Saturday, 30 November 2019

फिर से अजनबी बन जाये हम-कविता

"ए काश फिर से अजनबी बन, जाये हम
वो वादे इरादे भी अब भूल ,जाये हम
आ मिटा दे तेरी हर याद , दिलसे अब
मोहब्बत की राहों को भूल जाये हम

न तुम याद आओ न तुम्हे याद, आये हम
न तुम रुलाओ और न तुम्हे ,सताये हम
भुला दे वो हसीं राते जो गुज़ारी, संग तेरे
न हमे तुम दिखो न तुम्हे नज़र आये हम

बन अजनबी राहो से यू गुज़र ,जाय हम
आ फिर ऐसे यू बेफिक्र से बन, जाये हम
न रोको तुम मुझे इन राहो में, कभी फिर
ए काश फिर से अजनबी बन जाये हम"

                   🍸मीठी-खुशी🍸

हमें आग से डर लगता है-कविता

"हमें आग से डर लगता है ए ज़िंदगी
पर तू हमें आग से ही,  खिलाती रही
जितना बचते रहे इस आग,   से हम
उतना ही क्यों तू हमे झुलसाती रही

हमे डर लगता है इस,  तपिश से 
पर तू हमे हर बार ,  जलाती रही
कोशिश की खुद को ,  बचाने की
पर क्यो यूह तू हमे ,  सताती रही

नही चाहिए और ये आग मुझे, ए ज़िंदगी
ज़ख़्म दे हर दफा क्यों तू मुझे, रुलाती रही
कब तक अश्क छिपा मुस्कुराती, रहे 'मीठी'
हर मर्तबा 'खुशी' मुझसे क्यों तू ,चुराती रही"

Tuesday, 19 November 2019

"जब खूबसूरती ही बनी शत्रु-कहानी"

"आम्रपाली अपने समय की दुनिया की सबसे खूबसूरत बालिका थी, जो भी उसको देखता तो बस देखता रह जाता।

समय के साथ वो बड़ी हो गयी, शायद उस समय की सबसे खूबसूरत युवती थी वो, हर कोई उससे विवाह करना चाहता था, उसके माता-पिता भी उसके लिए एक योग्य वर तलाशना चाहते थे, किंतु उन्होंने देखा उसको प्राप्त करने की होड़ सी लगी पड़ी है क्या राजा क्या राजकुमार क्या व्यापारी व क्या रंक।

ऐसे में आम्रपाली के माता-पिता सोचने लगे कि किसी एक से विवाह अगर अपनी पुत्री का उन्होंने किया तो समाज मे अराजकता फैल सकती है, युद्ध व महायुद्ध हो सकते हैं, लेकिन फिर क्या करे विवाह तो पुत्री का करना ही है।

अपनी इसी चिंता में डूबे आम्रपाली के माता-पिता ने सभा रखवाई ताकि ये निर्णय हो सके कि आम्रपाली का विवाह बिना किसी परेशानी व अराजकता सम्पन्न हो सके।

सुबह से शाम हो गयी लेकिन सभा मे कोई सही निर्णय न हो पाया, लेकिन फिर नगर, समाज व विश्व समुदाय को ध्यान में रख कर ये फैसला हुआ कि आम्रपाली को 'नगर वधु(वैश्या)' बना दिया जाए जिससे हर कोई उसके साथ जब चाहे समय व्यतीत कर सके,इससे नगर व समाज मे अराजकता भी नही फैलेगी।


इस निर्णय से आम्रपाली के माता पिता को बहुत दुःख हुआ लेकिन सभा के निर्णय के खिलाफ वो नही जा सकते थे, उधर जब ये बात आम्रपाली को पता चली की उसकी खूबसूरती के कारण उसे 'नगर वधु' बना दिया गया है, वो बहुत रोई पर वोभी क्या कर सकती थी।

इस प्रकार आम्रपाली की खूबसूरती ही उसकी शत्रु बनी जिसने उसे 'नगर वधु' बनने का दंश झेला।

