Tuesday, 3 October 2023

Love shayri

 ज़िंदगी मे अब एक किनारा ढूंढते है

थक चुके अकेले एक सहारा ढूंढते है

जो थाम कर चले हाथ उमर भर मेरा

बस एक वो साथी हमारा ढूँढते है



Wednesday, 20 September 2023

मेरी बच्ची (my pet) के लिए एक कविता


 

आज भी वो जमाना याद है मुझे
गुस्से मे तेरा घूर्राना याद है मुझे
नन्ही 7 दिन की परी आई थी घर मेरे
गोद तुझे उठा कर यू घूमना याद है मुझे

"मेरी बेटी स्वीटी मिश्रा, मेरी परी"

20 April 2000- 20/ September/2011...Bossy's Grandmother 🥰🥰

Thursday, 27 July 2023

Romantic shayri

 हम तुम्हे जितना चाहने लगे है

दुनिया से दूर क्यों जाने लगे हैं

ये असर है तेरी आशिकी का मुझपर

खुद से बेखबर करीब तेरे आने लगे है

"हाँ मैं भी एक हिंदू हूँ" (एक सच्ची कहानी)

 "हाँ मैं भी एक हिंदू हूँ" (एक सच्ची कहानी)

 Note-: ye ek sachhi kahani hai par gopniyata ke karan sthan aur charitra ke naam hmne badal diye hai) 



आज जीवन के इन आखिरी छड़ों मे मैं अपने परिवार को अपने सामने खड़े देख पा रहा हूँ, बरसों बाद आज फ़िर मुझे मेरे माता-पिता और अपने 5 बड़े भाईयो और हमारी इकलौती बहन पुष्पा को देख पा रहा हूँ, ये लोग आज भी वैसे ही दिख रहे है जैसे बरसों पहले दिखते थे.


1947 से पहले मेरा पूरा परिवार कराची मे रहता था, हम एक सम्रध हिंदू परिवार व उच्च जाति से थे, अब कौन सी जाति से थे मुझे नही लगता अब इसको बताने का कोई औचित्य रह गया है.


मेरे पिता रेलवे मे रेल चालक की नौकरी करते थे, घरमे किसी चीज की कोई कमी नही थी, लेकिन फ़िर एक ऐसा दौर आया जिसने हमारा सबकुछ छीन लिया और ये दिन था 15 अगस्त 1947,


भले इस दिन भारत को आज़ादी मिली हो पर मेरे जैसे लाखों लोगों की ज़िंदगी बर्बादी का कारण शायद यही है.

1947 के बटवारे के बाद मेरे दादा/दादी चाचा/चाची और उनके बच्चों समेत सभी लोगो को मार दिया गया क्योंकि हम हिंदू थे और मेरे पिता किसी तरह मेरी मा और 5 भाइयों को ज़िंदा हिंदुस्तान लाने मे किसी तरह कामयाब रहे, वो रेल चालक की नौकरी करते थे इसलिए शायद इसका उनको लाभ मिला और रेल इंजन मे किसी तरह छिपा कर वो उन्हे भारत ले आये इस उम्मीद मे कम से कम अब यहाँ तो हम सुरक्षित है.


मेरा परिवार पहले दिल्ली पहुँच और कुछ दिन शरणार्थी कैंप मे रहा फ़िर आगरा चला गया क्योंकि मेरे पिता का तबादला अब आगरा हो चुका था, कुछ दिन वहाँ रेलवे के सरकारी घर मे मेरा परिवार रहा पर फ़िर मेरे पिता ने वही एक ज़मीन का टुकडा ख़रीद कर मेरे भाइयों और मा के लिए एक घर बनवा दिया जिसमे वो लोग चेन से रह सके पर क्या ऐसा हो सका.. 


1957 को मेरी बड़ी बहन का जन्म इसी घर मे हुआ जिसका नाम माता पिता ने पुष्पा रखा और 1960 में जन्म हुआ मेरा जिसका नाम रखा गया मनोहर जिसको सब प्यार से मन्नू बुलाते थे.


