एक बार की बात है, भूतो की एक सभा हुई (मीटिंग), उसमे में मुद्दा ये रखा
गया की भूत इंसानो क बीच अपनी छवि (इमेज) कैसे सुधारे. काफ़ी सोचने
विचारने के बाद ये निश्चय (डिसाइड) किया गया की उनमे से सबसे होनहार भूत
इंसानो क बीच जायंगे और उन्हे बातायँगे की जैसे वो सोचते हैं उनके बारे में
वैसे वो बिल्कुल भी नही है, उनमे और इंसानो में सिर्फ़ शरीर का फ़र्क
है, इंसानो के पास शरीर होता है और भूतो क पास नही,
इस काम क लिए 2 बहुत ही समझदार भूतो को इस काम क लिए इंसानो क पास भेजा गया जिनका नाम था छोटू शेतान और मोटू शेतान, जब वो दोनो इंसानो क बीच पहुचे और वाहा अपनी छवि देखी तो खुद बेचारे डर गये, वाहा भूतो की बड़ी ही खराब छवि थी, लोग समझते थे की भूत अजीब सी शक्लो वाले और बड़े ही डरावने बेढंगे और बदसूरत से दिखने वाले होते है, जबके हक़ीकत इससे एक दम अलग थी, खूबसूरत और कम खूबसूरत, गोरा काला, जाती, धर्म, उँछ नीच, अमीर ग़रीब इत्यादि की दीवारे तो इंसानो क बीच होती है भूतो की दुनिया इससे एक दम अलग होती है,
छोटू शेतान और मोटू शेतान वाहा जा कर इंसानो को अपने बारे में कुछ समझाते इससे पहले ही इंसानो की दुनिया के रंग देख उनके होश गुम हो गये, सोचने लगे ये कहाँ आ गये हम, उन्होने देखा इंसान इंसान का खून बहा रहा है, अपने मतलब के लिए, स्वार्थ पूर्ति के लिए इंसान दूसरे इंसान का सहारा ले के उससे ईस्तमाल कर कितनी आसानी से छोड़ जाता है, बहुत रिश्तो की बात करते है ये इंसान लेकिन खुद वो रिश्तो को बदनाम कर रहा है, इंसानियत और रिश्तों की पवित्रता को अपने पेर्रों तले कुचालता है ये इंसान, साँप के ज़हर से भी ज़्यादा है एक मानव के अंदर का ज़हर जिसे वो अपने ही समुदाय में फेला रहा है,
जाती- धर्म, अमीर- ग़रीब, गोरा- कला, उँछ- नीच और ना जाने कैसी कैसी दीवारे हैं इंसानो में, इंसान कहते कुछ और है, करते कुछ और हैं और देखते कुछ और है, उनके दिल में कुछ और है, दिमाग़ में कुछ और है और ज़ुबान पे कुछ और है, उन्हे समझना और समझना शायद उस परमेश्वर के हाथ में भी नही है, तभी तो आज दुनिया इतनी बिखरी हुई है, हर तरफ़ हा हा कार है, ताकतवर कमजोर को लूट रहा है, हर तरफ विवशता और और आँसू की बहार है, जबकि उस परमेशावर् ने तो मानव को इसलिलये ताक़त और शक्ति दी थी ताकि वो कमजोर और असहाय लोगो की सहयाता कर सके, पर इंसान ने इसका ग़लत ईस्तमाल किया है, पूरी धरती आज इंसानो के अत्याचारो से घिरी हुई है, धरती रो रही है पर उसके आँसू देखने वाला और पोछने वाला कोई नही है, कोई नही है जो श्रष्टी की सबसे खूबसूरत और ज़िंदगी देने एवम सबका पालन पोषण करने वाली धरती माता के आंशु पोंछ कर उन्हे कम से कम सांत्वना ही दे सके, उसे दुखों के सागर में यू ही डूबने से बचा सके.