Monday, 18 November 2019

Beautiful story

"एक बार बोद्ध भिक्षुओं का समूह एक नगर को गया,चूँकि बारिश का मौसम शुरू होने वाला था इसलिए भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा था कि नगर में जा कर ये समय किसी के घर आश्रय ले कर बिताओ।
बोद्ध भिक्षुओ का ये दल 'आम्रपाली' जो उस समय की सबसे खूबसूरत 'नगर वधु' हुआ करती थी उसके महल में भी पहुच गया, उसने दिल खोल कर उन्हें दान दक्षिना दी, किँतु उनमे से एक भिक्षु को सबसे ज्यादा पसंद करने लगी और बारिश के मौसम में अपने यहाँ ही रहने का अनुरोध करने लगी, ये देख कर अन्य भिक्षु छिड़ गए और वहाँ से चले गए व भगवान बुद्ध के पास जा कर बोले "वो अब नगर वधु के पास रहेगा, वो स्त्री अपने रूप के जाल में अक्सर लोगो को फसा लेती है, एक भिक्षु का क्या एक नगर वधु के यहाँ रुकना उचित है",
भगवान बुद्ध बोले-"पहले उसे यहाँ आने तो दो फिर बताता हूँ",
कुछ देर बाद वो भिक्षु भी वहाँ आ गया और बोला-"प्रभु आपने ही कहा था बारिश का मौसम शुरू होने वाला है इसलिए अपने लिए नगर में किसी के घर आश्रय ढूंढ लो, मुझे वहाँ की सबसे खूबसूरत नगर वधु ने अपने महल में रुकने का निमंत्रण दिया है, बताये क्या मुझे वहाँ रुकना चाहिए?",
भगवान बुद्ध बोले-"तुम्हे क्या लगता है?"
भिक्षु बोला-"जैसा आप कहे"

भगवान बुद्ध बोले-"जाओ और उसके महल में ये बारिश के 4 महीने गुज़ारो",
 आज्ञा पा कर वो शिष्य वहाँ से उस नगर वधु के महल की तरफ चल देता है, जबकि अन्य बोद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध के इस निर्णय से नाराज़ होते हैं।

इन चार महीनों में 'आम्रपाली' जो नगर की सबसे खूबसूरत नगर वधु थी, अपनी सुंदरता पर इतना घमण्ड था, सोचती थी किसी भी पुरुष को अपनी तरफ वो पल में खींच सकती है, उसने उस शिष्य पर भी खूब प्रेम रस बरसाए किंतु वो उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में असफल रही।

हार कर जब ये 4 माह पूरे हुए तो उस बोद्ध भिक्षु के चरणों मे गिर गयी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांफी।
इसके साथ ही उस बोध भिक्षु के साथ उस स्थान पर चली आयी जहां भगवान बुद्ध रहते थे, आम्रपाली ने हाथ जोड़ कर सारा किस्सा कह सुनाया साथ ही भगवान बुद्ध की श्रेष्ठ शिष्याओं में उनकी गिनती हुई भविष्य में।

नोट-इस कहानी से यही सीख मिलती है अगर खुद पर नियंत्रण हो तो बड़े से बड़ा आकर्षण भी मन्ज़िल से हमे डिगा नही सकता, यदि हम सही है तो सामने वाला बुरा इंसान भी सुधर सकता है,
हमेशा कीचड़ में खिले कमल के समान रहना चाहिए, जो कीचड़ में खिलने के बाद भी खुद को पवित्र रखता है और ईश्वर के चरणों मे अर्पित हो कर अपनी शोभा बढ़ाता है।

"हे ईश्वर हमे हर उस चीज़ से दूर रखना जो आपसे हमे दूर करती है"..

Love you Dear Lord...

