ईश्वर कहते हैं, "हे मनुष्यों यद्धपि मेरी आज्ञा से ही मेरे अंश मुझसे निकल कर देश काल परिस्थिति के अनुरूप अवतरित हुए व मानव व प्राणी जाती के कल्याण हेतु कार्य कर मानव को भी इसके लिए प्रेरित किया, किन्तु समय के अनुरूप जैसे जैसे मानव जाति की संख्या अधिक होने लगी, वो धीरे धीरे अपने पुराने समुदाय से दूर जा कर रहने लगा। उसने अपनी अपनी सहूलियत के और आवश्यकता के अनुरूप मुझे अनेक नाम दे दिए व मन ही मन मेरी अनेक रूप में छवि बनाता रहा, और उसकी उसी निष्ठा से प्रसन्न हो कर मैंने अपने अंशो को वहाँ अवतरित होने का आदेश दिया जहाँ उनकी अति आवश्यकता थी।
किंतु मानव जाति ने समय के अनुरूप मुझे भी अनेक रूपो में बाट कर आपस मे लड़ने लगे व न सिर्फ एक दूसरे को अपितु एक दूसरे की धार्मिक पुस्तक व आराधनालय को भी हानिपहुँचाने लगे, ऐसे में आवश्यकता हुई निराकार व एकेशरवाद की, एकहि धार्मिक पुस्तक की जिस पर सभी यकीन कर सके व समान सम्मान उसे दे सके ताकि खुद को और खुद के ईश्वर व उनकी धार्मिक पुस्तक को श्रेष्ट मानने की धारणा का अंत हो कर समाज मे एकता व अखण्डता कायम हो सके।
किन्तु समय के साथ मनुष्य ने यहाँ भी भेद भाव ढूंढ ही लिया साथ ही जो एकेशरवाद में यकीन नही करता उसको नीच व दोयम दर्जा दिया गया। जबकि एकेशरवाद की मूल भावना व उद्देश्य उसने भुला फिर से मानव को मानव का दुश्मन बता वही कर्म शुरू कर दिए जो पहले करता था आराधनालय को हानि, धार्मिक पुस्तक को हानि, मानव जाती को हानि।
मानव भूल गया एकेशरवाद के मूल सिद्धांत, यदि मानव को एकेशरवाद की प्रेरणा दे कर प्रेरित नही किया जाता तो आज शायद मानव सभ्यता ही खत्म हो जाती, किंतु एकेशरवाद की आड़ में असामाजिक तत्व जो मानवता को हानि पहुचा रहे है और उसे धर्म के आधार पर उचित बता रहे है तो उन्हें में बताता हूँ वो शैतान से प्रेरित है, वो मेरे नही शैतान के अनुयायी है, तथा उनसे दूरी बना कर मेरी दी गयी मानवता की शिक्षा का अनुसरण करो क्योंकी मै ईश्वर हूँ।"
कल्याण हो
किंतु मानव जाति ने समय के अनुरूप मुझे भी अनेक रूपो में बाट कर आपस मे लड़ने लगे व न सिर्फ एक दूसरे को अपितु एक दूसरे की धार्मिक पुस्तक व आराधनालय को भी हानिपहुँचाने लगे, ऐसे में आवश्यकता हुई निराकार व एकेशरवाद की, एकहि धार्मिक पुस्तक की जिस पर सभी यकीन कर सके व समान सम्मान उसे दे सके ताकि खुद को और खुद के ईश्वर व उनकी धार्मिक पुस्तक को श्रेष्ट मानने की धारणा का अंत हो कर समाज मे एकता व अखण्डता कायम हो सके।
किन्तु समय के साथ मनुष्य ने यहाँ भी भेद भाव ढूंढ ही लिया साथ ही जो एकेशरवाद में यकीन नही करता उसको नीच व दोयम दर्जा दिया गया। जबकि एकेशरवाद की मूल भावना व उद्देश्य उसने भुला फिर से मानव को मानव का दुश्मन बता वही कर्म शुरू कर दिए जो पहले करता था आराधनालय को हानि, धार्मिक पुस्तक को हानि, मानव जाती को हानि।
मानव भूल गया एकेशरवाद के मूल सिद्धांत, यदि मानव को एकेशरवाद की प्रेरणा दे कर प्रेरित नही किया जाता तो आज शायद मानव सभ्यता ही खत्म हो जाती, किंतु एकेशरवाद की आड़ में असामाजिक तत्व जो मानवता को हानि पहुचा रहे है और उसे धर्म के आधार पर उचित बता रहे है तो उन्हें में बताता हूँ वो शैतान से प्रेरित है, वो मेरे नही शैतान के अनुयायी है, तथा उनसे दूरी बना कर मेरी दी गयी मानवता की शिक्षा का अनुसरण करो क्योंकी मै ईश्वर हूँ।"
कल्याण हो
No comments:
Post a Comment