मैं जब 5/6 साल का था तो मेरे पिताजी दुनिया छोड़ गए, मैं अब थोड़ा थोड़ा दुनियादारी समझने लगा था, मैंने देखा इस दुख की घडी मे कोई पड़ोसी हमारे घर नही आया और रिश्तेदार तो कोई बचे ही नही थे, लोग हमें पाकिस्तानी और मुसलमान बोल कर ताना देने लगे, किसी तरह पिता का अंतिम संस्कार किया, वक़्त के साथ हम सब संभलने की कोशिश कर रहे थे, रेलवे ने पिता की नौकरी बड़े भाई को देदी और कुछ आर्थिक सहायता भी रेलवे की तरफ से मिल गयी.


जीवन अब संभलने लगा था पर जैसे जैसे मैं बड़ा हो रहा था मुझे लोगों द्वारा किया भेदभाव समझ आ रहा था, मैं देखता था लोग हमसे बातचीत तो करते है पर अपने घर किसी समारोह या कार्यक्रम मे नही बुलाते यह तक की मेरे विद्यालय मे भी ऐसा वयवहार मेरे साथ होता, मुझे समझ नही आता था आखिर क्यों लोग ऐसा हमारे साथ करते है.


जब मैं, 10 साल का हुआ तो मा ने बड़े भाई से कहा मेरी उमर हो चुकी है तुम मेरे सामने अपनी छोटी बहन की शादी कर दो, भाई ने कहा कोई अच्छा लड़का मिलेगा तो जरूर कर दूंगा इसकी शादी, बड़ी मुश्किल से एक पुरुष मिला जिसकी पहले ही 2 शादी हो चुकी थी पर कोई पत्नी जीवित नही थी, मा ने इस रिश्ते पर ऐतराज दिखाया तो भाई ने कहा यहाँ हमें कोई नही अपनाता है, सबके liye हम मुसलमान और पाकिस्तानी है, कोई यहाँ हमारा नही है, लोगों से बोल बोल कर थक चुके की हां मैं भी 'हिंदू' हूँ और हिंदुस्तानी भी लेकिन फ़िर भी जलील होना पड़ता हमे यहाँ जैसे हमे कोई गलती कर दी हो यहाँ आ कर, भाई की बात सुन कर मा कुछ नही कहती और बहन के लिए इस रिश्ते को स्वीकार कर लेती है.


शादी तय हो जाती है पर जैसे जैसे शादी का समय नज़्दीक आने लगता है मेरी बहन बीमार रहने लगती है, रेलवे के अस्पताल मे उसका उपचार करवाया जाता है पर तबियत बिगड़ती ही जाती है और आखिर विवाह से ठीक 2 दिन पहले वो दुनिया छोड़ जाती है, क्या सोचा था क्या हो गया, मेरा पूरा परिवार गम मे डूब जाता है.


धीरे धीरे हम सब फ़िर संभलने की कोशिश कर रहे थे तो मा ने भाइयों से कहा तुम लोग जवान हो चुके हो अपनी शादी के बारे मे सोचो कुछ, भाई ने फ़िर कहा यहाँ हमारी शादी कभी नही होगी बस इस देश ने ज़िंदगी दे दी यही बहुत बड़ा अहसाँ कर दिया.


उसके बाद मेरे सभी भाइयों को रैलवे मे नोकरी मिल गयी और वो सब पैसे कमाने पर ध्यान देने लगे पर अचानक अज्ञात बीमारी से मेरे बड़े भाई की मृत्यु हो गयी और इसका सदमा अब मा बर्दाश्त न कर सकी और वो भी हमे छोड़ के चली गयी, इसके बाद ऐसी मनहुसियात् हुई की 2 साल के अंदर मेरे सभी भाई मर गयी और मै 15 साल की उमर मे अकेला रह गया.


जो पड़ोसी मुझे और मेरे परिवार को मुस्लिम और पाकिस्तानी बोल कर भेदभाव करते थे वो अचानक वो मेरे प्रति बड़े मीठे बन गए, लेकिन उनका ये दिखावा जल्द ही इससे पर्दा उठ गया क्योंकि उन लोगो ने मुझे एक दिन मेरे ही घर घर से बाहर निकाल कर घर पर कब्जा कर लिया, मै रोता बिलखता रहा, कुछ नही समझ पा रहा था क्या करू कहा जाऊ किससे मदद माँगू, फ़िर उनमे से किसी को पता चला की मेरे पास नकद और पुश्तेनी जेवर अभी बहुत है, पैसा और जेवरो को छिनने हेतु फ़िर एक षड्यंत्र उन्होंने रचा.