Sunday, 17 November 2019

मेरे दिलकी बात

'मीठी' तो एक कली थी
आस पास दोस्त नाम के कांटे कब उग आए पता ही नही चला,

अक्सर बचाते थे अगर कोई हाथ तोड़ने के लिए आगे बढ़ता,

लेकिन वक्त के साथ वो काँटे झर कर कहीं गिर गए और फूल बन कर 'मीठी' भी बाग में खिल गयी,

फिर बहुतेरे हाथ 'खुशी' की बात कह 'मीठी' तेरी तरफ बढ़ने लगे,

पर गमले में सजाने के लिए नही बल्कि तोड़ कर दिल बहला पैरो तले कुचलने के लिए,

किसी की किस्मत अच्छी थी जिसने इस फूल को तोड़ा और दिल बहला कर पैरो तले कुचल चला गया,

उसके बाद बहुतो ने भी कोशिश की इस फूल को टहनी से तोड़ कुचल देने की,

पर शायद ये फूल अब टहनी से मज़बूती से बंध चुका है,

बढ़ते तो आज भी बहुत हाथ है तोड़ने के लिए इस फूल को लेकिन अब टूटता नही ये आसानी से,
पता है एक दिन टहनी से गिर कर ये मर जायेगा,
पर गम नही, क्योंकि दर्द तब होता है जब कोई ज़िस्म को लाश समझ कुचल कर चले जाते हैं,

भले गमले में सजने के लिए 'मीठी' न बनी हो,
पर टहनी पर ही रह कर यहीं मर जायगी
 लेकिन खुशबू से खेलने वालों के हाथ न आएगी,

वक्त ने ऐसा बना दिया,
 'मीठी' ने भी ख्वाब देखे थे गमले में सज कर किसी का घर महकाने के
पर वक्त ने तन्हाई में भी खुश रहना सिखा दिया।।❤🙏🏻

नोट-ये कोई कविता नही है बस दिलकी आवाज़ है, कृपया इसे साहित्य की भाषा से न जोड़े🙏🏻

Saturday, 16 November 2019

कविता-'खुशी' की चाहत में तन्हाई हमे मिली है ज़िन्दगी चाही थी"

'खुशी'  की चाहत में तन्हाई  हमे मिली है
ज़िन्दगी चाही थी  पर  मौत हमे मिली है

'मीठी' बातें बना कर दिलमे आते है लोग
पग-पग उन्ही से बस रुस्वाई हमे मिली है

रोते थे दिन-रात जो 'खुशी' की तलाश में
हर किसीसे दर्द की सौग़ात हमे मिली है

ना चाहा बस वफ़ा के सिवा किसी से कुछ
मंज़िल हर किसी की बेवफाई हमे मिली है

किया जिसने वादा साथ निभाने का 'मीठी'
ठोकर देखो उन्ही से बेबात हमे मिली है

सोचा था तुम्हे भुला देंगे हम भी एक दिन 
पर शहर में बिछी तेरी बिसात हमे मिली है

चलते हैं अकेले इन राहो में ग़मो को छिपा 
दिए तेरे इन ज़ख़्मो से न रिहाई हमे मिली है

मिलते हैं हर मोड़ पर साथी तुम जैसे ही 
आखिर इनमे तेरी ही परछाई हमे मिली है

खुशी'  की चाहत में तन्हाई  हमे मिली है
ज़िन्दगी चाही थी  पर  मौत हमें मिली है-२"

Friday, 15 November 2019

कविता-ढूंढने चले थे

" फिर  वही भूल करने चले थे

धुंए  में  ज़िन्दगी ढूंढने चले थे


हकीकत क्या है जानते हैं हम

अंधेरे में रोशनी करने चले थे


है बिखरी पड़ी रुसवाई यहाँ

बेवफा से वफ़ा करने चले थे


दिए धोखे नसीब ने 'मीठी'

'खुशी' की चाहत करने चले थे


है तन्हा कितने इस महफ़िल में

इश्क की तलाश करने चले थे


फिर  वही भूल  करने चले थे

धुंए  में ज़िन्दगी ढूं ढने चले थे-२"


🙏🙏🙏🙏🙏🙏