भीड़ में चलते हुए भी कभी कभी क्यों अकेलापन मुझे लगता है
हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये दिल को मेरे सालता है
बैठ अकेले मैं सोचती हूँ मैं आखिर मेरी वफाओ के बाद भी
क्यों हर शख्स मुझे अपनी ज़िन्दगी से निकलता है,
ये माना सौ कमिया है मुझमे पर क्या वो पूर्ण है
जो हर बात पे मेरी कमिया ही हर बार निकलता है,
जो बुला के अपने पास मुझे बीच मझधार में छोड़ जाता है
अपना कह जो किसी और को दिल में बसाता है
शायद ये ही दुनिया की रीत है, शायद ये ही कलियुग की प्रीत है
भुला के प्यार और वफ़ा किसी और को अपना बनाते हैं,
प्यार में खुद को भुला देने वाले उमर भर बस तनहा और अकेले रह जाते हैं,
ये ही वज़ह है शायद क्यों अकेलापन मुझे लगता है
हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये दिल को मेरे सालता है
हैं सभी साथ मेरे फिर क्यों सूनापन ये दिल को मेरे सालता है