कहते हैं पहला प्यार ज्यादातर लोंगो के नसीब में नही होता, बड़े खुशनसीब होते है वो लोग जिनका हमसफर उनका पहला प्यार बनता है।
लेकिन ये भी सच है चाहे जो भी हो, उस रिश्ते में चाहे जितने भी दुःख मिले हो उस रिश्ते को जीवन भर भुला नही पाते क्योंकि वो रिश्ता पूरी तरह भावनाओं से और दिल की गहराइयों से बना होता है, ये इतना गहरा होता है कि सामने वाला/वाली हमें धोखा दे रहा/रही है ये जानते हुए भी हम उसको चाहते हैं, एक उम्मीद आखिर तक रखते हैं कि आखिर एक दिन उसे अपनी गलती का अहसास होगा और फिर शायद वो हमारी अहमियत समझ पाए और यदि छोड़ के कोई चला गया है तो उम्मीद हमेशा रहती है कि काश वो एक दिन लौट आये, पर वो लौट के नही आता।
उसके बाद चाहे शादी कर लो या फिर दूसरे रिश्ते में आ जाओ, लाख कोशिश कर लो वो पहले वाली बात नही आती भले ये रिश्ता उस रिश्ते से कितना खूबसूरत हो, कारण की फिर हम दिल और भावनाओं से ऊपर दिमाग से रिश्ते बनाने लगते हैं क्योंकि पहले दिल से बनाये रिश्ते ने हमे धोखा दिया और उस अनुभव के आधार पर दूसरा रिश्ता 50%दिल से तो 50% दिमाग से बनता है, किसी किसी के लिए दिमाग का प्रतिशत 50% से ज्यादा का भी हो सकता है, तभी दूसरे रिश्ते में धोखे की संभावना पहले की तुलना में कम ही होती है, साथ ही थोड़ा स्वार्थ, थोड़ा लाभ;हानि और समय, उमर का तकाजा, लोगों की परख का अनुभव बहुत कुछ सिखा जाता है।
लेकिन कहि न कही उस अधूरे से प्यार की टीस दिल में आजीवन रहती है भले आज ज़िन्दगी में सब कुछ हो, ये बसन्त का मौसम, ये सर्दी और ये गर्मी का मौसम, बस उस अधूरे से प्यार का अहसास कराता है, खास तौर से पहले मिलन और सम्पर्क को याद दिलाता है।
ये सच है जिसने धोखा दिया उसको ये सब याद नही आता क्योंकि ये तो फितरत थी उसकी धोखे की लेकिन जिसने दिलसे और मन की गहराइयों से जिसे चाहा वो उस चालबाज़ को कभी भूल नही सकता क्योंकि ये लड़कपन का पहला प्यार जो था सच्चा, निःस्वार्थ, कोमल, पवित्र प्रेम बिल्कुल राधा कृष्ण के प्रेम की तरह निश्छल और सच्चा।
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