"सदियों से यू प्यासा हूँ बस एक कुआ ढूंढता हूँ
फिर से एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ
शायद मिल जाये जहाँ में मोहब्बत के निशां
ऐ ज़िन्दगी ऐसा हमनसी और यार ढूंढता हूँ
कम पड़ जाती है ज़िन्दगी बस वफ़ा के लिये
मिले उमर भर वफ़ा बस वो प्यार ढूंढता हूँ
इश्क में खेलने वाले इन ज़ज़्बातों से मिले बहुत
जो समझे इन ज़ज़्बातों को वो संसार ढूंढता हूँ
मज़हब के नाम पर लड़ ज़ख्म देते हर रोज़ यहाँ
इंसां को इंसा बनादे वो गीता-कुरान ढूंढता हूँ
सदियों से यू प्यासा हूँ बस एक कुआ ढूंढता हूँ
फिर से एक नई ज़मीन और आसमान ढूंढता हूँ-२"
कॉपीराइट@अर्चना मिश्रा
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