Wednesday, 10 April 2013

ईश्वर वाणी -ishwar vaani-27 **जगत की उत्पत्ति **

किसी ने हमसे पुछा की तुम कहते हो की जगत की उत्पत्ति जल यानि की पानी से हुई है लेकिन हमने तो सुना है की जगत की उत्पत्ति जल से ही नहीं अपितु पंचतत्वो से हुई है, अब बताओ क्या सही है और क्या गलत????



हमने ये ही सवाल ईश्वर से पूछा की हे प्रभु आपने ही मुझे बताया था की जगत की उत्पत्ति जल से हुई है, किन्तु कुछ लोगों का मानना है की जगत की उत्पत्ति पंचतत्वों के मिलने से हुई है, क्या सत्य है प्रभु हमे बताये अवं हमारा मार्दर्शन करें।।।।



ईश्वर ने कहा: इस समस्त श्रृष्टि में समस्त भोतिक अवं नाशवान वस्तुओं का निर्माण जल से हुआ है, यहाँ तक की प्राणी के शरीर की रचना भी केवल जल से ही हुई है, किन्तु प्राणी में प्राण तभी आते हैं जब समस्त श्रृष्टि से उसे पंच्तत्वों की प्राप्ति होती है(अग्नि, जल, वायु, धरती, आकाश),


हमने पूछा प्रभु से की हे प्रभु जरा खुल कर बता, मुझे समझ नहीं आया की जो भोतिक है अर्थात जो नाशवान है उसकी उत्पत्ति जल से हुई है किन्तु जो नाशवान नहीं है जैसे जीवन उसकी उत्पत्ति पंचतत्वों से हुई है, इसका क्या अभिप्राये है, क्या प्राण नाशवान नहीं होते मृत्यु आती है तब हमारे प्राण ही तो हमारा साथ छोड़ जाते हैं और हम मृत्यु को प्राप्त होते हैं, फिर भला जीवन को आपने भोतिकता से क्यों अलग किया हुआ है???



ईश्वर ने कहा: जो नाशवान है केवल वो ही जल से उत्पन्न हुआ है, जैसे एक बालक का जन्म माता पिता के प्रेम रुपी मिलन के पश्चात प्राप्त हुए प्रेम रुपी जल के कारण ही उसका जन्म होता है किन्तु उसमे प्राण के लिए अन्य वस्तुओं की  आवश्यकता होती है, ठीक उसी तरह ईश्वर के पवित्र जल से इस श्रृष्टि का एवं समस्त भोतिक स्वरुप समस्त बी ह्राह्मांड का निर्माण हुआ  है, एवं प्राणी के भोतिक एवं  नाशवान प्राणी शरीर का  निर्माण हुआ है, किन्तु उसमे प्राण जाग्रत करने के लिए ही उसमे अन्य तत्वों का समावेश किया गया है। 


प्रभु कहते हैं की प्राण नाशवान नहीं है क्यों की प्राण आत्मा है और आत्मा परमात्मा का ही एक स्वरुप है जो की जन्म मरण से दूर होती है,आत्मा एक भोतिक शरीर त्याग कर दूसरा  भोतिक शरीर धारण करती है जैसे मानव अपने पुराने वस्त्र त्याग कर नए वाष्ट्र धारण करता है, इस प्रकार ये जन्म मरण से दूर एवं भोतिकता से दूर है, इसलिए इसकी उत्पत्ति प्राणी में प्राण डालने हेतु की गयी है जो की  ईश्वर द्वारा निर्धारित पंच्तातों से बनी है, उन पंचतत्वों से मिल कर एवं परमेश्वर का साध्य पा कर ही आत्मा का अविशार इश्वर द्वारा हुआ है जो की किसी भी भोतिक शरीर में आ कर उसमे प्राण का संचार करती है, 
     किन्तु प्राणी का शरीर जो की नाशवान है क्यों की इसकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड के अन्य नाशवान भोतिक बस्तुओं की तरह ही जल से हुई है किन्तु आत्मा नाशवान नहीं है क्यों की वो अभोतिक है। 


प्रभु कहते हैं की  प्रलये  के समय  समस्त भोतिक वस्तुओं का नाश होगा, सब कुछ ख़त्म हो जाएगा किन्तु  आत्मा  चाहे  उसने शरीर में रह कर अछे काम करे हो या बुरे उनका नाश न होगा यधपि  उनके कर्मोनुसार  नरक अथवा स्वर्ग की प्राप्ति होगा, और जो अछे कर्म  करने वाले अथवा जिन आत्माओं ने  अपने   वर्तमान   शरीर   में   अछे और  नेक  कर्म करे  है  उन्हें   वो  परमेश्वर श्रृष्टि  निर्माण के दुसरे चक्र में फिर  दुबारा भेजेगा, ताकि श्रृष्टि निर्माण के समाये के मध्ह्यम समय के शुरूआती समय तक  बरैया न उत्पन्न न हो सके। 

No comments:

Post a Comment