Monday, 5 May 2014

हर शख्स ने मुझे तनहा छोड़ा है

हर शख्स ने मुझसे मुह मोड़ा है, हर किसी ने मुझे यु छोड़ा है, करा वादा सभी ने सदा साथ निभाने का, 

पर हर शख्स ने मुझे तनहा छोड़ा है, हाथ थाम कर चला हर कोई कुछ दूर तक संग मेरे फिर बीच मझधार में मुझे ला कर छोड़ा है, 

दोष दू तो किसे दू, आखिर मेरे नसीब में ही ये सब लिखा है, होते है ज़माने में कुछ भले भी लोग पर कैसे मानु मैं ये क्योंकि मुझे तो हर शख्स ने उस शैतान के भरोसे ही यहाँ  छोड़ा है, 

मिला नहीं मुझे कोई मेरे दुःख को कम करने वाला, और जिसने पूछा मेरे दिल का गम उसीने मुझे हैवानो के पास छोड़ डाला, 

अपना बन कर आया हर कोई करीब मेरे फिर करके तबाह मेरी ज़िन्दगी उसने भी मुझे खुदसे है दूर कर डाला, 

पर दोष किसी का नहीं मेरे नसीब का है शायद ला कर चौखट पर हर ख़ुशी मेरी हर शख्स ने मुझसे मुह मोड़ा है, 

हर किसी ने मुझे यु छोड़ा है, करा वादा सभी ने सदा साथ निभाने का, पर हर शख्स ने मुझे तनहा छोड़ा है, 

हर शख्स ने मुझे तनहा छोड़ा है

तू ही तो मेरा प्यार है

तू ही  तो मेरा प्यार है , तू ही तो मेरा संसार है, तुझसे ही तो  है  इस  जीवन में मेरी हर ख़ुशी, तुझसे ही तो है  इन लबों पे हसीं ओ मेरे जीवनसाथी ओ मेरे जीवनसाथी,


बिन तेरे न जी सकुंगी मैं अब अकेले ओ मेरे जीवनसाथी ओ मेरे जीवनसाथी, तुझसे ही तो है सुबह ये मेरी तुझसे ही तो है शाम मेरी, ओ मेरे जीवनसाथी ओ मेरे जीवनसाथी,


बिन तेरे सीने में  धड़केगा ये दिल जरूर पर न होगी कोई जिस्म में मेरी हलचल और न होगी दिल में जीने की कोई आरज़ू,


बिन तेरे साँसे होगी जिस्म में मेरे पर ज़िन्दगी नहीं, बिन तेरे रहूंगी ज़िंदा सबके लिए पर खुदमें ज़िंदा मैं नहीं,


बिन तेरे हूँ एक ज़िंदा लाश की तरह, घूमती रहूंगी  हर कही हवा के  झोखे से   उड़ते हुए उस पत्ते की तरह,


ऐ मेरे हमसफ़र ऐ मेरे हमनवा बिन तेरे अब कुछ भी नहीं मैं, बिन तेरे मुझमे नहीं अब मैं,


तू ही तो मेरी ज़िन्दगी है, तू ही तो मेरी बंदगी है, तू ही तो मेरी आशिकी है, तू ही तो मेरी हर ख़ुशी है ओ  मेरे जीवनसाथी ओ मेरे जीवनसाथी,

तू ही  तो मेरा प्यार है , तू ही तो मेरा संसार है, तुझसे ही तो  है  इस  जीवन में मेरी हर ख़ुशी, तुझसे ही तो है  इन लबों पे हसीं ओ मेरे जीवनसाथी ओ मेरे जीवनसाथी,

तू ही  तो मेरा प्यार है , तू ही तो मेरा संसार है, तुझसे ही तो  है  इस  जीवन में मेरी हर ख़ुशी, तुझसे ही तो है  इन लबों पे हसीं ओ मेरे जीवनसाथी ओ मेरे जीवनसाथी,

Sunday, 4 May 2014

ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है

ये ज़िन्दगी मेरी क्यों ये मौके बार-बार देती है, ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है,

हम तो ज़िन्दगी नाम कर देते हैं उन्हें  दुनिया अपनी मान कर पर वो धोखा दे कर चले जाते हैं हमे अपनी शान समझ कर,
 जिसे भी मानते हैं अपना वो ही क्यों बन  जाता है  बेगाना, शायद रिश्ते बनाने में कमी कही मुझसे ही हो जाती है या फिर रिश्ते निभाने में गलती कही मुझसे ही हो जाती है, 

शायद तभी हर दफा लबों पे मेरी मुश्कान की जगह आँखों में आँसू  हर बार ये ज़िन्दगी मेरी   मुझे दे जाती है, 

