ईश्वर कहते हैं, “हे मनुष्यों यद्धपि मैं ही समस्त संसार का स्वामी हूँ, मेरी ही इच्छा से समस्त ब्रह्मांड व जीवन का जन्म हुआ, मेरी ही इच्छा से जन्म व मृत्यु होती है किन्तु इतने बड़े ब्रह्मांड को व जीवन को उत्पन्न करने हेतु पहले मैंने अपने निम्न अंशों को खुद से उत्पन्न किया जिन्होंने मेरी आज्ञा का पालन करते हुए समस्त ब्रह्मांड व जीवन की उत्पत्ति की।
“एक आदमी था, उसके मन में विचार आया क्यों न में अपना खुद का घर बनाऊं जहाँ न सिर्फ में बल्की मेरी आने वाली पीढ़ी भी सुख चैन से उसमे रह सके। तो पहले उसने एक ज़मीन का टुकड़ा खरीदने की सोची, उसने ज़मीन बेचने वाले से ज़मीन खरीदी, फिर उसने एक ठेकेदार को ठेका दिया मकान बनाने का, ठेकेदार अपने पाँच मज़दूरों के साथ घर बनाने को तैयार हो गया, लेकिन अब उस आदमी को आवश्यकता थी मकान बनाने हेतु ईंट, पत्थर, मिट्टी, रोड़ी, रेत, व अन्य सामग्री की, इसके लिए वो एक दुकान पर गया जहाँ से निम्न समान तो लिया किंतु समान उस स्थान तक पहुचाने हेतु तीन आदमी उस व्यक्ति को लेने पड़े दुकानदार से ताकि समान उचित स्थान तक पहुच सके।
इस प्रकार उस व्यक्ति का मकान बन कर तैयार हो गया, किंतु कभी कभी ही शायद कोई उन मज़दूरों उस समान वाले दुकानदार व उसके भेजे उन आदमियों व ठेकेदार व उस जमीन वाले का नाम लेता हो जिससे उस आदमी ने ज़मीन ली थी, हालांकि इनमे से एक के अभाव के बिना उस आदमी के घर का बनना नामुमकिन था, किंतु घर बनने के बाद लोग केवल यही कहते सुने गए कि तुमने बहुत सुंदर घर बनाया है, किंतु बाकी के सहयोग को सबने भुला दिया।“
भाव ये है इस समस्त ब्रमांड व जीवन को जन्म देने की मेरी ही प्रथम इच्छा थी, अर्थात इस ब्रह्माण्ड रूपी घर को बनाने की प्रथम इच्छा मेरी थी, मैंने ही सर्वप्रथम अपने एक अंश को उतपन्न किया जिसने समस्त ब्रमांड के लिए स्थान दिया, फिर इसको बनाने हेतु मैंने अपने ही एक अंश को जन्म दिया जिसने अपने से देवता, दैत्य, गंधर्व, किन्नर व मानव व समस्त जीव जाति की रचना की, फिर ब्रह्मांड रूपी घर के लिए निम्न सामग्री हेतु अपने ही एक अंश को जन्म दिया जिसने अपने तीन नौकर बनाये जो इस प्रकार है 1-जीवन, 2-मृत्यु, 3-नवजीवन, अब इन सबकी सहायता से समस्त ब्राह्मण व जीवन व मृत्यु व नवजीवन का निर्माण हुआ।
यद्धपि देश काल परिस्थिति के अनुरूप मनुष्य चाहे उस ज़मीदार की स्तुति करे जिससे मैंने समस्त ब्रह्मांड हेतु स्थान लिया था, अथवा उस ठेकेदार को मानव पूजे जिसने निम्नो को जन्म दिया या उस समान वाले को जिसने अपने तीन मज़दूर भेजे। ये सब मुझसे ही निकले और मुझसे ही जुड़े हैं, मनुष्य चाहे मुझ निराकार ईश को माने जो वास्तव में इस पूरे ब्रह्मांड का व समस्त जीवों का स्वामी है अथवा उनकी आराधना करें जिन्होंने अपना अपना योगदान किया इस विशाल घर को बनाने में, सभी मुझे प्रिये हैं किंतु जो जाती धर्म के नाम पर अराजकता फैला रहे हैं, खुद को और खुद के द्वारा निर्मित जाती धर्म को श्रेष्ठ बता रहे हैं वो पूर्ण अज्ञानी है।
