Wednesday, 24 September 2014

I LOVE YOU SO MUCH MY DEAR FRIEND

"friendship is a relation of true love without 

say 'I LOVE YOU SO MUCH MY DEAR 

FRIEND',"


GOOD MORNING MY FRIENDS

खुश हूँ बहुत तेरा साथ पा कर

"खुश हूँ बहुत तेरा साथ पा कर,
खुश हूँ बहुत तेरे साथ आ कर,
ना करना सितम तुम बेवफ़ाई का मुझपर,
ना जी सकेंगे हम कभी तुमसे जुड़ा हो कर,"

होता है प्यार क्या मैने जाना ना था

"होता है प्यार क्या मैने जाना ना था,
होता है यार क्या मैने पहचाना ना था,
दिल में बस्ती है सूरत आशिक की, 
इश्स अहसास से दिल मेरा कितना अंजाना  था,
आज बैठ अकेले में सोचती हूँ मैं,
वो पल कितना सुहाना था,
मेरा दिल जब हर रुसवाई से अंजाना  था,
सच से दूर वो ख्वाबो भरा हसीन लम्हा 
मेरी ज़िंदगी में कितना यादगराना था.........."

तुम्हे कितना चाहते हैं

"तुम्हे क्या बताए की तुम्हे कितना चाहते हैं, 
अपनी हर खुशी में बस तुम्हे ही हम पाते हैं,-२ 

हैं बिन तुम्हारे अब ना तो मेरी ये ज़िंदगी, 
ना है बिन तुम्हारे मेरे लाबून पे हस्सी-२ 

,आए मेरे हमनसिन तुम्हे क्या समझाए की 
बिन तुम्हारे ना जी सकेंगे अब तो हम कहीं,-२ 

आए मेरे दिलबर बिन तुम्हारे हैं मेरी ज़िंदगी में 
अब तो सिर्फ़ गम ही गम बस यहीं,-२ 

तुम्हे क्या बताए की तुम्हे कितना चाहते हैं,
 अपनी हर खुशी में बस तुम्हे ही हम पाते हैं,-२ "

Tuesday, 19 August 2014

हर किसी से अंजान हूँ मैं

कितनी नादान हूँ मैं, हर किसी से अंजान हूँ मैं,  

रूज टूट कर बिखरती हूँ मैं, लुटाती हूँ हर कही ज़िंदगी अपनी मैं,

  समझती हूँ हर किसी को अपना मैं, वार्ती हूँ अपनी खुशी सभी पर मैं, 

देती हूँ प्यार  सभी को मैं, फिर भी दुनिया के लिए के बेज़ुबान खिलोना हूँ मैं, 

 ये माना दुनिया के दाँव पेंच से  दूर हूँ मैं, शायद इसलिए आज इतनी मज़बूर हूँ मैं,

 अकेली और तन्हा इन रास्ते पे खड़ी हूँ मैं, सच ही तो है कितनी नादान हूँ मैं, 

हर किसी से अंजान हूँ मैं, हर किसी से अंजान हूँ मैं.......

Monday, 18 August 2014

अकेलापन मुझे लगता है

भीड़ में चलते हुए भी कभी कभी क्यों अकेलापन मुझे लगता है 

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 


बैठ अकेले   मैं सोचती हूँ मैं आखिर मेरी वफाओ के बाद भी 


 क्यों हर शख्स   मुझे अपनी ज़िन्दगी से निकलता है,


ये माना सौ कमिया है मुझमे पर क्या वो पूर्ण है 

जो हर बात पे मेरी कमिया ही हर बार निकलता है,


जो बुला के अपने पास मुझे बीच मझधार में छोड़ जाता है 

अपना कह जो किसी और को दिल में बसाता है 


शायद ये ही दुनिया की रीत है, शायद ये ही कलियुग की प्रीत है 

भुला के प्यार और वफ़ा किसी और को अपना बनाते हैं,


प्यार में खुद को भुला देने वाले उमर भर बस तनहा और अकेले रह जाते हैं,

ये ही वज़ह है शायद  क्यों अकेलापन मुझे लगता है

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 

 हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये  दिल को मेरे सालता है 

Monday, 11 August 2014

दूर हो कर भी पास .....तुम हो

"दूर हो कर भी पास .....तुम हो,
मेरी ज़िंदगी का अहसास .....तुम हो,
दिन के उजाले में .....तुम हो,
रातो के अंधेरो में .....तुम हो,
मेरी तो हर बात में तुम हो,
हम तो टूट के कब के बिखर जाते,
जो अगर तुम ना हमे मिल पाते,
मेरी ज़िंदगी की मंज़िल भी तुम हो रास्ता भी तुम हो,
मेरी दिल की धड़कन में तुम हो,
मेरी हर साँस में तुम हो,
तुम्हे क्या बताए ए मेरे हमनशीं मेरी तो जीने की वज़ह तुम ही तो हो ....."