Sunday, 23 November 2014

मेरी रचना

1*"दिन रात इबादत की है हन मैने भी मोहब्बत की है,
वफ़ादार दिलबर से तो हर कोई करता है आशिकी, एक बेवफा से दिल लगाने की हिमाकत मैने ही की है, हन मैने भी मोहब्बत की है"




2*"जितना हम उन्हे भूलना चाहते हैं उतना ही याद वो मुझे आते हैं, है पता मुझे नही है मोहब्बत अब उनसे फिर भी जाने क्यों ये अश्क उनके लिए ही आँखो से झलक आते हैं"

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