देख के इंसानो के हाल अब समंझ में आई छोटू और मोटू शेतान को ये बात, करते हैं कल्पना इंसान जिसे भूत मान के, दरअसल वो तो है उनके अंदर छिपा हुआ अपना पाप, अपने अंदर की बुराई को वो ही देते हैं रूप और आकर और कहते है ऐसे होते है भूत, जितना कुरूप बना के भूतो की वो कल्पना करते है सच तो ये है वो होती है उनके अंदर की बुराई, उनका मन इतना ही कुरूप होता है, जैसा जिसका मन होता है वैसा ही वो भूतों की छवि की कल्पना करने लगते हैं, और इस तरह बस वो खुद नही समझ पाते की ये तो उनका अपना मन है, क्यों की वो अपने दिल की गहराई में छिपे पाप नाम के उस भूत को नही देख पाते या फिर देखना ही नही चाहते अथवा देख कर भी अंजान बन कर अपनी बुराइयों का बोझा उन अनदेखे परलोक निवासी भूतों पे डाल देते हैं और बस कहने लगते है ये भूत ऐसे होते है.
इंसानो की ऐसे बदसूरत दुनिया को देख के छोटू और मोटू बिना दोस्ती का प्रस्ताव इंसानो के सामने रखे अपनी दुनिया में लौटने का फ़ैसला करते है, वो सोचते है जो खुद अपनो के ना हो सके वो उनके क्या होंगे, वो उनके ना हो सके जिनके साथ वो ज़िंदगी का ना कितना वक़्त बिताते है, जिन्हे वो देख सकते हैं, छू सकते हैं महसूस कर सकते हैं, जब इंसान उन्हे दगा दे सकते है, जो जिसमे की वो भूत हैं, जिनका ना कोई शरीर है और ना कोई रूप और ना कोई रंग है, उनके वो कैसे अपने हो सकते है,
वो कहते है इंसान भूतो और उनकी दुनिया से डरते है पर सच तो ये है इंसानो की दुनिया भूतो की दिनिया से बहुत ज़्यादा दरवानी है, उसमे धोखा है, फरेब है, झूठ है, दिल और दिमाग़ में छिपा हुआ एक चोर है, लोगो का दिल कुछ और दिमाग़ कुछ और है, सबसे दरवानी है इंसानो की दुनिया, इससे अच्छी तो है भूतो की वो दिनिया जो सबसे अलग है, जहा ना कोई दुख ना कोई गम है , सबका है दिल एक जैसा और है ना कोई भेद भाव होता है वहा....
देख इंसानो की वो बेरंग बेरूख़ी दुनिया जो दूर से बहुत ही खूबसूरत और सजीली लगती है, अपनी दुनिया में लौट जाते है वो दोनों भूत, कर लेते है वो फ़ैसला नही सोचेंगे वो सपने में भी इंसानो से दोस्ती की बात, क्यों की यहा इंसान इंसान का नही है तो भूतो का क्या होगा, अपने अंदर की बुराई को भूत समझ के खुद ही डर जाता है मानव और बदनाम करता है की ये वो भूत है, असल भूत तो छिपा है उनके अपने दिल में, और जो उनके दिल में है उसे ही कभी कभी सामने देख कर तो उन्हे भी लगता है डर और इंसान कहने लगता है मैने फला जगह भूत देखा और उसे महसूस किया, इसलिए ये फैला कर की नही लौटेंगे कभी यहा वो हमेशा के लिए चले जाते हैं अपनी दुनिया में वापस छोटू और मोटू शेतान...