मुझे कहा तुम्हे रहने के लिए एक कमरा जो बहार की तरफ है वो दे देंगे और खाने को दे दिया करेंगे बीमार होने पर इलाज हम करवायंगे बस तुम हमें अपनी मा के गहने और जो नगद तुम्हारे पास है वो दे दिया करना, मै मान गया.


करीब 2 साल तक तो मै वैसा करता रहा जैसे पड़ोसियों ने कहा था किंतु अब उनको पैसे देश बंद कर दिया और छोटी मोटी नौकरी करने लगा, पड़ोसियों को पता लग गया की मै बातों मे नही आ रहा तो उन्होंने मेरी शादी करवाने का प्रलोभन दिया, मै फ़िर उनकी बातों मे आ गया और पुश्तेनी जेवर और पैसे उनके मांगने पर देता रहा पर वो लोग मेरे साथ छल करते रहे और बहुत साल बाद अहसास हुआ वो बस मेरे अकेलेपन का फायदा उठा रहे थे, मैंने शादी का इरादा छोड़ दिया और अपने अकेले जीवन मे व्यस्त हो गया.


आज 2017 मैं फेफड़ों कैंसर से झूझ रहा हूँ और जानता हूँ अब मेरा भी वक़्त आ गया है इस दुनिया से विदा लेने का पर एक सवाल छोड़ कर जाना चाहता हूँ "क्या कोई शरणार्थी हिंदू नही हो सकता, क्या हिंदुस्तान उन लोगों को हिंदू नही मानता और अपना नही मानता जिनका कोई इस देश मे पहले से न रहा हो, जो मेरी कहानी है ऐसे कई मनोहरो की ये कहानी रही होगी और इस तन्हाई और अकेलेपन के साथ इस ज़िंदगी को अलविदा कहा होगा, आख़िर हम भी हिंदू है पर कसूर इतना है हम उस तरफ से आये है, जैसे वहाँ मुस्लिम्स को मुहाज़िर कहा गया hme कौनसा सम्मान दिया गया यहाँ, हम भी हिंदू है और क्या कभी हमे इंसाफ मिलेगा "


Writer-Archana Mishra

देश के नाम कविता

 आज ये कैसा लोक्तंत्र है, मचा हड़कंप है

आँसुओं मे देखो, आज डूबा हर जनतंत्र है


लुट रही आबरू हर पल बेटियों की रोज

खामोश है देश,क्या आज ऐसा ये गणतंत्र है


इसी के खातिर शहीद हुए भारत के ये वीर

आज दूषित राजनीति,का कैसा ये षड्यंत्र है


अपने लिये जीने वाले आये राजा मतवाले

मत भूल ये देश है भारत,न की तेरा राजतंत्र है


खुद को खुदा समझने की भूल तु जो कर बैठा

भूल गया तू, की देश मे अभी भी लोक्तंत्र है

Meri rachna


" बचपन की वो नादाँ सी चाहत थी

बस एक चुलबुली सी कोई हरकत थी

दिल ही दिल मे बसने लगे थे हम उनके

ज़िंदगी की पहली वो मोहब्बत थी "                  



 "फ़िर वो ज़माना बहुत याद आता है

घर वो पुराना बहुत याद आता है

बीते पल वो जिनके साये मे कभी

दोस्ती वो याराना बहुत याद आता है"

 

Monday, 22 May 2023

"हाँ मैं भी एक हिंदू हूँ" (एक सच्ची कहानी)

 Note-: ye ek sachhi kahani hai par gopniyata ke karan sthan aur charitra ke naam hmne badal diye hai) 


आज जीवन के इन आखिरी छड़ों मे मैं अपने परिवार को अपने सामने खड़े देख पा रहा हूँ, बरसों बाद आज फ़िर मुझे मेरे माता-पिता और अपने 5 बड़े भाईयो और हमारी इकलौती बहन पुष्पा को देख पा रहा हूँ, ये लोग आज भी वैसे ही दिख रहे है जैसे बरसों पहले दिखते थे.

1947 से पहले मेरा पूरा परिवार कराची मे रहता था, हम एक सम्रध हिंदू परिवार व उच्च जाति से थे, अब कौन सी जाति से थे मुझे नही लगता अब इसको बताने का कोई औचित्य रह गया है.

