Saturday, 11 February 2017

कविता


वो ठुकराते रहे हमें हम चोट खाते रहे
जख्मो पर वो मेरे सदा मुस्कुराते रहे,
खता उनकी भी नही खता हमारी थी
उनकी बेरूखी पर भी प्यार लूटाते रहे

उमर भर सदा यूँ वो हमे रुलाते रहे
दर्द दे कर हमेशा मुझे वो सताते रहे
बनी रहे सदा लबो पे मुस्कान उनकी
बेवफाई पर भी उनकी उन्हें चाहते रहे

उन्हें करीब लाने की हम हसरत करते रहे
प्यार भी उन पर यूँ बेशुमार हम लुटाते रहे
 तोड़ कर दिल मेरा खुश बहुत होते थे वो
 उनकी खुशी के लिये हर दर्द छिपाते रहे

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