एक सदी से इंतज़ार था किसी का
जिससे कुछ दिल की बात कह तो ले
इंतजार था बस उस एक हमनशीं का
जिसके कंधे पे सर रख कर रो तो ले
है आज भी तन्हा बीते कल की तरह
न मिला जिससे हाल ए दिल कह तो ले
जिसको बनाना चाहा राजगार दिलका
चला गया कहकर तेरा दर्द हम ले क्यों ले
है अल्फाज़ बहुत सारे बयां करने को
कोई नही ऐसा जो इन्हे कभी सुन तो ले
खुद रोते हैं खुद ही अश्क पोछ लेते है
मेरे रोने की वज़ह काश कोई पूछ तो ले
रोज़ टूटते है रोज़ बिखरते है जिनके लिए
काश कभी यु बिखरा हुआ मुझे देख तो ले
मेरी नई कविता
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