Friday, 15 November 2019

कविता-ढूंढने चले थे

" फिर  वही भूल करने चले थे

धुंए  में  ज़िन्दगी ढूंढने चले थे


हकीकत क्या है जानते हैं हम

अंधेरे में रोशनी करने चले थे


है बिखरी पड़ी रुसवाई यहाँ

बेवफा से वफ़ा करने चले थे


दिए धोखे नसीब ने 'मीठी'

'खुशी' की चाहत करने चले थे


है तन्हा कितने इस महफ़िल में

इश्क की तलाश करने चले थे


फिर  वही भूल  करने चले थे

धुंए  में ज़िन्दगी ढूं ढने चले थे-२"


🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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