मेरे पिता रेलवे मे रेल चालक की नौकरी करते थे, घरमे किसी चीज की कोई कमी नही थी, लेकिन फ़िर एक ऐसा दौर आया जिसने हमारा सबकुछ छीन लिया और ये दिन था 15 अगस्त 1947,

भले इस दिन भारत को आज़ादी मिली हो पर मेरे जैसे लाखों लोगों की ज़िंदगी बर्बादी का कारण शायद यही है.
1947 के बटवारे के बाद मेरे दादा/दादी चाचा/चाची और उनके बच्चों समेत सभी लोगो को  मार दिया गया क्योंकि हम हिंदू थे और मेरे पिता किसी तरह मेरी मा और 5 भाइयों को ज़िंदा हिंदुस्तान लाने मे किसी तरह कामयाब रहे, वो रेल चालक की नौकरी करते थे इसलिए शायद इसका उनको लाभ मिला और रेल इंजन मे किसी तरह छिपा कर वो उन्हे भारत ले आये इस उम्मीद मे कम से कम अब यहाँ तो हम सुरक्षित है.

मेरा परिवार पहले दिल्ली पहुँच और कुछ दिन शरणार्थी कैंप मे रहा फ़िर आगरा चला गया क्योंकि मेरे पिता का तबादला अब आगरा हो चुका था, कुछ दिन  वहाँ रेलवे के सरकारी घर मे मेरा परिवार रहा पर फ़िर मेरे पिता ने वही एक ज़मीन का टुकडा ख़रीद कर मेरे भाइयों और मा के लिए एक घर बनवा दिया जिसमे वो लोग चेन से रह सके पर क्या ऐसा हो सका.. 

1957 को मेरी बड़ी बहन का जन्म इसी घर मे हुआ जिसका नाम माता पिता ने पुष्पा रखा और 1960 में जन्म हुआ मेरा जिसका नाम रखा गया मनोहर जिसको सब प्यार से मन्नू बुलाते थे.

मैं जब 5/6 साल का था तो मेरे पिताजी दुनिया छोड़ गए, मैं अब थोड़ा थोड़ा दुनियादारी समझने लगा था, मैंने देखा इस दुख की घडी मे कोई पड़ोसी हमारे घर नही आया और रिश्तेदार तो कोई बचे ही नही थे, लोग हमें पाकिस्तानी और मुसलमान बोल कर ताना देने लगे, किसी तरह पिता का अंतिम संस्कार किया, वक़्त के साथ हम सब संभलने की कोशिश कर रहे थे, रेलवे ने पिता की नौकरी बड़े भाई को देदी और कुछ आर्थिक सहायता भी रेलवे की तरफ से मिल गयी.

जीवन अब संभलने लगा था पर जैसे जैसे मैं बड़ा हो रहा था मुझे लोगों द्वारा किया भेदभाव समझ आ रहा था, मैं देखता था लोग हमसे बातचीत तो करते है पर अपने घर किसी समारोह या कार्यक्रम मे नही बुलाते यह तक की मेरे विद्यालय मे भी ऐसा वयवहार मेरे साथ होता, मुझे समझ नही आता था आखिर क्यों लोग ऐसा हमारे साथ करते है.

जब मैं, 10 साल का हुआ तो मा ने बड़े भाई से कहा मेरी उमर हो चुकी है तुम मेरे सामने अपनी छोटी बहन की शादी कर दो, भाई ने कहा कोई अच्छा लड़का मिलेगा तो जरूर कर दूंगा इसकी शादी, बड़ी मुश्किल से एक पुरुष मिला जिसकी पहले ही 2 शादी हो चुकी थी पर कोई पत्नी जीवित नही थी, मा ने इस रिश्ते पर ऐतराज दिखाया तो भाई ने कहा यहाँ हमें कोई नही अपनाता है, सबके liye हम मुसलमान और पाकिस्तानी है, कोई यहाँ हमारा नही है, लोगों से बोल बोल कर थक चुके की हां मैं भी 'हिंदू' हूँ और हिंदुस्तानी भी लेकिन फ़िर भी जलील होना पड़ता हमे यहाँ जैसे हमे कोई गलती कर दी हो यहाँ आ कर, भाई की बात सुन कर मा कुछ नही कहती और बहन के लिए इस रिश्ते को स्वीकार कर लेती है.

