Thursday, 2 August 2012

उनकी हर खता पर हम खामोश रहते

उनकी हर खता पर हम खामोश रहते , इसी खामोसी को वो हमारी कमोरी समझ बैठे , हम तो इसलिए कुछ न कहते थे कही टूट ना जाए दिल उनका, बिखर न जाए कोई ख्वाब उनका ,वो हर बार हमे रुलाते रहे बस ये सोच कर उनकी बेरुखी पर भी हम मुस्कुराते रहे ,शायद ये  ही कर बैठे एक खता  हम , वरना उन्हें भी बता देते दिल तोड़ कर तनहा छोड़ना हमे भी आता है ,पर न चाहत थी उन्हें यु तनहा छोड़ने की हमारी , ना आदत थी किसी को यु सताने की हमारी , बस इस्सी आदत को वो हमारी लाचारी समझ बैठे , और उनकी ख़ुशी के लिए उनके दिए सितम हर पल हम सहते रहते ,उनकी हर खता पर हम खामोश रहते।.........

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