हे मनुष्यों ये न भूलो समस्त मानव जाति का जन्म महज़ कुछ हज़ार वर्ष पहले का नही अपितु लाखो करोड़ो वर्ष पहले का है, यद्धपि कुछ अज्ञानी मानव सभ्यता को मात्र 4000 वर्ष पुरानी ही बताते हैं तो उन्हें आज बताता हूँ मनुष्य इतना बुद्धिमान नही था जो मात्र 4000 वर्षो में खुद को आज जैसा बना सके, यहाँ 4000 वर्ष का अभिप्राय 4 युग से है, पहला सतयुग, दूसरा त्रेता युग, तीसरा द्वापर युग और चौथा कलियुग। प्रत्येक युग के बदलने का समय तुम्हारे लिए लाखों हज़ारो या करोड़ो साल हो सकते हैं किंतु मेरे लिए पलक झपकने के समान है। इसलिए जो अज्ञानी मानव सभ्यता को मात्र हज़ारो वर्ष की मानते हैं उन्हें ये अवश्य जानना चाहिए, साथ ही में बता दु मनुष्य जाति व अन्य कई जीव जाती खत्म हो गयी उस दौर में जहाँ जब महादीप एक दूसरे से अलग हुए तो इस बीच कही महासागर तो कही विशाल पहाड़ तो कही विशाल रेगिस्तान का जन्म हुआ, किन्तु इसके साथ कई जीवन का अंत भी हुआ, किन्तु फिर मनुष्य जाति का उस नए स्थान पर जन्म व नई सभ्यता व संस्कृति का उदय हुआ, चुकी मनुष्य अपनी पिछली महान सभ्यता को भुला चुका था इसलिए जो अब उसे याद रहा वही सत्य वो समझ वो खुद को आज महज़ 4000 साल पुराना कहता है, किंतु वो पिछले कई करोड़ो लाखो वर्षो पुराने मानव अवशेषों को जो उसे मिलते रहे हैं ठुकराता रहा है, सत्य से मुख फेरता रहा है। किंतु सत्य तो यही है मनुष्य हज़ारो नही अपितु करोड़ो वर्ष पुराना जीव है बस समय के अनुरूप अवस्य कुछ बदलाव हुआ है और आगे भी होता रहेगा।“
कल्याण हो
“एक आदमी था, उसके मन में विचार आया क्यों न में अपना खुद का घर बनाऊं जहाँ न सिर्फ में बल्की मेरी आने वाली पीढ़ी भी सुख चैन से उसमे रह सके। तो पहले उसने एक ज़मीन का टुकड़ा खरीदने की सोची, उसने ज़मीन बेचने वाले से ज़मीन खरीदी, फिर उसने एक ठेकेदार को ठेका दिया मकान बनाने का, ठेकेदार अपने पाँच मज़दूरों के साथ घर बनाने को तैयार हो गया, लेकिन अब उस आदमी को आवश्यकता थी मकान बनाने हेतु ईंट, पत्थर, मिट्टी, रोड़ी, रेत, व अन्य सामग्री की, इसके लिए वो एक दुकान पर गया जहाँ से निम्न समान तो लिया किंतु समान उस स्थान तक पहुचाने हेतु तीन आदमी उस व्यक्ति को लेने पड़े दुकानदार से ताकि समान उचित स्थान तक पहुच सके।
इस प्रकार उस व्यक्ति का मकान बन कर तैयार हो गया, किंतु कभी कभी ही शायद कोई उन मज़दूरों उस समान वाले दुकानदार व उसके भेजे उन आदमियों व ठेकेदार व उस जमीन वाले का नाम लेता हो जिससे उस आदमी ने ज़मीन ली थी, हालांकि इनमे से एक के अभाव के बिना उस आदमी के घर का बनना नामुमकिन था, किंतु घर बनने के बाद लोग केवल यही कहते सुने गए कि तुमने बहुत सुंदर घर बनाया है, किंतु बाकी के सहयोग को सबने भुला दिया।“
