"हमें आग से डर लगता है ए ज़िंदगी
पर तू हमें आग से ही, खिलाती रही
जितना बचते रहे इस आग, से हम
उतना ही क्यों तू हमे झुलसाती रही
हमे डर लगता है इस, तपिश से
पर तू हमे हर बार , जलाती रही
कोशिश की खुद को , बचाने की
पर क्यो यूह तू हमे , सताती रही
नही चाहिए और ये आग मुझे, ए ज़िंदगी
ज़ख़्म दे हर दफा क्यों तू मुझे, रुलाती रही
कब तक अश्क छिपा मुस्कुराती, रहे 'मीठी'
हर मर्तबा 'खुशी' मुझसे क्यों तू ,चुराती रही"
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