शादी तय हो जाती है पर जैसे जैसे शादी का समय नज़्दीक आने लगता है मेरी बहन बीमार रहने लगती है, रेलवे के अस्पताल मे उसका उपचार करवाया जाता है पर तबियत बिगड़ती ही जाती है और आखिर विवाह से ठीक 2 दिन  पहले वो दुनिया छोड़ जाती है, क्या सोचा था क्या हो गया, मेरा पूरा परिवार गम मे डूब जाता है.

धीरे धीरे हम सब फ़िर संभलने की कोशिश कर रहे थे तो मा ने भाइयों से कहा तुम लोग जवान हो चुके हो अपनी शादी के बारे मे सोचो कुछ, भाई ने फ़िर कहा यहाँ हमारी शादी कभी नही होगी बस इस देश ने ज़िंदगी दे दी यही बहुत बड़ा अहसाँ कर दिया.

उसके बाद मेरे सभी भाइयों को रैलवे मे नोकरी मिल गयी और वो सब पैसे कमाने पर ध्यान देने लगे पर अचानक अज्ञात बीमारी से मेरे बड़े भाई की मृत्यु हो गयी और इसका सदमा अब मा बर्दाश्त न कर सकी और वो भी हमे छोड़ के चली गयी, इसके बाद ऐसी मनहुसियात् हुई की 2 साल के अंदर मेरे सभी भाई मर गयी और मै 15 साल की उमर मे अकेला रह गया.

जो पड़ोसी मुझे और मेरे परिवार को मुस्लिम और पाकिस्तानी बोल कर भेदभाव करते थे वो अचानक वो मेरे प्रति बड़े मीठे बन गए, लेकिन उनका ये दिखावा जल्द ही इससे पर्दा उठ गया क्योंकि उन लोगो ने मुझे एक दिन मेरे ही घर घर से बाहर निकाल कर घर पर कब्जा कर लिया, मै रोता बिलखता रहा, कुछ नही समझ पा रहा था क्या करू कहा जाऊ किससे मदद माँगू, फ़िर उनमे से किसी को पता चला की मेरे पास नकद और पुश्तेनी जेवर अभी बहुत है, पैसा  और जेवरो को छिनने हेतु फ़िर एक षड्यंत्र उन्होंने रचा.

मुझे कहा तुम्हे रहने के लिए एक कमरा जो बहार की तरफ है वो दे देंगे और खाने को दे दिया करेंगे बीमार होने पर इलाज हम करवायंगे बस तुम हमें अपनी मा के गहने और जो नगद तुम्हारे पास है वो दे दिया करना, मै मान गया.

करीब 2 साल तक तो मै वैसा करता रहा जैसे पड़ोसियों ने कहा था किंतु अब उनको पैसे देश बंद कर दिया और छोटी मोटी नौकरी करने लगा, पड़ोसियों को पता लग गया की मै बातों मे नही आ रहा तो उन्होंने मेरी शादी करवाने का प्रलोभन दिया, मै फ़िर उनकी बातों मे आ गया और पुश्तेनी जेवर और पैसे उनके मांगने पर देता रहा पर वो लोग मेरे साथ छल करते रहे और बहुत साल बाद अहसास हुआ वो बस मेरे अकेलेपन का फायदा उठा रहे थे, मैंने शादी का इरादा छोड़ दिया और अपने अकेले जीवन मे व्यस्त हो गया.

आज 2017 मैं फेफड़ों कैंसर से झूझ रहा हूँ और जानता हूँ अब मेरा भी वक़्त आ गया है इस दुनिया से विदा लेने का पर एक सवाल छोड़ कर जाना चाहता हूँ "क्या कोई शरणार्थी हिंदू नही हो सकता, क्या हिंदुस्तान उन लोगों को हिंदू नही मानता और अपना नही मानता जिनका कोई इस देश मे पहले से न रहा हो, जो मेरी कहानी है ऐसे कई मनोहरो की ये कहानी रही होगी और इस तन्हाई और अकेलेपन के साथ इस ज़िंदगी को अलविदा कहा होगा, आख़िर हम भी हिंदू है पर कसूर इतना है हम उस तरफ से आये है, जैसे वहाँ मुस्लिम्स को मुहाज़िर कहा गया hme कौनसा सम्मान दिया गया यहाँ, हम भी हिंदू है और क्या कभी हमे इंसाफ मिलेगा "

Writer-Archana Mishra