राप्त करते है,
हे मनुष्यों सच्चे मन से मेरी उपासना करने वाला, सदैव दूसरों से अपने समान प्रेम करने वाला, जरूरतमंदों की निस्वार्थ सहायता करने वाला ही परमधाम मैं प्रवेश पाता है, परमधाम स्वं मै ही हुँ, मुझमें लीन व्यक्ती युगों तक जन्म नही लेता, किंतु स्वर्गीय आत्मा फिर निश्चित काल के बाद जन्म लेते हैं जो उच्च व श्रेष्ट जीवन जी कर समाज व प्राणी जाती का कल्याण करते हैं!!
हे मनुष्यों जो आत्मा परमधाम यानी मुझमें लीन हो जाते है वह आदी सतयुग व सतयुग मैं पुन: जन्म लेते हैं और धरती को अपने श्रेष्ट गुणों से ईश्वीय व पावन बना देते हैं,तभी आदी सतयुग को व सतयुग को ईश्वरीय युग कहा जाता है तथा उस युग मैं भगवान रहने की बात कही गयी है,
अर्थात मानव मै इतने श्रेष्ट गुण होते हैं की उन्हें भगवान का स्थान प्रापत है, मानवों इसलिये अपने कर्म ऐसे बनाओ जो उस युग मैं प्रवेश पा सको,
हे मनुष्यों बुरे कर्म के कुछ व्यक्ति भी उस युग मैं प्रवेश पायेंगे जिन्होंने पिछले जीवन अथवा इस जीवन मैं जाने अनजाने कोई श्रेष्ट कर्म किया होगा, किंतु वह मानव नही अन्य जीव-जंतु के रूप मै ही तब वहॉ जीवन पायेंगे, इसलिय अपने कर्म सुधार कर उस युग मैं अपने लिये स्थान सुनिशचित करो जिसे दैविय युग भी कहा है"
कल्याण हो
हे मनुष्यों तुम्हारे भोतिक शरीर द्वारा प्राप्त सभी सुख, तुम्हारी सफलता व संतुष्टी ही भोतिक देह द्वारा प्राप्त धरती पर स्वर्गीय सुख है जो तुम्हैं सभी भौतिक सुख की सुखद अनुभूती देता है!!
इसके विपरीत तुम्हारे दुख, भोतिक सुख का अभाव, असंतुष्टी, संघर्ष, निराशा, हताषा, असफलता, क्लेश धरती पर ही प्रप्त नरक है, जो तुम्हैं पिछले जन्मों के कर्मों से मिला है, किंतु मानव जीवन मिला ताकी तुम अपने पिछले जन्मों के पापों का प्रायश्चित कर स्वर्ग प्राप्त कर सको जहॉ का सख वैभव धरती के सुख वैभव अनंतगुना अधिक है,
हे मनुष्यों यदि प्रथवी पर सभी दुख झेल कर भी सदा मेरे बताये मार्ग पर चलते है, गलत मार्ग नही चुनते, ईश्वर पर आस्था रखते हुये पाप कर्मों से भय खाते हुये उनसे दूर रहते हैं वही उस स्वर्ग को प्राप्त करते है,
हे मनुष्यों सच्चे मन से मेरी उपासना करने वाला, सदैव दूसरों से अपने समान प्रेम करने वाला, जरूरतमंदों की निस्वार्थ सहायता करने वाला ही परमधाम मैं प्रवेश पाता है, परमधाम स्वं मै ही हुँ, मुझमें लीन व्यक्ती युगों तक जन्म नही लेता, किंतु स्वर्गीय आत्मा फिर निश्चित काल के बाद जन्म लेते हैं जो उच्च व श्रेष्ट जीवन जी कर समाज व प्राणी जाती का कल्याण करते हैं!!
हे मनुष्यों जो आत्मा परमधाम यानी मुझमें लीन हो जाते है वह आदी सतयुग व सतयुग मैं पुन: जन्म लेते हैं और धरती को अपने श्रेष्ट गुणों से ईश्वीय व पावन बना देते हैं,तभी आदी सतयुग को व सतयुग को ईश्वरीय युग कहा जाता है तथा उस युग मैं भगवान रहने की बात कही गयी है,
अर्थात मानव मै इतने श्रेष्ट गुण होते हैं की उन्हें भगवान का स्थान प्रापत है, मानवों इसलिये अपने कर्म ऐसे बनाओ जो उस युग मैं प्रवेश पा सको,
हे मनुष्यों बुरे कर्म के कुछ व्यक्ति भी उस युग मैं प्रवेश पायेंगे जिन्होंने पिछले जीवन अथवा इस जीवन मैं जाने अनजाने कोई श्रेष्ट कर्म किया होगा, किंतु वह मानव नही अन्य जीव-जंतु के रूप मै ही तब वहॉ जीवन पायेंगे, इसलिय अपने कर्म सुधार कर उस युग मैं अपने लिये स्थान सुनिशचित करो जिसे दैविय युग भी कहा है"
कल्याण हो