इस काम क लिए 2 बहुत ही समझदार भूतो को इस काम क लिए इंसानो क पास भेजा गया जिनका नाम था छोटू शेतान और मोटू शेतान, जब वो दोनो इंसानो क बीच पहुचे और वाहा अपनी छवि देखी तो खुद बेचारे डर गये, वाहा भूतो की बड़ी ही खराब छवि थी, लोग समझते थे की भूत अजीब सी शक्लो वाले और बड़े ही डरावने बेढंगे और बदसूरत से दिखने वाले होते है, जबके हक़ीकत इससे एक दम अलग थी, खूबसूरत और कम खूबसूरत, गोरा काला, जाती, धर्म, उँछ नीच, अमीर ग़रीब इत्यादि की दीवारे तो इंसानो क बीच होती है भूतो की दुनिया इससे एक दम अलग होती है,
छोटू शेतान और मोटू शेतान वाहा जा कर इंसानो को अपने बारे में कुछ समझाते इससे पहले ही इंसानो की दुनिया के रंग देख उनके होश गुम हो गये, सोचने लगे ये कहाँ आ गये हम, उन्होने देखा इंसान इंसान का खून बहा रहा है, अपने मतलब के लिए, स्वार्थ पूर्ति के लिए इंसान दूसरे इंसान का सहारा ले के उससे ईस्तमाल कर कितनी आसानी से छोड़ जाता है, बहुत रिश्तो की बात करते है ये इंसान लेकिन खुद वो रिश्तो को बदनाम कर रहा है, इंसानियत और रिश्तों की पवित्रता को अपने पेर्रों तले कुचालता है ये इंसान, साँप के ज़हर से भी ज़्यादा है एक मानव के अंदर का ज़हर जिसे वो अपने ही समुदाय में फेला रहा है,
जाती- धर्म, अमीर- ग़रीब, गोरा- कला, उँछ- नीच और ना जाने कैसी कैसी दीवारे हैं इंसानो में, इंसान कहते कुछ और है, करते कुछ और हैं और देखते कुछ और है, उनके दिल में कुछ और है, दिमाग़ में कुछ और है और ज़ुबान पे कुछ और है, उन्हे समझना और समझना शायद उस परमेश्वर के हाथ में भी नही है, तभी तो आज दुनिया इतनी बिखरी हुई है, हर तरफ़ हा हा कार है, ताकतवर कमजोर को लूट रहा है, हर तरफ विवशता और और आँसू की बहार है, जबकि उस परमेशावर् ने तो मानव को इसलिलये ताक़त और शक्ति दी थी ताकि वो कमजोर और असहाय लोगो की सहयाता कर सके, पर इंसान ने इसका ग़लत ईस्तमाल किया है, पूरी धरती आज इंसानो के अत्याचारो से घिरी हुई है, धरती रो रही है पर उसके आँसू देखने वाला और पोछने वाला कोई नही है, कोई नही है जो श्रष्टी की सबसे खूबसूरत और ज़िंदगी देने एवम सबका पालन पोषण करने वाली धरती माता के आंशु पोंछ कर उन्हे कम से कम सांत्वना ही दे सके, उसे दुखों के सागर में यू ही डूबने से बचा सके.
देख के इंसानो के हाल अब समंझ में आई छोटू और मोटू शेतान को ये बात, करते हैं कल्पना इंसान जिसे भूत मान के, दरअसल वो तो है उनके अंदर छिपा हुआ अपना पाप, अपने अंदर की बुराई को वो ही देते हैं रूप और आकर और कहते है ऐसे होते है भूत, जितना कुरूप बना के भूतो की वो कल्पना करते है सच तो ये है वो होती है उनके अंदर की बुराई, उनका मन इतना ही कुरूप होता है, जैसा जिसका मन होता है वैसा ही वो भूतों की छवि की कल्पना करने लगते हैं, और इस तरह बस वो खुद नही समझ पाते की ये तो उनका अपना मन है, क्यों की वो अपने दिल की गहराई में छिपे पाप नाम के उस भूत को नही देख पाते या फिर देखना ही नही चाहते अथवा देख कर भी अंजान बन कर अपनी बुराइयों का बोझा उन अनदेखे परलोक निवासी भूतों पे डाल देते हैं और बस कहने लगते है ये भूत ऐसे होते है.
इंसानो की ऐसे बदसूरत दुनिया को देख के छोटू और मोटू बिना दोस्ती का प्रस्ताव इंसानो के सामने रखे अपनी दुनिया में लौटने का फ़ैसला करते है, वो सोचते है जो खुद अपनो के ना हो सके वो उनके क्या होंगे, वो उनके ना हो सके जिनके साथ वो ज़िंदगी का ना कितना वक़्त बिताते है, जिन्हे वो देख सकते हैं, छू सकते हैं महसूस कर सकते हैं, जब इंसान उन्हे दगा दे सकते है, जो जिसमे की वो भूत हैं, जिनका ना कोई शरीर है और ना कोई रूप और ना कोई रंग है, उनके वो कैसे अपने हो सकते है,
वो कहते है इंसान भूतो और उनकी दुनिया से डरते है पर सच तो ये है इंसानो की दुनिया भूतो की दिनिया से बहुत ज़्यादा दरवानी है, उसमे धोखा है, फरेब है, झूठ है, दिल और दिमाग़ में छिपा हुआ एक चोर है, लोगो का दिल कुछ और दिमाग़ कुछ और है, सबसे दरवानी है इंसानो की दुनिया, इससे अच्छी तो है भूतो की वो दिनिया जो सबसे अलग है, जहा ना कोई दुख ना कोई गम है , सबका है दिल एक जैसा और है ना कोई भेद भाव होता है वहा....
