ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों तुम सत्संग करते हो, प्रवचन कहते हो सुनते हो, आध्यात्म की बात कहते और सुनते हो किंतु इसका लाभ तुम्हारे जीवन मैं क्या है तुम्हें पता भी है!!
आध्यात्म व्यकिति को मानवता की शिछा देता है, सभी प्रकार के भेग-भाव से दूर मानव को मुझसे जोड़ता है! तुम्हें मेने क्यौं धरती पर भेजा, तुम्हें क्या करने यहॉ भेजा, तुम कौन हो, तुम्हारा वास्तविक लक्श्य क्या है, संसार मैं तुम्हारा क्या और कितना योगदान होगा, मानव धर्म का प्रचार कैसे करोगे, अग्यानता मिटा कर ग्यान का दीपक कैसे प्रज्जवलित करोगे ये सब तुम्हें आध्यात्म से पता चलता है!!
इसके साथ सही अर्थ मैं मानवता की शिक्छा दे कर नैतिकता के पथ पर चलते हुये अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने की प्रेरणा देता है!
हे मनुष्यों तुम धार्मिक पुस्तकें पड़ते हो उनसे भी तुम्हें मानवता की शिक्छा मिलती है, विपरीत परिस्तिथी मैं भी समभलने की प्रेरणा मिलती है, इसलिये आध्यात्म की शिक्छा अतिआवश्यक है जो मानव को उसकी देह से नही अपितु कर्म से मानव बनाती है!
जैसे तुम पाठशाला मैं व विश्वविध्यालय मैं उचित शिक्छा प्राप्त कर अच्छी नौकरी व आय की इच्छा रखते हो और प्राप्त भी करते हो वैसे ही आध्यात्म तुम्हें तुम्हारी आत्मा की तरक्की करता है, उसे श्रेष्ट से सर्वश्रेष्ट बनाता है!
हे मनुष्यों इसलिये आध्यात्म को तुम आत्मसात करो, उसे केवल सुनकर भूलने और फिर सुनने के लिये नही अपितु उस पथ पर चलने के लिये सुनो, यदि ऐसा तुम करोगे तो निश्चित ही खुद को जान लोगे और खुद को जान लिया तो मुझे भी जान लोगे, मैं परमेश्वर!!
कल्याण हो
आध्यात्म व्यकिति को मानवता की शिछा देता है, सभी प्रकार के भेग-भाव से दूर मानव को मुझसे जोड़ता है! तुम्हें मेने क्यौं धरती पर भेजा, तुम्हें क्या करने यहॉ भेजा, तुम कौन हो, तुम्हारा वास्तविक लक्श्य क्या है, संसार मैं तुम्हारा क्या और कितना योगदान होगा, मानव धर्म का प्रचार कैसे करोगे, अग्यानता मिटा कर ग्यान का दीपक कैसे प्रज्जवलित करोगे ये सब तुम्हें आध्यात्म से पता चलता है!!
इसके साथ सही अर्थ मैं मानवता की शिक्छा दे कर नैतिकता के पथ पर चलते हुये अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने की प्रेरणा देता है!
हे मनुष्यों तुम धार्मिक पुस्तकें पड़ते हो उनसे भी तुम्हें मानवता की शिक्छा मिलती है, विपरीत परिस्तिथी मैं भी समभलने की प्रेरणा मिलती है, इसलिये आध्यात्म की शिक्छा अतिआवश्यक है जो मानव को उसकी देह से नही अपितु कर्म से मानव बनाती है!
जैसे तुम पाठशाला मैं व विश्वविध्यालय मैं उचित शिक्छा प्राप्त कर अच्छी नौकरी व आय की इच्छा रखते हो और प्राप्त भी करते हो वैसे ही आध्यात्म तुम्हें तुम्हारी आत्मा की तरक्की करता है, उसे श्रेष्ट से सर्वश्रेष्ट बनाता है!
हे मनुष्यों इसलिये आध्यात्म को तुम आत्मसात करो, उसे केवल सुनकर भूलने और फिर सुनने के लिये नही अपितु उस पथ पर चलने के लिये सुनो, यदि ऐसा तुम करोगे तो निश्चित ही खुद को जान लोगे और खुद को जान लिया तो मुझे भी जान लोगे, मैं परमेश्वर!!
कल्याण हो
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