ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि तुम मुख के स्वाद हेतु जीव हत्या करते हो, यद्धपि तुम मुझे प्रसन्न करने हेतु बलि शब्द का सहारा ले निरीह जीवो की हत्या करते हो, किन्तु क्या तुम्हें वास्तव में लगता है कि मैं इनसे प्रसन्न हो सकता हूँ।
हत्या चाहे मेरे नाम से बलि रूप में किसी निरीह जीव की तुम करो अथवा जीभ के स्वाद हेतु, इन सबसे में तुमसे कभी प्रसन्न नही हो सकता जैसे 'कोई तुम्हारा मित्र या रिश्तेदार तुम्हें प्रसन्न करने हेतु तुम्हारे ही किसी बालक की हत्या कर तुम्हारे समक्ष उसके मास से बने लज़ीज़ व्यंजन तुम्हें खाने को दे तो क्या तुम उस भोजन को खा कर उस मित्र या रिश्तेदार से प्रसन्न होंगे या क्रोधित होंगे??
सम्भव है क्रोधित होंगे तो मुझसे ये आशा कैसे करते हो कि मैं प्रसन्न होऊँगा इनसे, आखिर मैंने सिर्फ मनुष्य नही बनाये अपितु समस्त जीव जंतु बनाये हैं, यदि तुम मुझे अपना जनक मानोगे न कि अपने भौतिक माता पिता को तो निश्चित ही जानोगे संसार के सभी जीव तुम्हारे भाई बहन व तुम्हारे अपने है और उनको कष्ट न दोगे।
हे मनुष्यों में पहले ही बता चुका हूँ और आज भी बताता हूँ यद्धपि मेरे अंशो ने तुम्हे ये बताया हो कि की मानव जन्म एक बार ही होता है किंतु इसका अभिप्राय ये नही की पुनर्जन्म नही होता, मानव जन्म इसलिए मिला ताकि अपने समस्त पापो प्रायश्चित कर मुझमे लीन हो कर अनन्त जीवन पाओ व मोक्ष को प्राप्त हो।
हे मनुष्यों तुम अपने जीवन मे जितनी बार भी मास खाते हो, उसके लिए जीव की हत्या करते हो, मेरे नाम पर बलि दे कर जीव की हत्या करते हो,मच्छर, मक्खी, चीटी आदि की जाने अनजाने हत्या करते हो, उतनी ही बार तुम्हें जन्म लेना पड़ता है उसी रूपमें जिस रूप में जितनी बार तुमने इनकी हत्या की है, तत्पश्चात उस पीड़ा को झेल कर पुनः मानव देह व सुखमय जीवन को प्राप्त होते हो।
किंतु निम्न रूपो में लिया जन्म व उनमे मिले कष्ट ही वास्तविक नरक है और इसके पश्चात जब तुम्हरी आत्मा पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाती है तबपुनः एक सुखमय स्वस्थ मानव जीवन पाती है ताकि पुराने सारे कष्ट भूल कर अच्छा जीवन जियो किंतु मेरे बताये मार्ग पर चल कर मोक्ष प्राप्त कर अनन्त जीवन को पाओ।
हे मनुष्यों प्रत्येक जीव आत्मा देह त्यागने के बाद नए जीवन के लिए तड़पती रहती है और कोशिश करती है कि श्रेष्ट सुखमय मानव जीवन को पाये लेकिन उसके कर्म ही निश्चित करते हैं कि किस शरीर मे किस देश मे और कब उसको क्या स्थान प्राप्त होगा साथ ही दुख सुख सबकुछ उसके अपने वर्तमान व पिछले जन्म के कर्म तय करते हैं, तभी तुमने देखा होगा कोई मनुष्य अच्छे कर्म करता है फिर भी दुख पाता है जबकि कोई बुरे कर्म करने वाला सुख पाता है, कारण पिछले जन्म के कर्म लेकिन अच्छे कर्म करने वाला अपने नए जीवन के लिए सुख कमा रहा है वही बुरे कर्म वाला दुःख।
हे मनुष्यों अब तुम खुद तय करो कि तुम्हें क्या चाहिये, किन्तु ये अवधारणा त्याग दो की जीवन एक बार ही मिला है, हाँ मानव जीवन अवश्य एक बार मिला है, किंतु दूसरी बार अनेक कष्ट और रूपो में जन्म लेने के बाद यदि तुम्हारी आत्मा शुद्ध हुई तो पुनः जन्म मिलेगा ताकि अच्छे कर्म कर मोक्ष रूपी अनन्त जीवन को पाओ,किंतु तुम यदि ऐसा नही करते तो युही जन्म जन्मो तक भटकते रहोगे और कष्टों को भोगोगे।"
कल्याण हो
हत्या चाहे मेरे नाम से बलि रूप में किसी निरीह जीव की तुम करो अथवा जीभ के स्वाद हेतु, इन सबसे में तुमसे कभी प्रसन्न नही हो सकता जैसे 'कोई तुम्हारा मित्र या रिश्तेदार तुम्हें प्रसन्न करने हेतु तुम्हारे ही किसी बालक की हत्या कर तुम्हारे समक्ष उसके मास से बने लज़ीज़ व्यंजन तुम्हें खाने को दे तो क्या तुम उस भोजन को खा कर उस मित्र या रिश्तेदार से प्रसन्न होंगे या क्रोधित होंगे??
