Thursday, 9 February 2012

दूर तुमसे चले गए थे


दूर तुमसे चले गए थे, भूल ये कर गए थे, किसी गैर को अपना समझ गए थे, लगी ठोकर जब पता चला कोई नादानी हम कर गए थे,दूर अपनों से कितना चले गए थे, वक़्त की आँधियों के थपेड़ो में कितना फस हम गए थे, ये तो चाहत थी तुम्हारी जो बचा लायी हमे  इन  तूफानों से,वरना इन आँधियों  के थपेड़ों से पूरी तरह घिर कर अपनी ही हर ख़ुशी की आस खो हम चुके थे। 

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