अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक उम्र दराज़ महिला कम कपड़े पहने हुए युवतियों के लिए बोल रही थी कि इनका बलात्कार होना चाहिए क्योंकि इन्होंने ऐसे कपड़े पहने हैं साथ ही वहाँ मौजूद युवकों को भी उनका रेप करने के लिए उकसा रही है।
अब इसको क्या कहे एक छोटी और विछिप्त सोच या पुरुषवादी सोच जो हर स्त्री को बचपन से ही विरासत में मिली है, बचपन से ही हर लड़की को (कुछ उच्च वर्ग/उच्च मध्य वर्ग को छोड़कर) उसके घर वाले खासकर माँ व अन्य महिलाएं यही बोलती हैं कि ऐसे कपड़े मत पहनो, इतने बजे तक रात को बाहर न रहो, ये न करो वो न करो, तमाम तरह की बंदिशें बचपन से ही लगा दी जाती हैं और बंदिशें आगे की पीढ़ी को एक के बाद एक फिर अवतरित होती जाती है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ पुरुषवादी सोच के कारण है, महिलाएं ही अपने बेटों की बोलती है तुम लड़के हो तुम कुछ भी करो तुम्हारा कुछ नही बिगडेंगा वही लड़कियों पर बंदिशें । ऐसा इसलिए क्योंई कि सदियों पहले ही ऐसा माहौल दे दिया गया है कि पुरुष अगर किसी महिला/युवती/बालिका का रेप करे तो पुरुष का कुछ नही जाएगा वो पवित्र रहेगा लेकिन स्त्री चुकी उसकी पवित्रता उसके निज़ी अंगों में ही है उसकी गलती न होने पर भी उसका ही सब कुछ जाता है, एक बलात्कारी पुरुष या एसिड अटैक किसी लड़की पर करने वाला पुरुष उसकी शादी बड़ी आसानी से हो जाती है लेकिन जिसके साथ ऐसा होता है उसका हाथ थामने वाला कोई नही होता कारण पुरुषवादी सोच।
सदियों पहले हिंदू धर्म मे 'कन्यादान' रूपी कुरीति बनी जिसका आज तक पालन हो रहा है, 'कन्यादान' मतलब कन्या का दान जो विवाह में होता है अनिवार्य जो लड़की के घरवाले करते हैं, लेकिन कन्या का दान ही क्यों पुरुषदान क्यो नही होता, आखिर शादी तो दोनों की ही होती है, अथवा कन्या यानी लड़की कोई वस्तु अथवा पशु है जिसका दान किया जाता है।
मैंने कई धार्मिक धारावाहिक देखे जिनमे स्त्रीया पुरुषों को स्वामी कहती हैं (पति को), स्वामी मतलब मालिक, फिर स्त्री की स्थिति क्या हुई यदि पुरुष स्वामी है तो, पुरुष स्त्री को स्वामिनी नही कहते किंतु स्त्री पति को स्वामी कहती है, तभी पुरुष चाहे जितनी भी शादी कर ले मान्य है किंतु स्त्री के मन में ख्याल भी परपुरुष का न आये।
28 फरबरी 2019 को मेरे सबसे बड़े भाई की अचानक मौत हो गई, मेरी माँ दिन रात उसके लिए आँसू बहाती है, मुझे पता है उसकी जगज अगर मेरी मौत होती तो अब तक सबकी ज़िन्दगी पहले की तरह नॉर्मल हो चुकी होती पर चूँकि भाई की मृत्यु हुई है इसलिए मा का कष्ट अधिक बड़ा है ।
ये बात युही नही कहि मैंने, बरसो पहले मेरे भाई के दोस्त की बहन की एक हादसे में मौत हुई थी, तब मेरी माँ ने कहा था "किस्मत वालो की बेटी मरती है", और भाई की मौत के बाद भी यही कहा "बेटी तो किस्मत वालो की मरती है, बेटा बदनसीब का का मरता है, हमारा मरा भी तो बेटा", इसको क्या कहेंगे पिछड़ी वही पुरुषवादी सोच जो मेरी माँ को उनकी माँ से पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती रही है।
किसी से मुझे कोई शिकायत नही है क्योंकि हम किसी की सोच नही बदल सकते लेकिन खुद को बदल सकते हैं, मेरी अपनी कोई बेटी होती तो उसको वो सब मिलता जिसके लिए मुझे रोका टोका गया, अपमानित किया गया, मुझे एहसास कराया गया चूँकि मै एक लड़की हूँ ये ही मेरा एक अपराध है, लेकिन मेरी अपनी बेटी होती तो ऐसा उसके साथ मैंने कभी न किया होता।
खेर मुझे लगता है आज की पीढ़ी को पुराने पुरुषवादी और नारी विरोधी हर रिवाज़ को तोड़ना चाहिए, साथ ही हर स्त्री को अपने अधिकारों के प्रति आवाज़ उठानी चाहिए, इसके साथ ही जो स्त्री को स्त्री से ही जो ईर्ष्या का भाव है चाहे मा-बेटी, सास-बहू या सहेली इस भाव को खत्म करना चाहिए क्योंकि नारी नारी की यही शत्रुता पुरुसगवादी सोच को बढ़ावा देती है।
