Wednesday, 6 December 2017

कविता--तेरी याद दिन रात मुझे रुलाती है



"'मीठी' सी तेरी याद दिन रात मुझे रुलाती है
तेरी हर बात 'ख़ुशी की मुझे बहुत सातती है

तुम छोड़ गए तनहा इस महफ़िल में मुझे
फिर भी धड़कन तुमको ही बस बुलाती है


कहते है सब तुम नही अब जहाँ में कही
इन अश्को मे तुम्हारी ही सूरत नज़र आती है

कैसे मान लू जग की बात की तुम नही हो
हवाओ में खुशबू तुम्हारी मुझे महकाती है

रहते हो मेरी साँसों में तुम ज़िन्दगी बनकर
ज़िन्दगी लम्हा लम्हा मुझे ये बतलाती है

ज़िन्दगी के हसीन वो पल जो साथ जिये हम
'मीठी' 'ख़ुशी' को पल पल पुकारे जाती है

वो गीत प्रेम के साथ गुनगुनाते थे कभी हम
तेरी याद में अकेली बैठी 'मीठी' गाये जाती है

आँखों का पलक सा रिश्ता था हमारा कभी
बेवफा निकली साँसे बुझ गयी दिये से बाती है

तड़पती हूँ हर पल यहाँ पुकारा तुझे करती हूँ
'ख़ुशी' के बिना 'मीठी' अधूरी बस कहलाती है


'मीठी' सी तेरी याद दिन रात मुझे रुलाती है
तेरी हर बात 'ख़ुशी की मुझे बहुत सातती है-२"


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