Tuesday, 19 August 2014

हर किसी से अंजान हूँ मैं

कितनी नादान हूँ मैं, हर किसी से अंजान हूँ मैं,  

रूज टूट कर बिखरती हूँ मैं, लुटाती हूँ हर कही ज़िंदगी अपनी मैं,

  समझती हूँ हर किसी को अपना मैं, वार्ती हूँ अपनी खुशी सभी पर मैं, 

देती हूँ प्यार  सभी को मैं, फिर भी दुनिया के लिए के बेज़ुबान खिलोना हूँ मैं, 

 ये माना दुनिया के दाँव पेंच से  दूर हूँ मैं, शायद इसलिए आज इतनी मज़बूर हूँ मैं,

 अकेली और तन्हा इन रास्ते पे खड़ी हूँ मैं, सच ही तो है कितनी नादान हूँ मैं, 

हर किसी से अंजान हूँ मैं, हर किसी से अंजान हूँ मैं.......

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