किसी ने पूछा हमसे ये प्रेम रोग कैसे होता है, है ये लाइलाज़ या ये ठीक भी होता है??
हमने
उसे अपने पास बुलाया और बड़े ही प्यार से समझया, प्रेम का वायरस है बड़ा
पुराना, बड़े ही चतुराई से बुना गया है इसकी आकृति का ताना-बाना, आज कल
आधुनिकता का है ज़माना इसलिए और भी सहज हो गया है इसका हर किसी के घर में
घुस आना,
सुन कर हमारी ये बात वो हमसे पूछने लगे क्या है इसका मतलब जरा खुल भी कहिये??
हमने
शुरू किया फिर से उन्हें समझाना, इश्क का ये वायरस चला आता है आज कल
टेलीविज़न से, सिनेमा से और तो और आज कल ये अनेक वायरस कि राजधानी इंटरनेट
महारानी और मोबाइल देवता से आशीर्वाद प्राप्त कर मानव को अपने आधिपत्य में
ले लेता है, और यदि कोई जाने अनजाने इनसे बच भी गया तो मोहब्बत से भरा कोई
उपन्यास उसे अपनी गिरफ्त में ले लेता है और यदि फिर भी मानव का इम्यून
सिस्टम मज़बूत हुआ और इन सबसे उसका कुछ न हुआ तो दोस्त और जान्ने वालों के
द्वारा ये कभी न कभी तो ज़िन्दगी में दस्तक दे ही देता है और मानव को अपनी
गिरफत में ले ही लेता है,
सुन कर हमारी बात वो फिर
से पूछने लगे अजी महाराज आप जरा अब ये भी तो बताइये क्या है इन सबसे बचने
का कोई राज़, क्या है आखिर इस बीमारी से निबटने का इलाज़, क्या है इस बिमारी के लक्षण और क्या है इस बीमारी से बचने कि कोई दवा या इंजेक्शन????
हमने
फिर शुरू किया उनसे इस विषय पर फिर से बतियाना और शुरू किया समझाना, प्रेम
का वायरस है बड़ा पुराना, आदि काल से आज तक इस ये है लाइलाज़, दुनिया के
किसी भी वेध के पास नहीं है कोई औषधि और बूटी जिससे दूर हो सके ये बीमारी
और हो सके इसका इलाज़, रही बात लक्षणो कि तो शुरुआत में प्रेम रोगी बड़ा ही
खुश-खुश रहता है, है रहता जैसे सपनो कोई नशेड़ी वैसे ही प्रेम रोग पीड़ित
रहता है, अपने ख़्वाबों को हो हकीकत समझता है और हकीकत से वो कोसो दूर रहता
है, है दुनिया कि हर ख़ुशी उसकी मुठी में हर वक्त बस उसे ये ही वहम रहता है,
लेकिन
जैसे-जैसे ये रोग होता जाता है पुराना, फैलता जाता है इस वायरस का असर और
बना देता है दिल और दिमाग को गिरफ्त में अपनी ले कर बेअसर, तड़प ऐसी देता है
ये रोग इश्क का कि न तो जीने को हसरत रहती है आशिक को और न ही मौत ही आघोष
में समाती है ज़िन्दगी , भटकता रहता है आशिक अपने दिलबर कि एक झलक देखने के लिए, थक
जाती है नज़रे आशिक कि उसके एक दीदार के लिए और एक दिन जब उनसे दीदार होता
है वो कहते हैं हम तो है अब किसी और के हो लिए,जाओ तुम भी हो जाओ किसी और
के, खो जाओ किसी और कि बाहों में और भूल जाओ हमे, और जो तुम न कर सको ये तो
लो ये छुरा छेद लो इसे अपने सीने में ताकि तुम चैन से मर सको और मुझे मेरी
ये ज़िन्दगी मुझे जीने दो, जो भटक रहे हो तुम मेरी यादों में इधर-उधर, जो
ढून्ढ रहे हो तुम मुझे हर जगह और इस दिल पर, भुला दो मुझे और चैन से मुझे
जीने दो, तुम भले मर जाओ पर है कसम तुम्हे मेरी मुझे मेरी ये ज़िन्दगी जीने
दो,
सुन कर मेहबूब कि ये बात क्या गुज़रती है आशिक के दिल पर लेकिन नहीं समझता मेहबूब ये बात, छोड़ उसे तनहा अकेले वो दूर बहुत चला जाता है, रह जाता है केवल आशिक अकेला या फिर उसके साथ उसकी आँखों से बहता ये अश्क ही निभाता है,
सुन
कर हमारी बात फिर वो पूछने लगे क्या इस दर्द भरी बीमारी से आशिक कभी आज़ाद
नहीं हो पाता है, क्या झेलना पड़ता है ये दर्द उसे अपने सीने पर या कोई मरहम
भी कोई वो लगता है??