देख इंसानो की वो बेरंग बेरूख़ी दुनिया जो दूर से बहुत ही खूबसूरत और सजीली लगती है, अपनी दुनिया में लौट जाते है वो दोनों भूत, कर लेते है वो फ़ैसला नही सोचेंगे वो सपने में भी इंसानो से दोस्ती की बात, क्यों की यहा इंसान इंसान का नही है तो भूतो का क्या होगा, अपने अंदर की बुराई को भूत समझ के खुद ही डर जाता है मानव और बदनाम करता है की ये वो भूत है, असल भूत तो छिपा है उनके अपने दिल में, और जो उनके दिल में है उसे ही कभी कभी सामने देख कर तो उन्हे भी लगता है डर और इंसान कहने लगता है मैने फला जगह भूत देखा और उसे महसूस किया, इसलिए ये फैला कर की नही लौटेंगे कभी यहा वो हमेशा के लिए चले जाते हैं अपनी दुनिया में वापस छोटू और मोटू शेतान...
ek
baar ki baat hai, bhooto ki ek sabha huii (meeting), uss mein mudda ye
rakha gaya ki bhoot insaano k beech apne chhavi (image) kaise sudhaare.
kaafi sochne vichaarne k baad ye nishchay (decide) kiya gaya ki unme se
sabse honhaar bhoot insaano k beech jaaynge aur unhe bataynge ki jaise
wo sochte hain unke baare mein waise wah bilkul bhi nhi hai, unme aur
insaano mein sirf shareer ka fark hai, insaano k paas shareer hota hai
aur bhooto k paas nhi,
iss
kaam k liye 2 bahut hi samjhdaar bhooto ko iss kaam k liye insaano k
paas bheja gaya jinka naam tha Chhotu Shetaan aur Motu Shetaan, jab wo
dono insaano k beech pahuche aur waha apnee chhavi dekhi to khud
bechaare darr gaye, waha bhooto ki badi hi kharab chhavi thi, log
samjhte the ki bhoot ajeeb c shaklo wale, aur bade hi darawne bedhange
aur badsoorat se dikhne wale hote hai, jabke hakikat isse ek dam alag
thi, khoobsurat aur kam khoobsurat, gora kaala, jaati, dharm, unch
neech, ameer gareeb ityaadi ki deeware to insaano k beech hoti hai
bhooto ki duniya isse ek dam alag hoti hai,
Chhotu
Shetaan aur Motu Shetaan waha ja kar insaano ko apne baare mein kuch
samjhaate isse pahle hi insaano ki duniya k rang dekh unke hosh gum ho
gaye, sochne lage ye kahan aa gaye hum, unhone dekha insaan insaan ka
khoon baha raha hai, apne matlab k liye, swaarth sidhhi k liye insaan
doosre insaan ka sahara le k usse istmaal kar kitnee aasani se chhod
jata hai, bahut rishto ki baat karte hai ye insaan lekin khud wo rishto
ko badnaam kar raha hai, insaaniyat aur rishton ki pavitrata ko apne
perron tale kuchalta hai ye insaan, saanp ke zahar se bhi jyada hai ek
maanav k andar ka zahar jise wo apne hi samudaaye mein fella raha hai,
jaati-
dharm, ameer- gareeb, gora- kala, unch- neech aur na jaane kaisee
kaisee deeware hain insaano mein, insaan kahte kuch aur hai, karte kuch
aur hain aur dekhte kuch aur hai, unke dil mein kuch aur hai, dimaag
mein kuch aur hai aur zubaan pe kuch aur hai, unhe samjhna aur samjhana
shayad uss parmeshwar k haath mein bhi nhi hai, tabhi to aaj duniya
itnee bikhri huii hai, har tarf haa haa kaar hai, taakatwar kamjor ko
loot raha hai, har taraf vivashta aur aur aansu ki bahaar hai, jabki uss
parmeshawr ne to maanav ko islilye taakat aur shakti di thi taaki wo
kamjor aur ashaay logo ki madadd kar sake, par insaaan ne iska galat
istmaal kiya hai, poori dharti aaj insaano k atyaachaaro se ghiri huii
hai, dharti ro rahi hai par uske aansu dekhne wala koi nhi hai, koi nhi
hai jo shrishti ki sabse khoobsurat aur zandagi dene aur sabka paalan
poshan karne wali dharti maata k aanshu poch sake, usse dhukho k saagar
mein yu hi doobne se bacha sake.