सम्भव है क्रोधित होंगे तो मुझसे ये आशा कैसे करते हो कि मैं प्रसन्न होऊँगा इनसे, आखिर मैंने सिर्फ मनुष्य नही बनाये अपितु समस्त जीव जंतु बनाये हैं, यदि तुम मुझे अपना जनक मानोगे न कि अपने भौतिक माता पिता को तो निश्चित ही जानोगे संसार के सभी जीव तुम्हारे भाई बहन व तुम्हारे अपने है और उनको कष्ट न दोगे।
हे मनुष्यों में पहले ही बता चुका हूँ और आज भी बताता हूँ यद्धपि मेरे अंशो ने तुम्हे ये बताया हो कि की मानव जन्म एक बार ही होता है किंतु इसका अभिप्राय ये नही की पुनर्जन्म नही होता, मानव जन्म इसलिए मिला ताकि अपने समस्त पापो प्रायश्चित कर मुझमे लीन हो कर अनन्त जीवन पाओ व मोक्ष को प्राप्त हो।
हे मनुष्यों तुम अपने जीवन मे जितनी बार भी मास खाते हो, उसके लिए जीव की हत्या करते हो, मेरे नाम पर बलि दे कर जीव की हत्या करते हो,मच्छर, मक्खी, चीटी आदि की जाने अनजाने हत्या करते हो, उतनी ही बार तुम्हें जन्म लेना पड़ता है उसी रूपमें जिस रूप में जितनी बार तुमने इनकी हत्या की है, तत्पश्चात उस पीड़ा को झेल कर पुनः मानव देह व सुखमय जीवन को प्राप्त होते हो।
किंतु निम्न रूपो में लिया जन्म व उनमे मिले कष्ट ही वास्तविक नरक है और इसके पश्चात जब तुम्हरी आत्मा पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाती है तबपुनः एक सुखमय स्वस्थ मानव जीवन पाती है ताकि पुराने सारे कष्ट भूल कर अच्छा जीवन जियो किंतु मेरे बताये मार्ग पर चल कर मोक्ष प्राप्त कर अनन्त जीवन को पाओ।
हे मनुष्यों प्रत्येक जीव आत्मा देह त्यागने के बाद नए जीवन के लिए तड़पती रहती है और कोशिश करती है कि श्रेष्ट सुखमय मानव जीवन को पाये लेकिन उसके कर्म ही निश्चित करते हैं कि किस शरीर मे किस देश मे और कब उसको क्या स्थान प्राप्त होगा साथ ही दुख सुख सबकुछ उसके अपने वर्तमान व पिछले जन्म के कर्म तय करते हैं, तभी तुमने देखा होगा कोई मनुष्य अच्छे कर्म करता है फिर भी दुख पाता है जबकि कोई बुरे कर्म करने वाला सुख पाता है, कारण पिछले जन्म के कर्म लेकिन अच्छे कर्म करने वाला अपने नए जीवन के लिए सुख कमा रहा है वही बुरे कर्म वाला दुःख।
हे मनुष्यों अब तुम खुद तय करो कि तुम्हें क्या चाहिये, किन्तु ये अवधारणा त्याग दो की जीवन एक बार ही मिला है, हाँ मानव जीवन अवश्य एक बार मिला है, किंतु दूसरी बार अनेक कष्ट और रूपो में जन्म लेने के बाद यदि तुम्हारी आत्मा शुद्ध हुई तो पुनः जन्म मिलेगा ताकि अच्छे कर्म कर मोक्ष रूपी अनन्त जीवन को पाओ,किंतु तुम यदि ऐसा नही करते तो युही जन्म जन्मो तक भटकते रहोगे और कष्टों को भोगोगे।"
कल्याण हो
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