ये ज़िन्दगी मेरी क्यों ये मौके बार-बार देती है, ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है,
हम तो ज़िन्दगी नाम कर देते हैं उन्हें दुनिया अपनी मान कर पर वो धोखा दे कर चले जाते हैं हमे अपनी शान समझ कर,
जिसे भी मानते हैं अपना वो ही क्यों बन जाता है बेगाना, शायद रिश्ते बनाने में कमी कही मुझसे ही हो जाती है या फिर रिश्ते निभाने में गलती कही मुझसे ही हो जाती है,
शायद तभी हर दफा लबों पे मेरी मुश्कान की जगह आँखों में आँसू हर बार ये ज़िन्दगी मेरी मुझे दे जाती है,
शायद तभी ये ज़िन्दगी मेरी ये मौके बार-बार देती है, ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है,
ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है
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