Tuesday, 25 October 2016

ईश्वर वाणी-१५९,ईश्वर प्राप्ती के मार्ग

ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों मैंने तुम्हें मुझे प्राप्त करने के अनेक मार्ग बताये है, तुम जिस भी मार्ग को चुनो मुझे ही पाओगे,
हे मनुष्यों यु तो मैने देश/काल/परिस्तिथी के अनूरूप मानव व प्राणी जाती के कल्याण हेतू ही जन्म लिया वहॉ के अनूरूप ही (देश/काल/परिस्तिथी) जगत व प्राणी कल्याण की शिछा दी,

हे मनुष्यों कही पर मैंने धर्म की रछा हेतु युध्ध करवाया तो कही हिंसा का विरोध करा तो कही बलि प्रथा की बात कही, हे मनुष्यों मैंने ये सभी मार्ग तुम्हारे लिये ही बनाये है,

हे मनुष्यों ये जान लो तुम्हारी मंज़िल संसारिक भौतिकता मैं नही अपितु मुझमैं है, अर्थात जिस भी मार्ग पर चलो पर मुझे ही तुम पाओ,

ये बिल्कुल वैसा ही है किसी व्यक्ति की मंज़िल एक है पर रास्ते अनेक, कोई समतल रास्ता तो कोई बीहड़, कोई बहुत ऊँचा तो कोई बहुत नीचा, कोई हरा-भरा तो कोई सूखा वीरान, कही नदी तो कही पथरीली भूमी, कही पुष्प है मार्ग मैं तो कही कॉटे हैं रास्ते मैं, हे मनुष्यों अपनी मंजिल पाने के लिये तुम अपनी सुविधा के अनसार जैसे चुनते हो और जो रास्ता तुम्हे सरल लगा जिस पर चल कर मंजिल को तुमने पाया वही मार्ग तुम औरों को भी बताते हो, ये बात उन पर निर्भर है कि कौन सा रास्ता वो चुनते है,

हे मनुष्यों जो तुम्हारे बताये मार्ग पर चले वो भी मजिल तक पहुँचे और जिन्होने दूसरा रास्ता चुना वो भी,

हे मनुष्यों यहॉ पथिक तुम हो, रास्ते वो हैं जो देश,काल,परिस्तिथी के अनुसार हर स्थान पर मौजूद हैं और यहं मज़िल मैं हूँ, अर्थात जिस भी प्रकार जिस भी नाम स्वरूप मैं मुझे पाने का प्रयास करो पाओगे मुझे, पर मन मष्तिक और आत्मा को पावन रखना निश्चित मुझे पाओगे!!!!


तुम्हारा कल्याण हो

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