ईश्वर कहते है, "हे मनुष्यो यद्धपि तुमने सुना एवं पड़ा है की भगवन श्री कृष्ण की हज़ारो पत्निया थI तथा प्रत्येक के साथ वह रहा करते थे।
किंतु इस लीला का भाव यही है भगवान अथवा ईश्वर अथवा परमात्मा जगत में हर किसी के साथ है। देश, काल, परिस्तिथि के अनुसार मेरा रूप रंग आकर भाषा वेशभूषा रीती रिवाज़ भले बदल लू किंतु मूल तत्व वो आदी शक्ति सदा सभी के साथ हूँ ।
हे मनुष्यों तुम मुझे जिस नाम रूप से मुझे पुकारोगे उसी स्वरुप में मैं तुम्हारे समक्ष उपस्तिथ रहूँगा। श्री कृष्ण के हज़ारो रानियों के साथ रहने का एक भाव यह भी है की मैं किसी के साथ भेद भाव नही करता, जो निःस्वार्थ भक्ति से मुझे पाने की लालसा करता है मैं उसके साथ होता हूँ किंतु उसके अनेक जीवन के कर्म ही ये तय करते है की कौन मुझे कितना प्राप्त करता है।
हे मनुष्यों तुम्हारे भौतिक माता-पिता तुम्हारे भौतिक शरीर के आधार पर ही तुमसे सम्बन्ध रखते है, उनके लिये पिछली पीढ़ियों से मिली अनेक मान्यता जो स्वम मानव द्वारा निर्मित है वो ज़िम्मेदार है, अचरज और शैतान का प्रभाव इतना है की मनुष्य इन सब मान्यताओ से बाहर ही नही आना चाहता सब जानते हुये भी, और इस प्रकार मानव अपनी संतान के साथ भी केवल भौतिक देह के आधार पर प्रेम व् अपनत्व का भाव रखता है।
किंतु मैं परमेश्वर प्रत्येक जीव को उसकी भौतिकता नही अपितु आत्मा एवं कर्म के आधार पर व्यवहार रखता हूँ, मेरे लिये भौतिक देह केवल एक वस्त्र के समान है जो कर्मोनुसार बदलते रहते है।
हे मनुष्यों मेरा प्रेम सभी जीवो पर सदा ही एक समान रहता है, मेरे सभी स्वरुप तुम्हें यही दीक्षा देते हैं"
कल्याण हो
किंतु इस लीला का भाव यही है भगवान अथवा ईश्वर अथवा परमात्मा जगत में हर किसी के साथ है। देश, काल, परिस्तिथि के अनुसार मेरा रूप रंग आकर भाषा वेशभूषा रीती रिवाज़ भले बदल लू किंतु मूल तत्व वो आदी शक्ति सदा सभी के साथ हूँ ।
हे मनुष्यों तुम मुझे जिस नाम रूप से मुझे पुकारोगे उसी स्वरुप में मैं तुम्हारे समक्ष उपस्तिथ रहूँगा। श्री कृष्ण के हज़ारो रानियों के साथ रहने का एक भाव यह भी है की मैं किसी के साथ भेद भाव नही करता, जो निःस्वार्थ भक्ति से मुझे पाने की लालसा करता है मैं उसके साथ होता हूँ किंतु उसके अनेक जीवन के कर्म ही ये तय करते है की कौन मुझे कितना प्राप्त करता है।
हे मनुष्यों तुम्हारे भौतिक माता-पिता तुम्हारे भौतिक शरीर के आधार पर ही तुमसे सम्बन्ध रखते है, उनके लिये पिछली पीढ़ियों से मिली अनेक मान्यता जो स्वम मानव द्वारा निर्मित है वो ज़िम्मेदार है, अचरज और शैतान का प्रभाव इतना है की मनुष्य इन सब मान्यताओ से बाहर ही नही आना चाहता सब जानते हुये भी, और इस प्रकार मानव अपनी संतान के साथ भी केवल भौतिक देह के आधार पर प्रेम व् अपनत्व का भाव रखता है।
किंतु मैं परमेश्वर प्रत्येक जीव को उसकी भौतिकता नही अपितु आत्मा एवं कर्म के आधार पर व्यवहार रखता हूँ, मेरे लिये भौतिक देह केवल एक वस्त्र के समान है जो कर्मोनुसार बदलते रहते है।
हे मनुष्यों मेरा प्रेम सभी जीवो पर सदा ही एक समान रहता है, मेरे सभी स्वरुप तुम्हें यही दीक्षा देते हैं"
कल्याण हो
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