शायद तभी ये  ज़िन्दगी मेरी ये मौके बार-बार देती है, ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है,
ख़ुशी की जगह गम हर बार देती है

Thursday, 1 May 2014

कौन हूँ मैं

किसी ने पूछा मुझसे कौन हूँ मैं, हिमालय से बहती सरिता हूँ या किसी कवि की कविता हूँ, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,


किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, पथ से भटकी हुई कोई पथिक हूँ या मज़िल की तलाश में चलती हुई राही हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,


किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, किसी बाग़ की लता हूँ मैं या किसी बगीचे की माली हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,


किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, चलते-चलते थक जब बैठ जाती हूँ तो सोचती हूँ की आखिर कौन हूँ मैं, है वज़ूद क्या मेरा इस जहाँ में, आखिर क्यों हूँ मैं इस जहाँ में, आखिर किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

न किसी शायर की ग़ज़ल हूँ मैं ना  किसी लेखक का निबंद हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, आँखों से बहते अश्को का सैलाब हूँ मैं या किसी बाग़ का तालाब हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, ज़िन्दगी की तलाश हूँ मैं या ज़िन्दगी से निराश हूँ मैं,किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, गगन में उड़ता परिंदा हूँ मैं या ज़मीन पे हूँ इसलिए खुदसे ही शर्मिंदा हूँ मैं,किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,


किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, हूँ एक आम सी शक्शियत में या कुछ ख़ास भी हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, पर्वतो से बहता झरना हूँ मैं या फलक से चमकता कोई सितार हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,


किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, सागर की गहराई हूँ मैं या आकाश की उचाई हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, किसी झील की धारा हूँ मैं या किसी हिमखंड का सहारा हूँ मई, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, रेगिस्तान सी वीरान हूँ मैं या हिमशिखर की सविता हूँ मैं, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, हिमालय से बहती सरिता हूँ या किसी कवि की कविता हूँ, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,

 किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं, हिमालय से बहती सरिता हूँ या किसी कवि की कविता हूँ, किसी ने पूछा मुझसे की कौन हूँ मैं,
आखिर मुझसे की कौन हूँ मैं,
आखिर मुझसे की कौन हूँ मैं, 



Wednesday, 30 April 2014

ये अश्क ही मेरे साथी है





जीवन की हर डगर में ये अश्क ही  मेरे साथी है, तड़पती हुई मेरी तनहा ज़िन्दगी के भी ये अश्क ही मेरे साथी है, 

जीवन की हर उमंग के ये हमराही मेरे अश्क ही मेरे साथी है, अरमानो भरे इस दिल के भी बस ये ही जीवनसाथी है,

 जीवन की हर डगर में ये अश्क ही मेरे साथी है, ख़ुशी और गम  के इस संगम के भी मेरे ये अश्क ही  बाराती है, 

पलकों और आँखों से है गहरा रिश्ता इनका जैसे दिया और बाती है,जीवन की हर डगर में ये अश्क ही  मेरे साथी है, 

जीवन की हर डगर में ये अश्क ही  मेरे साथी है,जीवन की हर डगर में ये अश्क ही  मेरे साथी है

मोहब्बत नाम तो है बस बेवफाई का......



मोहब्बत नाम था कभी खुदा का आज मोहब्बत नाम है  बेवफाई का, मोहब्बत नाम था कभी जहाँ का आज मोहब्बत नाम है तो बस तन्हाई 
का,

 मोहब्बत नाम था  कभी ज़िन्दगी का आज मोहब्बत नाम तो है बस रुस्वाई का,मोहब्बत नाम था कभी ख़ुशी का मोहब्बत नाम है तो बस अश्कायी का,
मोहब्बत नाम था कभी मिलन का आज मोहब्बत नाम है तो बस जुदाई का, मोहब्बत नाम था कभी रब की किसी दुआ का आज मोहब्बत नाम है तो बस इस ज़िन्दगी  की ही तबाही का,
मोहब्बत नाम था कभी खुदा का आज मोहब्बत नाम है तो बस बेवफाई का, मोहब्बत नाम तो है बस बेवफाई का, मोहब्बत नाम तो है बस बेवफाई का......

मिट चुकी इंसानियत है .......




  ईश्वर की इस दुनिया में मिट चुकी इंसानियत है, इंसानो के इस मुखौटो में अब छिपी हैवानियत है, अहंकार से  हार कर  दिल से मिट चुकी अब रूहानियत है, जख्म देख कर हस्ते है लोग सदा मन में बस्ती सबके अब शेतान्यत है, है ज़िंदा लोग जहाँ में आज पर मिट चुकी इंसानियत है, ईश्वर की इस दुनिया में मिट चुकी इंसानियत है, मिट चुकी इंसानियत है, मिट चुकी इंसानियत है .......