Wednesday, 2 January 2013

ए काश वो दिन भी कभी ज़िंदगी में तेरी आए,

ए काश वो दिन भी कभी ज़िंदगी में तेरी आए, चाहे तू  किसी को बेपनाह  और वो  ख्वाब दिखा वफ़ा के बेवफ़ाई कर जाए, 

ए काश तुझे भी कोई ऐसा मिल जाए, मिले तेरे चाहत के बदले उससे आँसू और गम बेहिसाब, तू लुटाए ज़िंदगी उस पर और वो दिखाए बेरूख़ी हर बार, 

चाहे तू भी बस एक नज़र अपने प्यार की, चाहे हर पल तू भी खुशी बस अपने यार की, करता रहे तू भी कुर्बान अपने सभी अरमान किसी के लिए,

 और वो भी इन्हे कुचालता रहे बस अपना दिल बहलाने के लिए, उसकी हॅसी के खातिर तेरे चेहरे पे आई हर चुप्पी को बस वो तेरी एक कमज़ोरी समझे, 

दुनिया में जीता हुआ नही बस हारा हुआ समझे, और तेरी चाहत को भी बस वो तेरी ही एक आदत-ए-कमज़ोरी समझे, तेरी मोहब्बत के बदले ऐसा इनाम वो तुझे दे,

 रोता रहे तू और वो इन अश्कों  से ही तेरे दिल पर तेरे प्यार को कमी बता कर सीने पे तेरे इसकी एक कहानी लिखे, लगाए ऐसी चोट वो दिल पे तेरे की ना फिर कभी तेरे लबों से मोहब्बत का नाम दुबारा निकले, 


लगाए इतनी गहरी चोट दिल को तेरी वो की फिर ना किसी मरहम और दवा का असर उस पर हो, तोड़ कर आईने की तारह दिल को इतने टुकड़ों में वो बिखेर जाए 

की जब जब देखे तू उन्न टुकड़ों को तो हर पल खुद को अकेला और तन्हा पाए, शायद इसके बाद तुझे उस दर्द का अहसास हो जाए जो तूने दिए हैं मुझे आज तक, 
आए काश वो दिन भी कभी ज़िंदगी में तेरी आए  ...

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