ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों संसार का प्रथम तत्व मैं हूँ, संसार का प्रथम जीवन मैं हूँ, संसार का प्रथम दिन और रात मैं हूँ, संसार का प्रथम युग अथवा काल मैं हूँ, संसार का प्रथम वर्ष मैं हूँ, संसार की प्रथम रचना मैं हूँ, संसार की प्रथम इच्छा मैं हूँ, संसार की प्रथम आत्मा मैं हूँ, संसार की प्रथम स्वास में हूँ, प्रथम सोच में हूँ, प्रथम रौशनी में हूँ, प्रथम रंग मैं हूँ, संसार का प्रथम जल में हूँ, संसार का आदि में ही हूँ मैं ईश्वर हूँ किन्तु मैं अंत नहीं हूँ, सच तो ये है अंत श्रष्टि में कही नहीं है किन्तु शुरुआत अवश्य है।
"एक बालक जिसके पास उसके माता पिता सगे संबंधियो द्वारा दिए अनेक खिलोने है, प्रतिदिन वो उनसे खेलता है, जब उसका जी भर जाता है तब सभी वो खिलोने एक टोकरी में डाल कर एक तरफ रख देता है ताकि अगली बार फिर इनसे खेल सके, और इस प्रकार अपने खिलोने संभाल के रख देता है।"
हे मनुष्यों उस बालक का खिलोंनो का इस प्रकार खेलने के बाद बंद करके रखने का अभिप्राय ये तो नहीं हो सकता की बच्चे ने सदा के लिये खेलना बंद कर दिया है, अपितु वो बाद में इनसे खेलेगा अभी तो कुछ समय के लिये खेलना बंद इसलिए किया की या तो वह थक चूका था अथवा उसे अब इस खेल में आनंद की अनुभूति नहीं हो रही थी, किन्तु दोबारा जब वह खेलेगा फिर नई ऊर्जा और जोश के साथ जिससे उसे आनंद की अनुभूति की भी प्राप्ति होगी।
हे मनुष्यों वेसे ही संसार के साथ में करता हूँ, समस्त संसार, गृह नक्षत्र धरती आकाश जीव जन्तु सब मेरी ही क्रीड़ा का ही तो एक भाग हैं, जिसे तुम अंत समझते हो वो तो वापस उस टोकरी में मैं डाल देता हूँ ताकि बाद में उससे खेल सकूँ, इस प्रकार जिसे तुम प्रलय और श्रष्टी का अंत समझते हो वो तो उस बालक के समान ही है जो अपने खेल के बाद अपने सभी खिलौने टोकरी में डाल देता है ताकि फिर इनसे खेल सके।
हे मनुष्यों इसी प्रकार सारी श्रष्टि मेरे लिये उस खिलोने के समान ही है और अंत इसका कभी नहीं होता और न होगा अपितु ये तो वो खिलोने है जिनसे खेल कर वापस में फिर अपनी टोकरी में अगली बार खेलने के लिए डाल लेता हूँ, और जिसे अनजाने में तुम अंत समझ बैठते हो, ऐसा हमेशा से हुआ है और होता रहेगा, इस क्रीड़ा में तुम हमेशा मेरे साथी थे और सदैव रहोगे।
कल्याण हो
"एक बालक जिसके पास उसके माता पिता सगे संबंधियो द्वारा दिए अनेक खिलोने है, प्रतिदिन वो उनसे खेलता है, जब उसका जी भर जाता है तब सभी वो खिलोने एक टोकरी में डाल कर एक तरफ रख देता है ताकि अगली बार फिर इनसे खेल सके, और इस प्रकार अपने खिलोने संभाल के रख देता है।"
हे मनुष्यों उस बालक का खिलोंनो का इस प्रकार खेलने के बाद बंद करके रखने का अभिप्राय ये तो नहीं हो सकता की बच्चे ने सदा के लिये खेलना बंद कर दिया है, अपितु वो बाद में इनसे खेलेगा अभी तो कुछ समय के लिये खेलना बंद इसलिए किया की या तो वह थक चूका था अथवा उसे अब इस खेल में आनंद की अनुभूति नहीं हो रही थी, किन्तु दोबारा जब वह खेलेगा फिर नई ऊर्जा और जोश के साथ जिससे उसे आनंद की अनुभूति की भी प्राप्ति होगी।
हे मनुष्यों वेसे ही संसार के साथ में करता हूँ, समस्त संसार, गृह नक्षत्र धरती आकाश जीव जन्तु सब मेरी ही क्रीड़ा का ही तो एक भाग हैं, जिसे तुम अंत समझते हो वो तो वापस उस टोकरी में मैं डाल देता हूँ ताकि बाद में उससे खेल सकूँ, इस प्रकार जिसे तुम प्रलय और श्रष्टी का अंत समझते हो वो तो उस बालक के समान ही है जो अपने खेल के बाद अपने सभी खिलौने टोकरी में डाल देता है ताकि फिर इनसे खेल सके।
हे मनुष्यों इसी प्रकार सारी श्रष्टि मेरे लिये उस खिलोने के समान ही है और अंत इसका कभी नहीं होता और न होगा अपितु ये तो वो खिलोने है जिनसे खेल कर वापस में फिर अपनी टोकरी में अगली बार खेलने के लिए डाल लेता हूँ, और जिसे अनजाने में तुम अंत समझ बैठते हो, ऐसा हमेशा से हुआ है और होता रहेगा, इस क्रीड़ा में तुम हमेशा मेरे साथी थे और सदैव रहोगे।
कल्याण हो
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