हमारा देश कितना विशाल है, अनेक रीती रिवाज़ और संस्क्रति का यहॉ समागम है, अपनी अपनी आस्था के अनुसार यहॉ कितने तीज त्यौहार व्रत उपवास यहॉ किये जाते है,
मैंने बहुत समय से ये नोटिस किया है हमारे जितने भी त्यौहार एंव व्रत उपवास है वो सभी पुरूषों के कल्याण और उनकी तरक्की के लिये ही है, एक भी व्रत उपवास या त्यौहार स्त्री के लिये नही है,
यहॉ कुछ लोग कहेंगे नवरात्रै तो पूरी तरह लड़कियों को समर्पित होते है, नारी की पजा होती है और तो और पुरुष खुद भी उसके आगे शीश नवाता है, फिर सभी पुरुष प्रधान व्रत उपवास एंव त्यौहार कैसे हुये??
उन्हें मेरा जवाब केवल इतना ही है नवरात्रौ की पूज व्रत आदि मैं लोग केवल पुरुष की कामना करते है, कोई पुत्र पाने के लिये, कोई पति पाने के लिये, कोई भाई पाने के लिये, पुरुष की तरक्की के लिये, लम्बी आयु के लिये और भी कितनी पुरूषवादी मनोकामना पूर्ति के लिये कर्म कान्ड किये जाते है,
पर स्त्री जो जगत की जननी है उसे इस पुरुषवादी सोच ने धार्मिक क्रत्यो मैं सबसे पिछड़ा दबा कुचला स्थान दिया है, तभी तो कोई पूजा व्रत उपवास मॉ, बहन, पत्नी की लम्बी आयु स्वास्थय तरक्की विकास के लिये नही बनाये गये, कारण नारी को पुरुषो द्वारा दोयम दर्जा देना,
मुझे हेरानी होती है बरसौ से पुरुषवादी इस सोच को महिलायै अपने ऊपर बड़े गर्व से ढोती आयी है और ढो रही है, न अतीत मै न वर्तमान मै महिलायें इसके खिलाफ नही गयी, आजकल की पड़ी लिखी आत्मनिर्भर महिला भी इसके खिलाफ जाने की हिम्मत नही करती कारण प्राचीन काल से चली अंधस्रध्धा, जिसके खिलाफ वो जाने की हिम्मत नही कर सकती,
ये कुछ मूलभूत कारण है वर्तमान मै नारी की इस दुर्दशा के और काफी हद तक नारी भी इसकी जिम्मेदार है जिसने अपने ऊपर हुये इन अत्याचारों के विरूध कोई आवाज़ नही उठाईं और नारी पुरुषों की केवल दासी बन कर रह गयी!!
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Archana mishra
मैंने बहुत समय से ये नोटिस किया है हमारे जितने भी त्यौहार एंव व्रत उपवास है वो सभी पुरूषों के कल्याण और उनकी तरक्की के लिये ही है, एक भी व्रत उपवास या त्यौहार स्त्री के लिये नही है,
यहॉ कुछ लोग कहेंगे नवरात्रै तो पूरी तरह लड़कियों को समर्पित होते है, नारी की पजा होती है और तो और पुरुष खुद भी उसके आगे शीश नवाता है, फिर सभी पुरुष प्रधान व्रत उपवास एंव त्यौहार कैसे हुये??
उन्हें मेरा जवाब केवल इतना ही है नवरात्रौ की पूज व्रत आदि मैं लोग केवल पुरुष की कामना करते है, कोई पुत्र पाने के लिये, कोई पति पाने के लिये, कोई भाई पाने के लिये, पुरुष की तरक्की के लिये, लम्बी आयु के लिये और भी कितनी पुरूषवादी मनोकामना पूर्ति के लिये कर्म कान्ड किये जाते है,
पर स्त्री जो जगत की जननी है उसे इस पुरुषवादी सोच ने धार्मिक क्रत्यो मैं सबसे पिछड़ा दबा कुचला स्थान दिया है, तभी तो कोई पूजा व्रत उपवास मॉ, बहन, पत्नी की लम्बी आयु स्वास्थय तरक्की विकास के लिये नही बनाये गये, कारण नारी को पुरुषो द्वारा दोयम दर्जा देना,
मुझे हेरानी होती है बरसौ से पुरुषवादी इस सोच को महिलायै अपने ऊपर बड़े गर्व से ढोती आयी है और ढो रही है, न अतीत मै न वर्तमान मै महिलायें इसके खिलाफ नही गयी, आजकल की पड़ी लिखी आत्मनिर्भर महिला भी इसके खिलाफ जाने की हिम्मत नही करती कारण प्राचीन काल से चली अंधस्रध्धा, जिसके खिलाफ वो जाने की हिम्मत नही कर सकती,
ये कुछ मूलभूत कारण है वर्तमान मै नारी की इस दुर्दशा के और काफी हद तक नारी भी इसकी जिम्मेदार है जिसने अपने ऊपर हुये इन अत्याचारों के विरूध कोई आवाज़ नही उठाईं और नारी पुरुषों की केवल दासी बन कर रह गयी!!
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