अब इसको क्या कहे एक छोटी और विछिप्त सोच या पुरुषवादी सोच जो हर स्त्री को बचपन से ही विरासत में मिली है, बचपन से ही हर लड़की को (कुछ उच्च वर्ग/उच्च मध्य वर्ग को छोड़कर) उसके घर वाले खासकर माँ व अन्य महिलाएं यही बोलती हैं कि ऐसे कपड़े मत पहनो, इतने बजे तक रात को बाहर न रहो, ये न करो वो न करो, तमाम तरह की बंदिशें बचपन से ही लगा दी जाती हैं और बंदिशें आगे की पीढ़ी को एक के बाद एक फिर अवतरित होती जाती है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ पुरुषवादी सोच के कारण है, महिलाएं ही अपने बेटों की बोलती है तुम लड़के हो तुम कुछ भी करो तुम्हारा कुछ नही बिगडेंगा वही लड़कियों पर बंदिशें । ऐसा इसलिए क्योंई कि सदियों पहले ही ऐसा माहौल दे दिया गया है कि पुरुष अगर किसी महिला/युवती/बालिका का रेप करे तो पुरुष का कुछ नही जाएगा वो पवित्र रहेगा लेकिन स्त्री चुकी उसकी पवित्रता उसके निज़ी अंगों में ही है उसकी गलती न होने पर भी उसका ही सब कुछ जाता है, एक बलात्कारी पुरुष या एसिड अटैक किसी लड़की पर करने वाला पुरुष उसकी शादी बड़ी आसानी से हो जाती है लेकिन जिसके साथ ऐसा होता है उसका हाथ थामने वाला कोई नही होता कारण पुरुषवादी सोच।
सदियों पहले हिंदू धर्म मे 'कन्यादान' रूपी कुरीति बनी जिसका आज तक पालन हो रहा है, 'कन्यादान' मतलब कन्या का दान जो विवाह में होता है अनिवार्य जो लड़की के घरवाले करते हैं, लेकिन कन्या का दान ही क्यों पुरुषदान क्यो नही होता, आखिर शादी तो दोनों की ही होती है, अथवा कन्या यानी लड़की कोई वस्तु अथवा पशु है जिसका दान किया जाता है।
मैंने कई धार्मिक धारावाहिक देखे जिनमे स्त्रीया पुरुषों को स्वामी कहती हैं (पति को), स्वामी मतलब मालिक, फिर स्त्री की स्थिति क्या हुई यदि पुरुष स्वामी है तो, पुरुष स्त्री को स्वामिनी नही कहते किंतु स्त्री पति को स्वामी कहती है, तभी पुरुष चाहे जितनी भी शादी कर ले मान्य है किंतु स्त्री के मन में ख्याल भी परपुरुष का न आये।
28 फरबरी 2019 को मेरे सबसे बड़े भाई की अचानक मौत हो गई, मेरी माँ दिन रात उसके लिए आँसू बहाती है, मुझे पता है उसकी जगज अगर मेरी मौत होती तो अब तक सबकी ज़िन्दगी पहले की तरह नॉर्मल हो चुकी होती पर चूँकि भाई की मृत्यु हुई है इसलिए मा का कष्ट अधिक बड़ा है ।
ये बात युही नही कहि मैंने, बरसो पहले मेरे भाई के दोस्त की बहन की एक हादसे में मौत हुई थी, तब मेरी माँ ने कहा था "किस्मत वालो की बेटी मरती है", और भाई की मौत के बाद भी यही कहा "बेटी तो किस्मत वालो की मरती है, बेटा बदनसीब का का मरता है, हमारा मरा भी तो बेटा", इसको क्या कहेंगे पिछड़ी वही पुरुषवादी सोच जो मेरी माँ को उनकी माँ से पीढ़ी दर पीढ़ी मिलती रही है।
किसी से मुझे कोई शिकायत नही है क्योंकि हम किसी की सोच नही बदल सकते लेकिन खुद को बदल सकते हैं, मेरी अपनी कोई बेटी होती तो उसको वो सब मिलता जिसके लिए मुझे रोका टोका गया, अपमानित किया गया, मुझे एहसास कराया गया चूँकि मै एक लड़की हूँ ये ही मेरा एक अपराध है, लेकिन मेरी अपनी बेटी होती तो ऐसा उसके साथ मैंने कभी न किया होता।
खेर मुझे लगता है आज की पीढ़ी को पुराने पुरुषवादी और नारी विरोधी हर रिवाज़ को तोड़ना चाहिए, साथ ही हर स्त्री को अपने अधिकारों के प्रति आवाज़ उठानी चाहिए, इसके साथ ही जो स्त्री को स्त्री से ही जो ईर्ष्या का भाव है चाहे मा-बेटी, सास-बहू या सहेली इस भाव को खत्म करना चाहिए क्योंकि नारी नारी की यही शत्रुता पुरुसगवादी सोच को बढ़ावा देती है।
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