dekh k insaano k haal ab samjh mein aayi Chhotu aur Motu Shetaan k ye
baat, karte hain kalpna insaan jise bhoot maan k, darasal wo to hai unke
andar chhupa huaa apna paap, apne andar ki burai ko wo hi dete hain
roop aur aakar aur kahte hai aise hote hai bhoot mere yaar, jitna
kuroop bana k bhooto ki wo kalpna karte hai sachh to ye hai wo hoti hai
unke anadar ki burai, unka mann itnaa hi kuroop hota hai, jaisa jiska
mann hota hai waisa hi wo bhooton ki chhavi ki kalpna karne lagte hain,
aur iss tarah bas wo khud nhi samjh paate ki ye to unka apna mann hai,
kyon ki wo apne dil ki gehrai mein chhipe paap naam ke uss bhoot ko nahi
dekh paate ya fir dekhna hi nhi chahhte athwa dekh kar bhi anjaan ban
kar apni buraiyon ka bojha unn andekhe parlok niwaasi bhooton pe daal
dete hain aur bas kahne lagte hai ye bhoot aise hote hai wo.
insaano ki aise badsoorat duniya ko dekh k Chhotu aur Motu bina dosti
ka prastaav insaano k saamne rakhe apni duniya mein lautne ka faisla
karte hai, wo sochte hai jo khud apno k na ho sake wo unke kya honge, wo
unke na ho sake jinke saath wo zindagi ka na kinta waqt bitaate hai,
jinhe wo dekh sakte hain, chhu sakte hain mehsoos kar sakte hain, jab
insaan unhe daga de sakte hai, jo jisme ki wo bhoot hain, jinka na koi
shareer hai aur na koi roop aur na koi rang hai, unke wo kaise apne ho
skte hai,
wo kahte hai insaan bhooto aur unki duniya se darte hai par sachh to ye
hai inaasano ki duniya bhooto ki diniya se bahut jyaada darwani hai,
usme dhokha hai, fareb hai, jhooth hai, dil aur dimaag mein chhipa ek
chhor hai, logo ka dil kuch aur dimag kuch aur hai, sabse darwani hai
insaano ki diniya, isse achchhi to hai bhooto ki wo diniya jo sabse
alag hai, jaha na koi dukh na koi gam hai , sabka hai dil ek jaisa aur
hai na koi bhed bhaav waha....
dekh insaano ki wo berang berukhi duniya jo door se bahut hi khoobsurat
aur sajeeli lagti hai, apni duniya mein laut jaate hai wo donon bhoot,
kar lete hai wo faisla nhi sochenge wo sapne mein bhi insaano se dosti
ki baat, kyon ki yaha insaan insaan ka nhi hai to bhooto ka kya hoga,
apne andar ki burai ko bhoot samjh k khud hi dar jaata hai maanav aur
badnaam karta hai ki ye wo bhoot hai, asal bhoot to chhipa hai unke apne
dil mein, aur jo unke dil mein hai usse hi kabhi kabhi saamne dekh kar
to unhe bhi lagta hai darr aur insaan kahne lagta hai maine falaa jagah
bhoot dekha aur usse mehsoos kiya, isliye ye faila kar ki nhi lautenge
kabhi yaha wo humesha k liye chale jaate hain apni duniya mein waapas
chhotu aur motu shetaan...
No comments:
Post a Comment