ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम भले मुझे और मेरा अस्त्तित्व नकार दो, तुम भले अपने कर्मो को ही श्रेष्ठ कहो किंतु जो भी तुम करते हो सोचते हो, जो भी अच्छा या बुरा तुम्हारे साथ होता है वो सब पहले ही श्रष्टि निर्माण के समय ही लिखा जा चुका है।
प्रत्येक जीव आत्मा कितने समय तक अपने भौतिक रूप में रहेगी, कितने समय सूक्ष्म शरीर मे रहेगी कितने समय स्वर्ग भोगेगी अथवा निम्न नरको में निवास करेगी, किसके कर्म क्या होंगे और उनको क्या दंड मिलेगा ये सब लिखा जा चुका है और सब कुछ उसके ही अनुसार हो रहा है।
निम्न धार्मिक ग्रंथो की कथाओं को देखो उनमे जो लिखा था वो जैसे सत्य हुआ, मेरे निम्न रूपो में मेरे अंशो का आगमन व उनका जीवन व देह त्याग कर मुझमे फिर मिलन, जैसे उनका तय था व तय है वैसे ही तुम्हारा तय है।
इसलिए शोक न कर और मेरी शरण मे आ,मैं तेरे आँसू पोंछउँगा, तेरे दुख को कम करूँगा, तू मुझमे विश्वाश रख, यद्धपि तुझे बहकाने वाले तेरे पास ही है, तुझे मुझसे दूर करने वाले तेरे पास ही है, तू इसको अपनी एक परीक्षा मान और मुझमे विश्वास पैदा कर, मै तुझे वो सब दूँगा जो इस संसार मे भी उपलब्ध नही है, तू बस सांसारिक बातों और रिश्तों के मोह से दूर होकर मेरी शरण मे आ, तेरा वास्तविक संसार और परिवार तो मैं हूँ, तू मेरी सुन और नेकी कर, भले तेरे प्रारब्ध में बुरा लिखा हो लेकिन तू नेकी कर निश्चय ही तू मुझे पायेगा और असीम सुख को प्राप्त करेगा।"
कल्याण हो
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