हमने उसे अपने करीब बुलाया और
बड़े ही प्यार से समझाया, है तो ये बीमारी यधपि लाइलाज़ किन्तु अपनी ही
आत्मशक्ति से व्यक्ति पा सकता है इससे मुक्ति और कर सकता है खुद पर और
अपने परिवार पर उपकार और बन सकता है एक दम तंदुरुस्त पा कर इस बीमारी से
निज़ात,
फिर उन्होंने पूछा किन्तु कैसे????
हमने
उन्हें बताया, भूल कर अतीत कि बातो यदि बढ़ते रहो आगे, खेल ज़िन्दगी का समझ
कर हारी हुई एक बाज़ी मान कर बढ़ाते रहो अपने कदम हर दम निश्चित ही ये बीमारी
धीरे-धीरे दूर होगी, भूली हुई इस हारी बाज़ी के बाद एक दिन निश्चित ही
तुम्हारी जीत होगी,
ये माना मुश्किल इस दिल को समझाना, ये
माना मुश्किल है उसे भूल जाना, शराब के नशे से भी गहरा है ये इश्क का नशा,
दिल टूट कर बिखर जाता है हरज़ाई के जाने पर लेकिन नशा ये कम्बख्त नहीं जाता
उसकी यादों के साथ हर घडी हर लम्हा डुबाये रहता है, ख़त्म हो जाती है शराब
भी कभी बोतल से पर ये इश्क का नशा नहीं जाता कम्भख्त आशिक कि बेवफाई से,
टूटे
हुए दिल के टुकड़ो को जोड़ कर जो फिर से जीने को उठ खड़ा हो वो ही इस बीमारी
को दे सकता है मात और बन सकता है एक बिसात इस बीमारी के मारों के लिए, जो
चाहते है मरना अपने आशिक के गम में देख ऐसे जीने को मिलेगी उन्हें भी आगे
बिन उन बेवफा आशिक के जीने की प्रेरणा, वो भी शायद जीना चाहे जो बिन आशिक
के मौत को है गले लगाना चाहे,
है इस बीमारी का इलाज़
खुद मानव के पास, और जो नहीं कर सकते ऐसा वो लगा लेते है मौत को गले और
भूल जाते उस बेवफा आशिक के लिए अपने घर परिवार को जिनके झांव के तले अब है
वो पले. कुछ दिनों के इस झूठे प्रेम के खातिर बरसों का वो प्रेम भूल जाते
हैं, इश्क के इस वायरस के काटने के कारण अपने के उस दुलार को भूल जाते हैं,
माँ कि ममता नहीं दिखती उन्हें पिता का दुलार नहीं भाता है भाई के डांट में
छिपा उसका प्यार भी नज़र नहीं आता है बहन बोली नहीं भाति है जब उस बेवफा
आशिक याद है उन्हें आती,
ये इश्क का वायरस है यारो ,
इसके
बाद हमने उनसे कहा ऐ दोस्त जो नहीं लगाते गले मौत को अपने परिवार के लिए
लेकिन यादों में खोये रहते है हर वक्त उस बेवफा प्यार के लिए ऐसे लोगों कि
दशा बड़ी ही चिंतनीय होती है, ऐसे लोग ही अक्सर कहते है ये इश्क का वायरस है
जिसमे ज़िन्दगी चाहते है हम पर मौत भी नहीं मिलती है क्योंकि ये इश्क का
वायरस है यारो ये इश्क का वायरस है यारों....
धन्यवाद
अर्चू