भाव ये है इस समस्त ब्रमांड व जीवन को जन्म देने की मेरी ही प्रथम इच्छा थी, अर्थात इस ब्रह्माण्ड रूपी घर को बनाने की प्रथम इच्छा मेरी थी, मैंने ही सर्वप्रथम अपने एक अंश को उतपन्न किया जिसने समस्त ब्रमांड के लिए स्थान दिया, फिर इसको बनाने हेतु मैंने अपने ही एक अंश को जन्म दिया जिसने अपने से देवता, दैत्य, गंधर्व, किन्नर व मानव व समस्त जीव जाति की रचना की, फिर ब्रह्मांड रूपी घर के लिए निम्न सामग्री हेतु अपने ही एक अंश को जन्म दिया जिसने अपने तीन नौकर बनाये जो इस प्रकार है 1-जीवन, 2-मृत्यु, 3-नवजीवन, अब इन सबकी सहायता से समस्त ब्राह्मण व जीवन व मृत्यु व नवजीवन का निर्माण हुआ।
यद्धपि देश काल परिस्थिति के अनुरूप मनुष्य चाहे उस ज़मीदार की स्तुति करे जिससे मैंने समस्त ब्रह्मांड हेतु स्थान लिया था, अथवा उस ठेकेदार को मानव पूजे जिसने निम्नो को जन्म दिया या उस समान वाले को जिसने अपने तीन मज़दूर भेजे। ये सब मुझसे ही निकले और मुझसे ही जुड़े हैं, मनुष्य चाहे मुझ निराकार ईश को माने जो वास्तव में इस पूरे ब्रह्मांड का व समस्त जीवों का स्वामी है अथवा उनकी आराधना करें जिन्होंने अपना अपना योगदान किया इस विशाल घर को बनाने में, सभी मुझे प्रिये हैं किंतु जो जाती धर्म के नाम पर अराजकता फैला रहे हैं, खुद को और खुद के द्वारा निर्मित जाती धर्म को श्रेष्ठ बता रहे हैं वो पूर्ण अज्ञानी है।
हे मनुष्यों ये न भूलो समस्त मानव जाति का जन्म महज़ कुछ हज़ार वर्ष पहले का नही अपितु लाखो करोड़ो वर्ष पहले का है, यद्धपि कुछ अज्ञानी मानव सभ्यता को मात्र 4000 वर्ष पुरानी ही बताते हैं तो उन्हें आज बताता हूँ मनुष्य इतना बुद्धिमान नही था जो मात्र 4000 वर्षो में खुद को आज जैसा बना सके, यहाँ 4000 वर्ष का अभिप्राय 4 युग से है, पहला सतयुग, दूसरा त्रेता युग, तीसरा द्वापर युग और चौथा कलियुग। प्रत्येक युग के बदलने का समय तुम्हारे लिए लाखों हज़ारो या करोड़ो साल हो सकते हैं किंतु मेरे लिए पलक झपकने के समान है। इसलिए जो अज्ञानी मानव सभ्यता को मात्र हज़ारो वर्ष की मानते हैं उन्हें ये अवश्य जानना चाहिए, साथ ही में बता दु मनुष्य जाति व अन्य कई जीव जाती खत्म हो गयी उस दौर में जहाँ जब महादीप एक दूसरे से अलग हुए तो इस बीच कही महासागर तो कही विशाल पहाड़ तो कही विशाल रेगिस्तान का जन्म हुआ, किन्तु इसके साथ कई जीवन का अंत भी हुआ, किन्तु फिर मनुष्य जाति का उस नए स्थान पर जन्म व नई सभ्यता व संस्कृति का उदय हुआ, चुकी मनुष्य अपनी पिछली महान सभ्यता को भुला चुका था इसलिए जो अब उसे याद रहा वही सत्य वो समझ वो खुद को आज महज़ 4000 साल पुराना कहता है, किंतु वो पिछले कई करोड़ो लाखो वर्षो पुराने मानव अवशेषों को जो उसे मिलते रहे हैं ठुकराता रहा है, सत्य से मुख फेरता रहा है। किंतु सत्य तो यही है मनुष्य हज़ारो नही अपितु करोड़ो वर्ष पुराना जीव है बस समय के अनुरूप अवस्य कुछ बदलाव हुआ है और आगे भी होता रहेगा।“
कल्याण हो
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